The Story of My Experiments With Truth By Mahatma Gandhi Book Summary In Hindi || Mahhatma Gandhi Book Summary In Hindi || Story of Mahatma Gandhi in Hindi
परिचय
=> गांधी जी के कुछ फ्रेंड्स ने उन्हें अपनी लाइफ स्टोरी लिखने के लिए एंकरेज किया . लेकिन वो खुद इस बात पे कांफिडेंस नहीं थे कि इस बुक को ऑटोबायोग्राफी कहा जाए . क्योंकि गांधीजी का मानना था कि ये बुक सच के साथ किये गए उनके एक्सपेरीमेंट्स पर बेस्ड है . उन्होंने लिखा था कि उनकी लाइफ का अल्टीमेट गोल मोक्ष पाना है , यानी सच को स्वीकार करके ज्ञान प्राप्त करना .
उन्होंने ये भी लिखा कि उन्हें पसंद नहीं था कि लोग उन्हें " महात्मा ” बुलाये हालाँकि जो लोग उन्हें बहुत रिस्पेक्ट देते थे उन्होंने उनका ये नाम रखा था . ऐसा नहीं था कि गांधी जी लोगो की रिस्पेक्ट की कद्र नहीं करते थे बल्कि उन्हें तो ये लगता था कि वो इतनी रिस्पेक्ट डिजर्व नहीं करते क्योंकि उनका मानना था कि बाकियों की तरह उनकी भी कुछ लिमिटेशंस है और उनसे भी लाइफ में मिस्टेक्स हुई है . खैर जो भी हो , आपको इस बुक Summary से गांधीजी के बारे में और काफी कुछ जानने को मिलेगा .
कुछ ऐसी इन्फोर्मेशन जो शायद आज तक आपको पता ना हो . ये तो सब जानते है कि गांधीजी एक इंस्पायरिंग लीडर थे लेकिन वो एक बेहद प्यार करने वाले बेटे और पिता भी थे . वो सही मायनों में सेवा और विश्वास की मूर्ती थे .
पैरेंटेज और चाइल्डहुड ( Parentage and Childhood )
=> मेरा जन्म पोरबंदर में 2 अक्टूबर , 1869 को हुआ था . मेरी फेमिली बनिया कम्यूनिटी से बिलोंग करती है . मेरे दादा पोरबंदर में दीवान थे और मेरे फादर भी यही काम करते थे . मै अपने माँ - बाप का सबसे छोटा बेटा हूँ . मेरे फादर एक बहादुर , काइंड और बड़े दिलदार इंसान थे . उन्हें रूपये पैसे का कोई लालच नहीं था . हालाँकि उन्होंने कोई फॉर्मल एजुकेशन नहीं ली थी लेकिन उनके पास अनुभवो का खज़ाना था . उनकी खूबी थी कि वो लोगो को बड़े अच्छे से समझते थे और उनके झगड़े सुलझाते थे . मेरी माँ बड़ी ही रिलीजियस लेडी थी , खाने से पहले भगवान् को शुक्रिया अदा खाने से पहले भगवान् को शुक्रिया अदा करना उसकी आदत में शामिल था . चतुरमास के दिनों में माँ सिर्फ एक टाइम खाना खाती थी .
ये उसका नियम था फिर चाहे वो बीमार ही क्यों ना हो . उसने फ़ास्ट रखना और प्रे करना कभी नहीं छोड़ा . एक बार ऐसे ही चतुरमास के दिन थे जब माँ ने कसम ली कि वो सूरज निकलने तक कुछ नहीं खाएगी . मै और मेरे भाई - बहन बाहर निकलकर देखने गए कि सूरज निकला या नहीं . लेकिन बारिश के दिन थे इसलिए सूरज बड़ी मुश्किल से निकलता था .
लेकिन माँ ने अपनी कसम नहीं तोड़ी . मेरी माँ एक बड़ी स्मार्ट लेडी थी , उसका कॉमन सेन्स बड़ा स्ट्रोंग था और उसे स्टेट politics की पूरी नॉलेज रहती थी . जब मै सात साल का था मेरे फादर राजस्थानिक कोर्ट के मेंबर बने . इसलिए हमारी फेमिली को पोरबंदर छोडकर राजकोट जाना पड़ा . और वही पर मैंने हाई स्कूल तक की पढ़ाई की . मै स्कूल में बड़ा शर्मिला स्टूडेंट था . मुझे अपने क्लासमेट के साथ खेलने से ज्यादा बुक्स पढना पसंद था . और इसी वजह से मै हमेशा अकेला ही रहता था . सुबह स्कूल जल्दी आना और स्कूल ओवर होते ही सीधे घर जाना मेरी आदत थी . मेरे क्लासमेट अक्सर मेरा मज़ाक उड़ाते थे इसलिए उनसे बचने के लिए मै स्कूल से भागते हुए घर जाता था . और घर जाकर फिर अपनी किताबो में डूब जाता था .
चाइल्ड मैरिज ( Child Marriage )
=> वैसे अपनी लाइफ के इस चैप्टर पर मुझे कोई प्राउड फील नहीं होता लेकिन जो भी हो मुझे अपने रीडर्स से इसे शेयर करना ही होगा अगर मुझे वाकई में सच का पुजारी बनना है तो . मेरी वाइफ कस्तूरबा से मेरी शादी तब हुई थी जब हम दोनों सिर्फ 13 साल के थे .
