रविवार, 9 मई 2021

First Story In Hindi

 एक लड़का अपने पिता के साथ पतंग उड़ा रहा था और उससे पूछा कि पतंग को क्या ऊपर कर रखा है। पिताजी ने उत्तर दिया, "तार।" लड़के ने कहा, "पिताजी, यह वह तार है जो पतंग को पकड़े हुए है।" पिता ने अपने बेटे को स्ट्रिंग टूटते हुए देखने के लिए कहा। अनुमान करें कि पतंग का क्या हुआ? यह नीचे आया। क्या यह जीवन में सच नहीं है? कभी-कभी जिन चीजों के बारे में हमें लगता है कि वे हमें पकड़े हुए हैं, वही चीजें हैं जो हमें उड़ान भरने में मदद कर रही हैं। यही अनुशासन है।

शनिवार, 8 मई 2021

You Can Heal Your Life Book Summary In Hindi By Louise Hay || How to Stay Motivate in Hindi ||

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( Introduction )

=> हम सब कभी ना कभी इस दौर से गुज़रे है -लाइफ में बहुत डाउन सा फील होता है जब हमें कुछ भी मोटिवेट नहीं करता हमारा एनथूयाज्म ( enthusiasm ) या कुछ भी कह ले वो खत्म होने लगता है. ऐसे टाइम में लगता है कि काश कोई हमारी हेल्प करता . लेकिन सोचिये क्या होता है कभी - कभी ऐसे हालात का सामना हमे अकेले ही करना पड़ता है कोई भी हमारे काम नहीं आता है . फिर एक ही चीज़ रह जाती है कि - आप अपनी हेल्प खुद करो . लेकिन इससे पहले कि आप भी कभी इस सिचुएशन से गुज़रे आपको सेल्फ हेल्प फिलोसफी और होलिस्टिक हेल्थ के बेसिक सिद्धांत सीखने होंगे . और इसका सबसे बढ़िया तरीका है कि आप इस बुक को पढ़े जिसका नाम है " You Can Heal Your Life ” .

वैसे तो ये बुक 1984 में लिखी गयी थी लेकिन ये आज भी उतनी ही फ्रेश और इनोवेटिव है जितनी कि 35 साल पहले जब छपी थी . ( Louise Hay ने सेल्फ हेल्प बुक्स की एक रेंज निकाली मैनुयल तथा मेनूस्क्रिप्ट ( manuals , and manuscripts )  ऐसा ट्रेंड चलाया कि आज भी कई राइटर्स इस ट्रेंड को फोलो  कर रहे है . और इसके अलावा सेल्फ हेल्प इंडस्ट्री पहले कभी इतनी पॉपुलर नहीं थी जितनी कि आज है . और ये आगे फ्यूचर में भी इसी तरह फ्लोरिश करती रहेगी.

( Roots of problems )

=> Louise Hay  क्लियर करते है कि लाइफ में काफी सारी प्रोब्लम्स तो हमारे नेगेटिव सेल्फ बिलिफ्स   ( Believe ) की वजह से क्रिएट होती है ." मै इस लायक नहीं हूँ या अच्छा / अच्छी नहीं हूँ " इस तरह की सोच और देखे जाए तो कुछ मेंटल डिज़ीज़ वाकई में इस फंडामेंटल बिलिफ की वजह से ही होती है अब जैसे कि डिप्रेशन की प्रोब्लम . जैसा सबको पता है कि डिप्रेशन एक सिरियस मेंटल कंडिशन है जो लाइफ के हर एस्पेक्ट को बुरी तरह अफेक्ट कर देता है . करियर सोशल लाइफ होबीज़ मोटिवेशन सब कुछ इस डिप्रेशन से अफेक्टेड होते है . आज यू.एस. में 15 % पोपुलेशन किसी ना किसी फॉर्म में डिप्रेशन डिसऑर्डर की शिकार है . मेलान्चोलिया ( melancholia ) ( मेंटल डिसऑर्डर के लिए एक और टर्म ) के शिकार लोगो में सेल्फ- एमपेथी और सेल्फ केयर की बड़ी कमी होती है . ऐसे लोग खुद को ही हार्म पहुंचाते है .