मेरे घर के बड़े लोगो ने मेरी , मेरे भाई और ( cousins ) कजंस की एक ही साथ शादी कराने का डिसीजन लिया . मेरा भाई और ( cousins ) कजन मुझसे 2 साल बड़े थे . हिन्दू घरो में शादी से पहले कई महीनो तक तैयारी चलती है . खाने में क्या बनेगा , क्या कपडे पहने जायेंगे और क्या - क्या गहने बनेंगे इस पर कई सारी प्लानिंग होती है और साथ ही पैसा भी खूब खर्च किया जाता है .
मेरे फादर और अंकल बूड़े हो रहे थे , उन्हें लगता था कि बच्चो की शादी इस उम्र के करवाकर वो अपनी रिसपोंसेबिलिटी से छुटकारा पा लेंगे . तो इस तरह हमारे घर में एक साथ तीन शादियाँ अरेंज हुई . उस वक्त मुझे अच्छे कपड़े , शादी की धूम - धाम , ढोल की आवाज़ और खूब सारा टेस्टी खाना सिर्फ यही सब समझ आता था . शादी का मतलब क्या होता है , ये मुझे मालूम नहीं था .
मुझे याद है जब मै पहली बार एक अजनबी लड़की से मिला , हम शादी के मंडप में सात फेरे ले रहे थे . उसके बाद मैंने और मेरी छोटी दुल्हन ने एक दुसरे को कंसार खिलाया . हम दोनों एक दुसरे से शर्मा रहे थे , मै तो अभूत नर्वस हो गया था . मुझे समझ नहीं आ रहा था कि उससे क्या बात करूँ . लेकिन फिर धीरे - धीरे हम दोनों एक दुसरे को समझने लगे . वो मेरे लिए फेथफुल थी और मै उसके लिए .
मेरे फादर की डेथ और मेरी डबल शेम ( My Father's Death and My Double Shame )
=> मै 16 साल का था जब मेरे फादर की डेथ हुई . उन्हें फिसट्यूला हुआ था . वो काफी टाइम से बीमार चल रहे थे इसलिए माँ और मै उनकी सेवा में लगे रहते थे . मै उनके घाव साफ़ करता था और मेडिसिन देता था . हर रात सोने से पहले मै उनके पैरो की मसाज करता था . मुझे अपने फादर का ध्यान रखना अच्छा लगता था . मैंने एक दिन भी अपनी ड्यूटी नहीं छोड़ी . मेरा टाइम स्कूल की पढ़ाई और अपने फादर का ख्याल रखने में गुजरता था . हालाँकि मुझे एक चीज़ का हमेशा मलाल रहेगा जिसकी वजह से मुझे खुद पर हमेशा शर्म आई , और वो चीज़ थी अपनी वाइफ के लिए मेरा लस्ट . अपनी जवानी के दिनों में मेरा खुद पर कण्ट्रोल नहीं रहता था .
मै अपने फादर की सेवा में होता तो भी मेरा दिल कस्तूरबा में लगा रहता . और पिताजी के सोते ही मै सीधा अपने बेडरूम में घुस जाता था . फिर धीरे - धीरे मेरे फादर की तबियत बिगडती चली गयी . अब ( davaiyon ) मेडिसिन से भी उन्हें कोई फायदा नही हो रहा था .फेमिली डॉक्टर ने बताया कि इस एज में उनका ओपरेशन करना रिस्की होगा . मेरे अंकल राजकोट से आये . फादर और उनके बीच काफी क्लोजनेस थी . वो फादर के साथ उनके आखिरी टाइम तक रहे . वो पूरा दिन फादर के सिरहाने बैठे रहते . और सोते भी उसी कमरे में थे .
मुझे आज भी वो रात याद है जब मै हमेशा की तरह फादर के पैरो की मसाज़ कर रहा था . मेरे अंकल ने मुझे बोला लाओ अब मै करता हूँ . मैंने तुरंत उनकी बात मानी और कस्तूरबा के पास चला गया . कुछ मिनट बाद ही एक सर्वेट ने बेडरूम दरवाजे पर नॉक किया . " जल्दी उठो , फादर की हालत खराब हो रही है " उसने कहा मै शॉक के मारे बेड से कूद पड़ा . ' क्या हुआ ? मुझे बताओ ? मै जोर से बोला " पिताजी हमे छोडकर चले गए " '
मुझे इतना सदमा लगा कि बता नहीं सकता . मै कुछ भी नहीं कर पाया . मुझे खुद पर बड़ी शर्म महसूस हुई . अगर मै अपनी वासना की आग में अँधा नहीं होता तो फादर के आखिरी टाइम में उनके साथ होता . वो अपने बेटे की बांहों में दम तोड़ते . लेकिन मेरे बदले मेरे अंकल उनके साथ थे . ये उनकी किस्मत थी कि मेरे फादर के आखिरी पलों में वो उनके साथ थे . इस गलती के लिए आज तक मै खुद को माफ़ नहीं कर पाया हूँ . मै हमेशा इस बात को रिग्रेट करके रोता था .
इंग्लैंड जाने की तैयारी ( Preparation for England )
=> 1887 में मैंने मैट्रिक पास किया . फिर कुछ टाइम के लिए मैंने सामलदास कॉलेज भावनगर में पढ़ा . लेकिन एक फेमिली फ्रेंड ने मुझे एडवाईस किया कि मुझे आगे की पढ़ाई के लिए इंग्लैण्ड जाना चाहिए . मावजी दवे ने मेरी माँ को बोला कि मुझे बीए की डिग्री लेने में 5 साल लगेंगे . और दीवान बनने के लिए इतनी क्वालिफीकेशन काफी नहीं थी . उसके लिए मुझे लॉ करना होगा जिसमे और ज्यादा टाइम लगेगा . इसलिए मेरे लिए बैटर यही है कि मुझे इंग्लैण्ड पढने भेजा जाए .
वहां जाकर मै सिर्फ 3 साल में ही बैरिस्टर बन सकता हूँ . उसने ये भी बोला कि मुझे तुरंत इंग्लैण्ड भेजा जाए . वहां से बैरिस्टर की डिग्री लेने पर मेरी रेपूटेशन बढेगी और मुझे आसानी से दीवानशिप मिल जाएगी . मावजी द्वे ने मुझसे पुछा " क्या तुम यहाँ पढ़ाई करने के बजाये इंग्लैण्ड नहीं chahoge ? " मै उनकी बात से एग्री था . मेरी माँ ये सोच के परेशान थी कि मै कहीं इंग्लैण्ड जाकर मीट खाना और शराब पीना शरू ना कर दूं .
लेकिन मैंने माँ से कहा ' " क्या तुम्हे मुझ पर यकीन नहीं है ? मै तुमसे कभी झूठ नहीं बोलूंगा . मै तुम्हारी कसम खाता हूँ इन चीजों को कभी हाथ तक नहीं लगाऊंगा " . हम अपने एक फेमिली एडवाईजर के पास गए जो एक जैन मोंक थे . उन्होंने मुझे कसम दिलवाई कि मै कभी भी मीट , शराब और पराई औरत को टच नहीं करूँगा . इसके बाद मेरी माँ ने मुझे जाने की परमिशन दे दी .
इंग्लैण्ड का जेंटलमेन ( Playing the English Gentleman )
=> इंग्लैण्ड जाकर मैंने वेजीटेरियनिज्म की बहुत सारी बुक्स पढ़ी . जितना मै पढता गया उतना ही मुझे वेजीटेरियन डाईट पसंद आने लगा था . वैसे तो मै एक वेजीटेरीयन फेमिली में पैदा हुआ था लेकिन मुझे इसके इतने सारे हेल्थ बेनेफिट्स पता नहीं थे .बाद में मुझे रिएलाइज हुआ कि मेरी वेजीटेरियन डाईट और स्प्रिचुएलिटी के बीच एक स्ट्रोंग कनेक्शन है . इंग्लैण्ड आने के कुछ सालो तक मै एक प्योर इंग्लिश जेंटलमेन की तरह रहा . मैंने नया सूट सिलवाया , नहीं टाई और नया हैट लिया .
सुबह मुझे पूरे 10 मिनट लगते थे अपनी टाई फिक्स करने और बालो को स्टाइल करने में . किसी ने मुझे बोला कि एक प्रॉपर इंग्लिश मेन बनने के लिए ग्रेसफूली डांस करना और कांफिडेंस के साथ बोलना ज़रूरी है . तो मैंने डांसिंग और स्पीच लेंसंस लेने स्टार्ट कर दिए . वैसे बता दूँ कि मै बहुत ही टेरिबल डांसर था . मै कितनी भी कोशिश कर लूँ लेकिन कभी म्यूजिक के साथ नहीं चल पाता था . मेरे स्पीच इंस्ट्रक्टर ने रेकमंड किया कि मुझे " बेल'स स्टैण्डर्ड एलोकोशिनिस्ट ( Bell's Standard Elocutionist " ) की टेक्स्ट बुक्स पढनी चाहिए .
लेकिन मिस्टर बेल ने मेरे कानो में घंटी बजाकर मुझे फूलिशनेस से जगाया . मै अपनी पूरी लाइफ इंग्लैण्ड में नहीं रहने वाला था . मै वहां स्टडी के लिए गया था . उस दिन मैंने सिर्फ अपनी स्टडीज पर ध्यान देना शुरू कर दिया . मैंने वेजीटेरियन सोसाइटी ज्वाइन की और एक्जीक्यूटिव कमेटी में Select . गया . मुझे बैरिस्टर बनने के लिए दो एक्जाम्स पास करने थे . एक रोमन लॉ में और दूसरा कॉमन लॉ ऑफ़ इंग्लैण्ड . मैंने कई महीनो तक इन एक्जाम्स की तैयारी की . मैंने इक्विटी , रियेल प्रॉपर्टी और पर्सनल प्रॉपर्टी पर ढेर सारी मोटी - मोटी बुक्स पढ़ी . फाइनली 10 जून , 1891 में मुझे बार में एक्सेप्ट कर लिया गया .