कई सारी साइकोलोजिकल स्टडीज में प्रूव हुआ है कि डिप्रेसिव लोग हर फेलर के लिए अपने इनर केरेक्टरस्टिक ( As Being Stupid ) को रिस्पोंसीबल समझते है जबकि सक्सेस मिलने पर वो सोचते है कि किसी खास वजह से उन्हें सक्सेस मिली है जैसे कि मै लकी था कि ये काम हो गया या फिर ये काम तो बड़ा ईजी था . चलो ऐसे बिहेवियर का एक टिपिकल एक्जाम्पल देखते है -मार्क एक मोडरेट डिप्रेशन का शिकार आदमी एक एक्जाम की तैयारी कर रहा है . प्रीप्रेरेशन ( preparation ) के दौरान उसे बड़ी अपने रिजल्ट को लेकर बड़ी नर्वसनेस और एंजाएटी ( anxious ) होती है क्योंकि उसमे सेल्फ कांफिडेंस की कमी है और इसके अलावा उसमे सेल्फकेयर भी कम है वो पूरा रेस्ट भी नहीं लेता जो उसकी हालत और भी खराब कर देते है . और जब वो फेल हो गया तो उसने खुद से कहा : “ मुझे तो पहले ही पता था कि मै फेल हो जाऊंगा , . मै इतना स्टुपिड हूँ कि कभी पास हो ही नहीं सकता .

दुख की बात तो ये है कि मार्क इस बात में वाकई बिलीव करता है कि वो स्टुपिड है . हालाँकि वो बाकी फैक्टर्स एकदम इग्नोर कर देता है जैसे कि वो एक्जाम की तैयारी के चलते काफी एग्जॉस्टेड ( exhausted ; ) था और इस वजह से पूरी तरह अपनी स्टडी में फोकस नहीं कर पाया . दुसरे वर्ड्स में बोले तो मार्क अनकांशली ( unconsciously ) मानता है कि “ ही इज नोट गुड इनफ ( he's not good enough " ) लेकिन मार्क अगर थोडा रियलस्टिक होता तो कुछ ऐसा बोलता : “ ओके कभी कभी मै नेगेटिव सोच लेता हूँ लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि मै स्टुपिड हूँ या हमेशा गलत हूँ " मै भी सही काम कर सकता हूँ " . अब ये एक ज्यादा हेल्दी फंडामेंटल और रियेलस्टिक बिलिफ है. 

( From " I should ” and “ I must " to “ I could " ) 

=> जैसा कि हमने लास्ट चैप्टर में देखा एक्सट्रीमली नेगेटिव बिलिफ्स किसी की भी लाइफ मिज़रेबल बना सकते है . आप देख सकते है कि लोग कुछ ऐसे एक्सक्लेमेशन देते है “ आई हेव टू " आई शुड "   आई मस्ट " इन्हें “ टाईरेनी ट्रायो " ( " Tyranny Trio " ) बोलते है .

अब इमेजिन करो ये सिचुएशन : आप सुबह जल्दी उठकर ये सोचते है कि आज मै सारा दिन क्या करने वाला हूँ . और आप खुद से बोलते है : " आज तो मै अपनी बुक के लिए 100 पेजेस ज़रूर लिखूगा " अब जरा सोचिये आप क्या बोल रह है क्योंकि ये तो ऑलमोस्ट इम्पोसिबल है कि कोई एक दिन में इतने पेजेस लिख सके . तो आप लिखना शुरू करते है और जैसे जैसे टाइम निकलता है आपको रियेलाइज होता है कि आप अपना गोल पूरा नहीं कर पाए . और शाम होते होते आप कम्प्लीटली मिज़रेबल फील करने लगते है . क्योंकि आपने इतना स्ट्रिक्ट गोल सेट किया था कि आप उसे पूरा ही नहीं कर पाए .

 

तो नेक्स्ट चीज़ आप क्या करेंगे आप खुद को ही क्रिटीसाइज़ ( criticize ) करने लगेंगे : " मुझसे कुछ नहीं हो पायेगा मै इस काबिल ही नहीं हूँ कि अपने गोल्स अचीव कर सकूँ " इस टाइप की बाते आपके माइंड में आने लगेंगी . लेकिन क्या होता अगर आपने शुरू में ही कोईरियलस्टिक गोल सेट किया होता तो चलो माना आप सुबह उठे और आपने बोला : " आज मै उतना करूँगा जितना हो पायेगा ना ज्यादा ना कम " . अब इस तरह का गोल से करने से आप टेंशन फी होकर अपना काम कर पाएंगे जितना हुआ तो हुआ नहीं हुआ तो ना सही . सबसे इम्पोर्टेट बात कि आपको बेकार में खुद को क्रिटिसाइज़ नहीं करना पड़ेगा .

  (Beliefs are only a construction , not reality) 

=> ह्यूमन बीइंग्स को अपने आस - पास के माहौल का अच्छे से पता होता है . लेकिन ये अंडरस्टेंडिंग परफेक्ट नहीं है ये परफेक्ट से कहीं ज्यादा दूर है खासकर जब रोज़मर्रा की बात हो जैसे सोशल रिलेशन और सेल्फ- परसेप्शन ( self - perceptions ) इसीलिए हमे हमेशा केयरफुल रहना चाहिए कि कहीं हम अपनी रीप्रेजेंटेशन्स ऑफ़ द वर्ल्ड को ग्रांटेड ना ले ले . दुनिया में हर चीज़ बदलती है . यहाँ तक कि मोस्ट पोजिटिव बिलिफ्स भी चाहे आप माने या ना माने ! जैसे डिप्रेसिव लोग रोंग है कि वे खुद को बुरा और स्टुपिड समझते है वैसे ही वे लोग भी रोंग है जो मेनिएक डिसऑर्डर ( manic disorder ) के शिकार है क्योंकि उन्हें ओवर सेल्फ - कॉंफिडेंट की प्रॉब्लम होती है . एक ही सिक्के के ये साइड्स है .

 स्पेशली इस कंटेम्पररी वर्ल्ड ( contemporary world ) में हमें खुद को लेकर बहुत ज्यादा केयरफुल रहने की ज़रूरत है . इन्स्टाग्राम फेसबुक और बाकी सोशल नेटवर्क्स हमे इस ट्रेप में फसाने की कोशिश करते है . और हम और ज्यादा सेल्फ अब्जोरबड ( self - absorbed ) होते जाते है हम दूसरो से ज्यादा सिर्फ अपने बारे में अपने फोलोवर्स और लाइक्स के बारे में सोचने लगते है . और प्रॉब्लम वाली बात तो ये है हम खुद पे ही घमंड करने लगते है कि हमारा एक स्ट्रोंग इन्स्टाग्राम अकाउंट है और हमारे इतने हज़ार या लाख फोलोवर्स है . लेकिन हमे ये नहीं भूलना चाहिए कि इस टाइप का सेल्फ कॉंफिडेंट फ्रेजाइल ( fragile ) होता है कभी भी टूट सकता है .

 रियल सेल्फ कांफिडेंस तब आता है जब हम खुद की मिस्टेक्स और कमियां समझते है . हमे रियेलाइज होता है कि कोई भी परफेक्ट नहीं होता हम नार्मल ह्यूमन बीइंग है कोई सुपरमेन नहीं . बिलिफ्स सेल्फ- कॉन्सेप्ट्स और रीप्रेजेंटेशन्स अचानक से नहीं आ जाते . उन्हें यंग एज से ही खुद के अंदर कंस्ट्रक्ट करना पड़ता है ताकि हमे बड़े होकर उसे अपनी लाइफ में अप्लाई कर सके .