साउथ अफ्रीका जाना ( Arrival in South Africa )
=> इंडिया में मेरी लॉ प्रेक्टिस कुछ खास नहीं चल रही थी . मुझे जब मेरा फर्स्ट केस मिला तो मै कौर्ट रूम में काफी नर्वस था . ब्रिटिश ऑथोरिटी के साथ भी मेरी अनबन हो गयी थी . ऐसे में साऊथ अफ्रीका जाके काम करने का मौका मेरे लिए एक बढ़िया अपोरच्यूनिटी थी . मुझे सेठ अब्दुल करीम झवेरी का लैटर मिला , वो दादा अब्दुल्ला एंड कंपनी में पार्टनर थे और पोरबंदर में उनका ऑफिस था .. " ये जॉब तुम्हारे लिए डिफिकल्ट नहीं होगी " सेठ ने कहा . " ऑफ़ कोर्स तुम हमारे यहाँ गेस्ट की तरह रहोगे , तुम्हे अपनी तरफ से कोई खर्च नहीं करना होगा . " ये जॉब कब तक रहेगी ? और पेमेंट क्या मिलेगी मुझे ? " मैंने पुछा . " तुम्हे बस साल भर काम करना होगा और मै तुम्हे फर्स्ट क्लास का रिटर्न फेयर और £ ( euros ) 105 दूंगा .
" एक नयी कंट्री में काम करने का मौका मिल रहा था , मेरे लिए बहुत एक्साईटिंग थी . मुझे नयी चीज़े सीखने को मिलेगी , एक अलग एक्स्पिरियेश होगा . मैंने ख़ुशी से हाँ कर दी . और इस तरह मै समुंद्री यात्रा करके अफ्रीका पहुँच गया . सेठ अब्दुल मुझे पोर्ट में लेने आये और अपने साथ ऑफिस ले गए . अगले दिन मै उनके साथ कोर्ट गया . मजिस्ट्रेट मुझे देखकर थोड़ा परेशान लग रहा था , फाइनली उसने मुझसे बोला कि मै अपनी पगड़ी उतार दूं . मैंने मना कर दिया और कोर्ट छोडकर चला आया .
मुझे ये बात मालूम हुई कि साऊथ अफ्रीका में रहने वाले इंडियंस के दो ग्रुप है . एक तो मुसलमान मर्चेट्स जो खुद को " अरब्स " बोलते थे और दुसरे हिंदू और पारसी clerks . और एक सबसे बड़ा ग्रुप उन लेबरर्स का था जो नार्थ इंडिया , तेलगु और तमिल से आये थे . इंग्लिश मेन इंडियन लेबर्स को " कुली " कहकर बुलाते थे . और क्योंकि इंडियन्स यहाँ मेजोरिटी में थे इसलिए साउथ अफ्रीका में सारे इंडियंस कूली के नाम से ही जाने जाते थे . रात में मुझे ख्याल आया कि मुझे पगड़ी की जगह इंग्लिश हैट पहननी चाहिए . लेकिन सेठ अब्दुल ने मुझे मना किया " अगर तुम ऐसा कुछ करोगे तो ये एक तरह से कम्प्रोमाईज होगा , अगर तुम इंग्लिश हैट पहनोगे तो ये लोग तुम्हे वेटर की तरह ट्रीट करेंगे . .
मेरा प्रीटोरिया जाना ( On the way to Pretoria )
=> मुझे ट्रेन से प्रीटोरिया जाकर कुछ क्लाइंट्स से मिलना था . ने मेरे लिए फर्स्ट क्लास का टिकेट बूक करवाया था . शाम को रेलवे का एक सर्वेट आया और मुझे बेड ऑफर किया . मैंने उससे कहा कि मै अपना बेड अपने साथ लाया हूँ तो वो वापस चला गया . एक पेसेंजेर् ने मुझे बड़ी नफरत के साथ देखा क्योंकि उनकी नजरो में मै एक kaala aadmi था . वो पेसेंजर अपने सीट से उठा और थोड़ी देर बाद एक ऑफिशियल के साथ मेरे पास आया . " चलो उठो , तुमको वेन कम्पार्टमेंट में जाना होगा " ऑफिशियल मुझसे बोला . " लेकिन मेरे पास फर्स्ट क्लास की टिकेट है " मैंने कहा . " इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता . मै बोल रहा हूँ , उठो और वेन कम्पार्टमेंट में जाओ " " सर , मुझे फर्स्ट क्लास में ट्रेवल की परमिशन है और मै इसी से जाऊंगा " " नहीं , तुम नहीं जाओगे ” ऑफिशियल बोला . तुम्हे अभी इसी वक्त ये कम्पार्टमेंट छोड़ना होगा वर्ना धक्के देकर बाहर फेंक दूंगा ” लेकिन मै भी अड़ गया था . मैंने उठने से साफ इंकार कर दिया .