 साईंकोलोजिस्ट इस बात को मानते है कि यंग एज से ही बच्चो में स्टोंग बिलिफ्स डेवलप होने लगता है . खुद के प्रति और अपने आस - पास के माहौल के प्रति जो उनके आईडियाज बनते है वो एसेंशियल है . अर्ली चाइल्डहुड में डाईफंक्शनल बिलिफ्स ( dysfunctional beliefs )  की वजह से ही  पर्सनेलिटी डिसऑर्डर जैसी कई सारी मेंटल प्रोब्लम्स बाद में डेवलप होने लगती है . इसका एक एक्जाम्पल है : 

सारह ( Sarah ) जब 15 साल की थी तभी से उसमे बॉर्डरलाइन पर्सनेलिटी डिसऑर्डर ( borderline personality disorder ) के सिम्पटम्स नज़र आने लगे थे अब ये ज़ाहिर सी बात है कि उसकी ये प्रोब्लम काफी यंग एज में ही शुरू हो गयी होगी . इसके कुछ रीजन्स थे पहला तो ये कि सराह की माँ उसकी बिलकुल भी देखभाल नहीं कर पाई . उसे जब भी कंसोलेशन या एक सेफ वार्म एनवायरमेंट की ज़रूरत हुई तब उसकी माँ ने कभी भी उसे सपोर्ट नहीं किया . कई बार तो उसकी माँ इतनी कोल्ड और डिस्टेंट हो जाती थी कि सारह को डाउट ( doubt ) होता था कि वो उसकी सगी माँ है भी या नहीं . इसके अलावा उसके पापा की एब्सेंस ( absence ) से सिचुएशन और खराब होती चली गयी . वो शायद ही कभी सराह से मिलते और अगर मिलते भी तो उसकी उतनी केयर नहीं करते थे . हालाँकि वो एक अच्छे एक्टर थे लेकिन वो अच्छे पिता बिलकुल भी नहीं थे . तो अपनी पूरी लाइफ सराह को रिजेक्शन ही मिली यहाँ तक कि अपने पेरेंट्स से भी .

 अब एक छोटे बच्चे के लिए इसका क्या मतलब हो सकता है यही ना कि : “ मै अच्छी नहीं हूँ इसलिए मुझे कोई प्यार नहीं करता " . और ऐसा बच्चा जब बड़ा होगा तो हैरानी की बात नहीं अगर उसमे प्रोब्ल्मेटिक बिहेवियर दिखने लगे जैसे कि - डेलीक्यूएंशी ( delinquency ) , ड्रग अब्यूज ( drug - abuse ) इर्रिसपोसिब्ल सेक्सुअल बिहेवियर ( irresponsible sexual behavior ) वगैरह . और यही सब सराह के साथ भी हुआ -कहने की ज़रूरत नहीं कि ड्रग्स और बाकी चीजों से उसकी प्रोब्लम हद से ज्यादा बड गयी थी . साराह जैसे लोगो को सबसे पहले अपनी प्रॉब्लम का रूट ढूँढना चाहिए उन्हें ये रियेलाइज करना चाहिए कि जो बिलिफ्स उनके अर्ली चाइल्डहुड में डेवलप हुए उसकी वजह से ही आज उनकी ये हालत है . अपने रेकलेस बिहेवियर के लिए खुद को इलज़ाम नहीं देना चाहिए . और अब मोस्ट इम्पोर्टेट पार्ट : साराह को चाहिए कि वो अपने पेरेंट्स को माफ़ कर दे . क्यों क्योंकि शायद उनके साथ भी बचपन में कुछ ऐसा ही गुज़रा हो जहाँ उनके कोल्ड और हार्मफुल एनवायरमेंट मिला हो .

 लौइसे हे ( Louise Hay ) इसे कुछ ऐसे एक्सप्लेन करते है : “ अगर आप अपने पेरेंट्स को समझना चाहते है तो उनकी चाइल्डहुड की बाते सुने और अगर आप कम्पेशन ( compassion ) के साथ सुनेंगे तो आपको पता चलेगा कि उनके बिहेवियर में रिजिड पैटर्न या उनके फीयर्स कहाँ से आते है आपके पेरेंट्स जो कुछ आज आपके साथ कर रहे है हो सकता है कि उनके साथ भी बचपन में कुछ ऐसा ही हुआ हो "

( Change )  

=> Louse Hay  आपको चेंज और ट्रांसफॉरमेशन को लेकर कुछ रेलेवेंट सजेशन्स ( relevant suggestions ) देते है . जैसे कि वो एडवाइस देती है कि चेंज को हमें एक “ मेंटल हॉउस क्लीनिंग " की तरह लेना चाहिए . चेंजिंग का मलतब है कि आप कुछ रूम्स को क्लीन करते है कुछ ऐसे ही छोड़ देते है और कुछ को बिलकुल नए ढंग से कंस्ट्रक्ट करते है . अपनी पूरी लाइफ को किसी बड़े हाउस की तरह समझे जिसमे कई सारे रूम्स है एक रूम गिटार प्लेइंग रूम है दूसरा आपका करियर रूम है और एक आपका फेमिली रूम है . कुछ और लेस इम्पोर्टेट रूम्स भी है जैसे कि बेसमेंट जहाँ आपके ओल्ड फ्रेंड्स है . ये ओल्ड फ्रेंड्स आपको लाइफ में कभी होते है कभी नहीं लेकिन ये आपकी लाइफ का एसेंशियल पार्ट नहीं है.

 तो इस तरह से जब आप अपनी लाइफ को इमेजिन करते है तो आपके लिए अपनी प्रायोरिटीज सेट करना ईजी हो जाता है . जैसे हमारे एक्जाम्पल में हमने ओल्ड फ्रेंड्स को बेसमेंट में रखा . जिसका मतलब है कि आपकी लाइफ में उनकी सिग्नीफिकेंट इम्पोर्टेस भी नहीं है कि आप सिर्फ उनके बारे में सोचे . दुसरे केस में कुछ ऐसे भी रूम्स होंगे जिन्हें आप कम्प्लीटली डिस्ट्रॉय करना चाहे जैसे मान लो कि आपको प्रोफेशन चेंज करना है . तो इसके लिए आप अपने मेंटल हॉउस को कम्प्लीटली रीस्ट्रक्चर करना चाहेंगे .

Let. Go of The Past ; Forgive  )

=> सबसे पहले तो आप उन मिस्टेक्स को भूल जाए जो कभी आपने की थी . ये बात हमने पहले भी मेंशन की थी कि कुछ लोग खुद के लिए ही एक्सट्रीमली हार्श हो जाते है जिससे कई बार उनकी खुद की लाइफ बर्बाद हो सकती है . लोजिकल स्टेप ये होगा कि खुद को और दुसरे लोगो को माफ़ करना सीखे . लेकिन ये ना हो कि आप फिर से वही मिस्टेक रीपीट करते रहे और लोगो को भी करने दे . बल्कि अपनी कमियों और खूबियों को एक्सेप्ट जो आपकी अच्छी क्वालिटी है उसे मेंटेन रखे जो कमी है उसे छोड़ दे 

 एमी वाइनहॉउस के बारे में तो हम सब जानते है . वो एक ग्रेट सिंगर थी जो म्यूजिक की दुनिया में एक नयी हवा लेकर आयी . उसके पास पैसा था वो खूबसूरत और फेमस थी लेकिन फिर वो धीरे - धीरे एडिक्शन की तरफ बडती चली गयी . उसके साथ हुआ ये कि : उसे बुरी लत लग गयी थी बेशक उसे पता था कि एडिक्शन एक बुरी चीज़ है लेकिन वो इसके आगे कमज़ोर पड़ गयी थी . उसने अपनी पास्ट मिस्टेक्स के लिए हमेशा खुद को ही ब्लेम किया . वो जितना उन गलतियों के बारे में सोचती और भी मिज़रेबल फील करती थी . हम सबको पता है कि ड्रग एडिक्ट्स अपनी प्रोब्लम्स से बचने के लिए क्या करते है- वे और ज्यादा ड्रग्स लेने लगते है . लेकिन एमी का केस एक्सट्रीम था हर कोई खुद को नशे में इस तरह से नहीं डूबाता . अगर हम अपने पास्ट को एक्सेप्ट नहीं करेंगे तो कभी भी खुद को माफ़ नहीं कर पाएंगे .

 अब सेकंड पार्ट . आप दूसरो को माफ़ करना सीखे ये बहुत ज़रूरी है . हालांकि ये किसी के लिए भी इतना आसान नहीं होता पर हमे करना पड़ता है . इसे एक एक्जाम्पल से समझने की कोशिश करते है । हम सबके साथ ये कभी ना कभी तो हुआ ही होगा कि कभी हमारे फ्रेंड्स हमे गलत समझ बैठते है . अब इसमें लोजिकल स्टेपये होगा कि आप एक्सट्रीमली गुस्सा होते और उस फ्रेंड लड़ पड़ते है . और इस बात के चांसेस भी है कि आपकी दोस्ती हमेशा के लिए टूट जाए .