ऑफिशियल ने मेरी बाजू पकड़ी और मुझे फर्स्ट क्लास से बाहर घसीटा . उसने मेरा लगेज भी ले लिया था . उन लोगो ने मुझे धक्का देते हुए ट्रेन से नीचे उतार दिया और मुझे वेटिंग रूम में बैठना पड़ा . मेरे मन में इंडिया लौट जाने का खयाला आया . लेकिन मै डरपोक नहीं था और ना ही बनना चाहता था . मैंने सोच लिया था कि मै साउथ अफ्रीका के इस रेशियल डिस्क्रीमीनेशन के बारे और पता लगाऊंगा और उससे भी ज्यादा इम्पोर्टेट इस प्रोब्लम को हमेशा के लिए दूर करने के बारे में सोचूंगा .
इंडियंस के साथ टच में रहना ( Seeking in Touch with Indians )
=> प्रीटोरिया में मेरी मुलाक़ात शेठ तैयब से हुई , वो भी हमारी लॉ फर्म में काम करते थे . मैंने उन्हें कहा कि मै साऊथ अफ्रीका में रहने वाले सारे इंडियंस के साथ टच में रहना चाहता हूँ और यहाँ वो किस हालत में रहते है इस बारे में जानना चाहता हूँ . शेठ तैयब मेरी हेल्प करने को तैयार हो गए और उन्होंने एक मीटिंग अरेंज करवा दी . ये मीटिंग एक और शेठ के घर पर रखी गई थी .
इनमे से ज्यादातर लोग मेमन मर्चेट्स थे . कुछ हिन्दू क्लर्क भी आये थे . मैंने बिजनेस में सच्चाई और ईमानदारी के टॉपिक से अपने बात शुरू की . और सुनने वालो को ये भी कहा कि हमे अपने - अपने डिफरेंसेस भूल कर यूनिटी दिखानी चाहिए . मेरा मानना था कि मुस्लिम , हिंदू , पारसी , गुजराती , मद्रासी , पंजाबी , क्रिश्चियंस या जो भी लोग इंडिया से यहाँ आये है उन्हें साऊथ अफ्रीका में जो भी हार्डशिप फेस करनी पड़ रही है , उसे सबको मिलकर फेस करना चाहिए . मैंने बोला कि हम सबको मिलकर एक एसोशिएशन बनानी चाहिए ताकि हम यहाँ की ऑथोरिटीज तक अपनी प्रॉब्लम्स और क्न्सेर्स लेकर जा सके .
और लास्ट में मैंने सबसे बोला कि मै किसी भी टाइम अपनी सर्विस और जो भी हेल्प मै कर सकूँ वो करने को तैयार हूँ . मैंने उन्हें ये भी कहा कि मैं उन्हें इंग्लिश सीखने में हेल्प कर सकता हूँ जो उन्हें बिजनेस में काफी हेल्पफुल रहेगा . मैंने तीन लोगो को इंग्लिश सिखाई जिनमे दो मुस्लिम्स थे . एक बार्बर था और दूसरा एक क्लर्क . तीसरा वाला एक हिन्दू शॉपकीपर था . ये डिसाइड किया गया कि हम लोग वीक में एक दिन अपनी मीटिंग करेंगे . इस मीटिंग में हम अपने आईडियाज और डे टू डे लाइफ के एस्पिरियेश शेयर करते थे . इसका रीजल्ट ये हुआ कि प्रीटोरिया में रहने वाला हर इन्डियन मुझे अच्छे से जानता था . मै साऊथ अफ्रीका एक लॉ फर्म को रीप्रेजेंट करने आया था लेकिन अब मेरा ज्यादातर टाइम पब्लिक वर्क में गुजरता था.
बोअर वार ( The Boer war )
=> साउथ अफ्रीकन्स का इंग्लिश लोगो के साथ स्ट्रगल चल रहा था . इसी बीच बोअर वार शुरू हो गयी थी . मुझे बोअर्स यानी पीपल ऑफ़ ट्रांसवाल और ओरेंज फ्री स्टेट के साथ पूरी सिम्पेथी थी लेकिन इंग्लैण्ड के लिए भी मै पूरी तरह से लॉयल फील करता था . मैंने ब्रिटिश सोल्जेर्स के लिए एम्बुलेंस कोर्स रखने के बारे में सोचा . ब्रिटिश लोग इंडियंस को डरपोक समझते थे . उन्हें लगता था कि हम लोग रिस्क लेने से डरते है और अपने सेल्फ इंटरेस्ट के अलावा और कुछ नहीं सोच सकते . मै अपने कई इंग्लिश फ्रेंड्स के पास गया लेकिन कोई भी हेल्प नहीं करना चाहता था . फिर मुझे डॉक्टर बूथ से हेल्प मिली जोकि मेरे अच्छे फ्रेंड थे . उन्होंने मुझे और कुछ वालंटियर्स को एब्लुलेंस वर्क की ट्रेनिंग दी ,
उन्होंने हमे मेडिकल सर्टिफिकेट भी दिए . पहले तो ब्रिटिश अथॉरिटीज ने हमारी हेल्प लेने से मना कर दिया . उन्होंने कहा कि उन्हें हमारी सर्विसेस के कोई ज़रूरत नहीं है , लेकिन मैंने भी हार नहीं मानी . डॉक्टर बूथ ने मुझे बिशप ऑफ़ नेटल से मिलवाया . हमारे वालंटियर ग्रुप में बहुत से क्रिश्चियन इंडियंस भी थे इसलिए बिशप हमारी हेल्प करने को रेडी हो गए . और उन्होंने हमारे एम्बुलेंस कोर्स के लिए अप्रूवल ले लिया . अब हमारे पास 1,100 वालंटियर्स थे जिन्हें 40 टीम मेम्बर लीड कर रहे थे . हम फाइरिंग लाइन के बाहर रुके थे . मैं भी वहां डॉक्टर बूथ के साथ गया . हम रेड क्रोस के साथ मिलकर काम कर रहे थे .