 इस तरह की कोंफ्लिक्ट सिचुएशंस तब तक रहेगी जब तक कि आप दोनों में से कोई सॉरी ना बोल दे . यहाँ आपको रेशनल साइड में होना चाहिए.जैसे आप कुछ ऐसा बोल सकते है : “ देखो मुझे मालूम है तुम उस दिन गुस्से में थे और मैंने भी ओवररिएक्ट कर दिया था मै तुम्हे ब्लेम नहीं करूँगा . आई होप कि तुम्हे मुझे माफ़ कर दोगे जैसे मै तुम्हे करता हूँ . आप लास्ट पैराग्राफ में देख सकते है कि माफ़ी माँगना उतना ही ज़रूरी है जितना कि दूसरो को माफ़ करना . लोगो को शो कराना ज़रूरी है कि आप अपनी मिस्टेक एक्सेप्ट कर सकते है और उन्हें सुधार भी सकते है .

( Holistic Philosophy  )

=> Louise Hay  एक " होलिस्टिक फिलोसफी " के फोलोवर है . और इसे पॉइंट ऑफ़ व्यू से देखे तो हमारी व्होल बीइंग मैटर करती है इसका सिर्फ एक पार्ट नहीं . हम खुद को डिसरिस्पेक्ट करके ये नहीं बोल सकते कि : “ बस मुझे ये और वो चेंज करना है बाकि सब ठीक है " . क्योंकि ऐसे काम नहीं चलेगा अगर एक चीज चेंज करनी है तो बाकि चीज़े भी इस प्रोसेस में एडाप्ट की जाएँगी . पहले - पहले ये कांसेप्ट थोडा कन्फ्यूजिंग लगेगा इसलिए इसे एक एक्जाम्पल से समझते है .

 मान लो आपको एक बिल्डिंग मोडीफिकेशन चाहिए जैसे कि एक और फ्लोर एड करना है तो आप ऐसा नही कर सकते कि ऊपर से बस एक फ्लोर एड कर दिया और बाकी पहले जैसा रहा . आपको पहले बिल्डिंग की फाउंडेशन कितनी स्ट्रोंग है ये चेक करना होगा ताकि एक और फ्लोर का वेट सपोर्ट कर सके . इसके अलावा आपको नए फ्लोर तक पहुँचने के लिए एलीवेटर या सीढियां लगवानी होंगी और फिर उस फ्लोर के लिए भी नया एयरकंडीशनर हीटिंग सिस्टम वगैरह खरीदना होगा . तो देखा आपने कि एक सिम्पल चेंज ( एक और फ्लोर एड करना ) करने के लिए बाकी चीजों में भी चेंज लाना पड़ता है .

 सेम यही हमारी लाइफ के साथ भी है . जैसे मान लो आप जॉब चेंज करना चाहते हो . अब ये बताने की ज़रुरत नहीं कि ये आपकी लाइफ का बड़ा चेंज होगा लेकिन कई बार हमे पता ही नहीं चलता कि ये क्रूशियल भी हो सकता है . नॉर्मली हम अपनी बाकी लाइफ में चेंज लाये बिना एक न्यू जॉब ढूंढना शुरू कर देते है . लेकिन ये तरीका इफेक्टिव नहीं है . क्या पता नयी जॉब ज्यादा मुश्किल हो और वर्किंग आवर्स भी ज्यादा हो . अगर ऐसा हुआ तो आपको अपनी पूरी की पूरी लाइफ स्टाइल चेंज करनी पड़ेगी - आपकी सोशल लाइफ सफर करेगी दोस्तों के लिए आपके पास टाइम नहीं होगा वगैरह वगैरह .