अगले कुछ दिनों में वार और भी खतरनाक हो गयी थी . इसलिए अब हमें परमिशन मिल गयी कि हम फाइरिंग लाइन के अंदर ऑपरेट कर सकते थे . एक ब्रिटिश जेर्नल ने हमारे कोर्स से कहा कि हम घायलों को फील्ड से लेकर आये ताकि उन्हें ट्रीटमेंट मिल सके . हम रोज़ 25 मील चलकर घायल सोल्जेर्स को लेने जाते और उन्हें स्ट्रेचर पर उठाकर लाते थे . पूरे छे हफ्ते तक हमारी एम्बुलेंस कोर्ब्स ने ब्रिटिश सोल्जेर्स की सेवा की .
हमारी इस हेल्प के लिए ब्रिटिश लोगो ने हमे बड़ी इज्ज़त दी , इस तरह उनकी नजरो में इंडियंस की रेपूटेशन थोड़ी सी बढ़ गयी थी . न्यूज़ पेपर्स में कुछ ऐसी हेडलाइंस छपी थी " वी आर संस ऑफ़ द एम्पायर आफ्टर आल " सबसे बढ़ी बात तो ये थी कि जर्नल बुलर ने हमारे कोर्स लीडर्स को वार मेडल दिए . और इस बात का लॉन्ग टर्म इफ्केट ये हुआ कि इंडियन कम्यूनिटी अब और भी ओर्गेनाइज्ड हो गयी थी . मुस्लिम्स , हिन्दू , क्रिश्चियंस , सिन्धी और तमिलियंस , सबको ये रिएलाइज हो चूका था कि हम भारत के बच्चे है .
मेरा अपने देशवासियों के साथ रिलेशनशिप और भी स्ट्रोंग हो गया था . हमे लग रहा था कि इंग्लैण्ड के साथ अब हमारा रिश्ता और भी मज़बूत हो जाएगा . जिन ब्रिटिश लोगो से हम मिले , वो अब हमारे साथ काफी फ्रेंडली होकर बात करते थे . क्योंकि हमारी सर्विस की वजह से वो एक तरह से ग्रेटफुल फील करने लगे थे . इस इवेंट से एक बात तो प्रूव हुई कि मुसीबत में एक दुसरे के काम आना है रियल ह्यूमन नेचर है .
रीटर्न टू इंडिया इंडिया लौटना ( Return to India )
=> बोअर वॉर सर्विस के बाद मैंने इंडिया लौटने का मन बना लिया था . मैंने अपने फ्रेंड्स से प्रोमिस किया कि अगर उन्हें मेरी हेल्प की ज़रूरत पड़े तो मै वापस साउथ अफ्रीका आ जाऊंगा . वहां रहने वाले इंडियंस के साथ स्पेशली नेटल में मेरा एक मज़बूत रिश्ता बन गया था . मेरे जाने से पहले नेटल इंडियंस ने मुझे ढेर सारे गिफ्ट्स दिए . डायमंड्स , गोल्ड , सिल्वर जैसी चीज़े मुझे गिफ्ट के तौर पर मिली . मै बड़ा ग्रेटफुल फील कर रहा था लेकिन इतने कॉस्टली गिफ्ट्स मै भला कैसे ले सकता था . मैंने जो भी पब्लिक वर्क या कम्यूनिटी सर्विस की थी , वो इसलिए की थी क्योंकि मुझे लोगो की हेल्प करना अच्छा लगता है . उस रात मुझे नींद नहीं आई . मै बैचेनी से अपने रूम में चक्कर काट रहा था . मैंने सोचा कि अगर आज मैंने ये सारे कॉस्टली गिफ्ट्स एक्सेप्ट कर लिए तो अपने बच्चो के सामने कभी भी एक गुड एक्जाम्पल सेट नहीं कर पाउँगा .
मै चाहता था कि मेरे बच्चे लाइफ ऑफ़ सर्विस जिए , दूसरो की हेल्प करे . मैंने उन्हें ये समझाना चाहता था कि भलाई का फल हमेशा मिलता है और हमे सिंपलीसिटी और ह्यूमिलिटी से जीना चाहिए . कुछ टाइम बाद मुझे ये सोल्यूशन मिला . मैंने एक लैटर लिखा कि सारे कॉस्टली गिफ्ट्स कम्यूनिटी को वापस दे दिए जाए . मैंने पारसी रुस्तमजी और कुछ फ्रेंड्स को जिनपर मुझे ट्रस्ट था , इन गिफ्ट्स का ध्यान रखने की जिम्मेदारी दे दी थी . सुबह मैंने अपनी वाइफ और बच्चो से ये बात शेयर की . मेरे बच्चो को तो कोई फर्क नहीं पड़ा लेकिन मेरी वाइफ को आईडिया कुछ खास पंसद नहीं आया . " मुझे समझ नहीं आ रहा कि तुम मुझे ये गहने पहनने क्यों नहीं दे रहे ? " उसने कहा . और मेरी बहू भी ये गहने पहनेगी " " अभी बच्चो की शादी कहाँ हुई है ? " मैंने उसे समझाने की कोशिश की . " हम इतनी छोटी उम्र में उनकी शादी नहीं करेंगे और ना ही अपने बेटो के लिए ऐसी बहूएँ लायेंगे जो इन सब चीजों की लालची हो . "
फिर किसी तरह मामला सेटल हुआ . मैंने सारे गिफ्ट कलेक्ट किये और एक ट्रस्ट डीड्स तैयार की . सारी चीज़े बैंक में डिपोजिट करा दी गयी . अगर मेरा ट्रस्टी उन्हें कम्यूनिटी सर्विस के लिए यूज़ करना चाहे तो वो ऐसा कर सकता था . मुझे अपने इस डिसीजन पर कभी रिग्रेट नहीं हुआ . धीरे - धीरे मेरी वाइफ भी समझ गयी कि मै अपनी फेमिली को लालच से बचाना चाहता हूँ . मै ये मानना है कि एक पब्लिक वर्कर को किसी भी तरह का कॉस्टली गिफ्ट एक्स्पेट नहीं करना चाहिए .
वापस इंडिया ( In India Again )
=> जब मै इंडिया वापस आया तो मुझे पता चला कि कैलकटा में कांग्रेस की मीटिंग है . मैं भी वहां एक डेलीगेट के तौर पर गया . मैंने वहां कुछ रेजोल्यूशन प्रजेंट किये जिससे साउथ अफ्रीका में इंडियंस की सिचुएशन थोड़ी इम्प्रूव हो सके . मुझे सर वाछा ( Wacha ) के साथ ट्रेवल करने का मौका मिला जो उस टाइम कांग्रेस के प्रेजिडेंट थे . मैंने कुछ टाइम उनके साथ ट्रेन में जर्नी की . सर वाछा ने मुझसे कहा कि वो मेरे रेजोल्यूशन पढेंगे . कैलकेटा में मुझे रिपोन ( Ripon ) कॉलेज ले जाया गया जहाँ पर सारे डेलिगेट्स रुकने वाले थे . एक फायदा और हुआ कि मुझे अपने कुछ फ्रेंड्स भी वहां मिल गए . हालाँकि कुछ इश्यूज थे जिन पर मै बात करना चाहता था . मैंने देखा कि रिपोन कॉलेज के वालंटियर्स की आपस में बनती नहीं थी . अगर एक वालंटियर से कुछ पूछो तो वो दुसरे को सवाल पास कर देता था और दूसरा तीसरे को . उनमे से कुछ के साथ मेरी अच्छी फ्रेंडशिप हो गयी थी . मैंने उन्हें साउथ अफ्रीका की स्टोरीज़ सुनाई . मैंने उन्हें पब्लिक सेवा की इम्पोर्टस भी बताई . लेकिन पब्लिक सर्विस की भावना लोगो में इतनी जल्दी नहीं डाली जा सकती .
क्योंकि ये फीलिंग किसी इंसान में अंदर से आती है कि उसे लोगो की हेल्प करनी है . प्रोब्लम ये थी कि कांग्रेस की मीटिंग साल में सिर्फ 3 दिन होती थी . बाकी टाइम ये रेस्ट में होती थी . इसलिए वालंटियर्स को कोई प्रॉपर ट्रेनिंग नहीं मिल पाती थी . मैंने ये भी देखा कि कॉलेज कंपाउंड में हाई लेवल की छुवाछूत का माहौल था . जैसे एक्जाम्पल के लिए , तमिल लोगो का किचेन बाकियों से एकदम अलग दूर था . और दिवार से घिरा था क्योंकि तमिल डेलिगेट नहीं चाहते थे कि खाना खाते वक्त कोई उन्हें देखे . उनके लिए बाकी लोगो की नज़र किसी छुवाछूत से कम नहीं थी . फाइनली , एक और चीज़ मैंने नोटिस की , हमारी बिल्डिंग की लैट्रीन्स बहुत ही बुरी हालत में थी . साफ़ - सफाई का नामो - निशान तक नहीं था .
चारो तरफ पानी भरा रहता था और के मारे बुरा हाल हो रहा था . मै वालंटियर्स के पास जाकर इस बारे में बात की लेकिन उनका जवाब था " इसमें हम क्या कर सकते है , ये स्वीपर का काम है " तो मैंने उनसे पुछा कि झाडू कहाँ पर मिलेगी . वो हैरानी से मेरी तरफ देख रहे थे , मैंने झाडू ढूढी और सारी लैट्रीन्स खुद अपने हाथो से साफ़ की . लेकिन मै अकेले सारी सफाई नहीं कर सकता था . लोग लैट्रीन्स करने आते , करके चले जाते लेकिन गंदगी को इग्नोर करते थे . कांग्रेस मीटिंग अभी शुरू नहीं हुई थी इसलिए मैंने ऑफिस ऑफ़ द सेक्रेटेरीज़ के लिए अपनी सर्विस ऑफर कर दी . मै बाबु बासु और सुजीत घोष का क्लर्क अपोइन्ट हुआ . वो लोग भी मुझे देखकर खुश थे .
फेथ ओन इट्स ट्रायल ( Faith on its Trial )
=> मेरा ज्यादातर टाइम पब्लिक वर्क में गुजरता था . सब सही चल रहा था . लेकिन फिर मेरा दूसरा बेटा मणिलाल बुरी तरह बीमार पड़ गया . उसे टाइफाइड और न्यूमोनिया हो गया था . वो अक्सर रातो को उठकर रोने लगता और पागलो की तरह बडबड़ाता था . डॉक्टर ने हमे बोला कि हम मणिलाल को चिकेन सूप और अंडे खिलाये ताकि उसे ताकत मिले . मेरा बेटा सिर्फ 10 साल का था . अब मुझे डिसाइड करना था कि उसे नॉन - वेज खिलाना है या नहीं . " तुम्हारे बेटे की जान को खतरा है " डॉक्टर ने मुझे समझाया . हम उसे पानी मिला दूध दे सकते है लेकिन ये काफी होगा . मुझे लगता है कि आप अपने बेटे की सेहत के लिए उसकी डाईट में ज्यादा सख्ती नहीं करेंगे . " मेरा धर्म मुझे अंडे और मीट खाने की परमिशन नहीं देता ,
चाहे जो भी सिचुएशन हो.इसलिए मै ये रिस्क लेने को रेडी हूँ " मैंने जवाब दिया . मैंने डॉक्टर से कहा कि वो मेरे बेटे की कंडिशन चेक करते रहे हालाँकि हमने उसे मीट या अंडा नहीं दिया . मैंने डॉक्टर से ये भी पुछा कि क्या हम कोई आल्टरनेटिव ट्रीटमेंट ट्राई कर सकते है , तो डॉक्टर ने हाँ बोल दिया . मैंने उसका धन्यवाद किया . अगले 3 दिनों तक मैंने मणिलाल को कुहने का ट्रीटमेंट दिया . मै उसे टब में बैठाकर 3 मिनट का हिप बाथ देता था . मै हर रोज़ उसके लिए ओरेंज जूस भी बनाता था . हालाँकि मणिलाल का बुखार और बडबड़ाना कम नहीं हो रहा था . मुझे डाउट हुआ और अपने डिसीजन को लेकर मुझे रिग्रेट हो रहा था . उस रात , मैंने मणिलाल के बीमार शरीर को एक वेट टॉवल से रब किया और एक और वेट टॉवल उसके माथे पर रखा .
मैंने अपनी वाइफ को उसके पास रहने को बोला और वाक् के लिए बाहर चला गया . मै ऊपरवाले से प्रे कर रहा था . मैंने सब कुछ भगवान पर छोड़ दिया था . " इस मुश्किल की घड़ी में हमे सिर्फ तुम्हारा ही सहारा है भगवान , हमे इस संकट से उबारो " मै बार - बार राम नाम जप रहा था . और फिर मै घर लौट आया . मै कमरे में आया तो मणिलाल की कमज़ोर आवाज़ सुनाई दी "
" तुम आ गए बापू ? " " हाँ मेरे बेटे " मैंने उससे कहा . उसकी पूरी बॉडी पसीने से तरबतर थी . मैंने कम्बल हटाकर उसका पसीना सुखाया . उसका बॉडी टेम्प्रेचर थोडा डाउन लग रहा था . मै उसके बगल में बैठ गया और वही सो गया . नेक्स्ट मोर्निंग मणिलाल की हालत कुछ बैटर थी . उसका बुखार उतर चूका था.हमने उसे पानी मिला दूध और फ्रूट जूस देना जारी रखा . चीज़े अब हमारे कंट्रोल में लग रही थी . और धीरे - धीरे वो पूरी तरह ठीक हो गया था . मणिलाल बड़ा होकर एक हेल्दी बॉय बना . उसे देखके कोई भी ये बोल सकता था कि हमारी सही देख - रेख और हेल्दी डाईट ने ही उसे ठीक किया था
लेकिन मेरे लिए तो ये भगवान् का चमत्कार था . ऊपरवाले पर मेरे अटूट विशवास ने ही मेरे बेटे की जान बचाई थी . कनक्ल्यूजन ( Conclusion ) आपने गांधीजी के बारे में काफी कुछ पढ़ा . उनकी ह्यूमिलिटी , उनके फेथ और उनके सेवा भाव के बारे में आपने जाना . गांधीजी के अंदर अपने आस - पास के लोगो के लिए हमेशा ही एक सेन्स ऑफ़ रिस्पोंसिबिलिटी रही थी . उन्हें अपने से ज्यादा दूसरो का ख्याल रहता था . और दूसरो को सर्व करने के इसी स्ट्रोंग डिजायर के लिए गांधीजी दूर - दराज़ की जगहों पर भी गए , कई सारे पॉवरफुल लोगो से मिले और उन्होंने अपने देश का इतिहास बदला . अब ये प्रेजेंट जेनरेशन की जिम्मेदारी है कि वो भी गांधीजी के बताये रास्ते पर चले और उनके बताये प्रिंसिपल्स को फोलो करे .
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