  Louise Hay  हमे बहुत से तरीके बताते है जिनसे हम अपनी होलिस्टिक हेल्थ इम्प्रूव कर सकते है . काम्प्लेक्स लोगो के लिए ऐसी कई एक्सरसाईंजेस है . सबसे पहले तो आपको अपनी बॉडी का ख्याल रखना है -हेल्थी खाए . एनशियेंट रोमन्स का मानना था कि “ मेंस साना इन कार्पोरे सानो " ( menssana in corporesano ) " जिसका मतलब है कि “ अ हेल्थी माइंड इन अ हेल्थी बॉडी " .

 इसके अलावा भी कई तरीको से होलिस्टिक हेल्थ इम्प्रूव की जा सकती है . जैसे कि प्रेयर और मेडीटेशन . वैसे ये दोनों कम्प्लीटली डिफरेंट चीज़े लगती है लेकिन दोनों एक ही सिक्के के दो साइड्स है . ये दोंनो ही मेंटल एक्सरसाइज़ ना सिर्फ आपको पीस ऑफ़ माइंड अचीव करने में हेल्प करती है बल्कि आपको एनेर्जी और मोटिवेशन दोनों देती है . जिससे आप कोई भी न्यू चैलेन्ज फेस कर सकते है .

 इमेजिनेशन और विजुअलाइजेशन दो ऐसी इंट्रेस्टिंग टेक्नीक्स जो आपकी ओवरआल हीलिंग में हेल्प करती है और हेल्थ को भी इम्प्रूव करती है . कोगनिटिव बिहेविरियल थेरेपी ( ( Cognitive Behavioral Therapy ) में कई तरह की विजुएलाइजेशन टेक्नीक्स यूज़ की जाती है - जैसे कि पोजिटिव रेशनल और इमोशनल विजुएलाइजेशन टेक्नीक्स . हम एक एक्जाम्पल से बताते है कि ये एक्सरसाइज़ कैसे की जाती है -

 स्टीफन 20 साल का एक लड़का है जिसकी लाइफ में बहुत सी प्रोब्लम्स है . लेकिन उसकी मोस्ट सीरियस प्रॉब्लम है सोशल एंजाईटी ( social anxiety ) - लोगो से इंटरएक्ट करते हुए वो बहुत ज्यादा टेन्श हो जाता है जिससे वो ठीक से बात नहीं कर पाता है . तो इसके लिए उसने पोजिटिव विजुएलाइजेशन टेक्नीक को यूज़ किया -सबसे पहले तो उसने अपनी कोर ऑफ़ द प्रोब्लम यानी टाइप ऑफ़ एक्सट्रीम नेगेटिव बिलिफ को आईडेटीफाई ( identified ) किया जो उसके माइंड में बैठ गया था कि “ मै अच्छा नहीं हूँ लोग मुझे देखकर जज करेंगे " . अब उसने ये इमेजिन किया कि अगर उसके अंदर पोजिटिव सेल्फ बिलिफ होता तो फिर उसका बिहेव कैसा होता . “ मै एक काम्प्लेक्स ह्यूमन बीइंग हूँ जिसके अंदर कुछ कमीयां भी है और खूबी भी . लोग मेरी वीकनेसेस नोटिस करेंगे लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि मै बुरा हूँ " .

 स्टीफन ने रियेलाईज़ किया कि उसके लिए इस टाइप का सेल्फ कांसेप्ट ज्यादा बैटर रहेगा . अगर वो अपना फंडामेंटल सेल्फ - रेप्रेजेंटेशन चेंज करेगा तो उसकी सोशल एंजाईटी भी खत्म हो जाएगी .. इस बुक के ऑथर एक अच्छी एक्सरसाइज़ बताते है :: खुद को ढीला छोड़ दो एक डीप ब्रीथ लो और एक्ज्हेल ( exhale ) करते अपनी सारी टेंशन भी बाहर निकाल दो . अपने पूरी बॉडी को रिलेक्स करने दो पढ़ते टाइम आपके माइंड में कोई टेंशन नहीं होनी चाहिए . अपने गले जीभ और शोल्डर्स मसल्स ढीले छोड़ो . आप कोई बुक तभी होल्ड कर पायेंगे जब आपके हैंड्स और आर्स रिलेक्स्ड हो . अपने बैक बॉडी पेल्विस पार्ट और एबडोमेन को रिलेक्स करो . आराम से ब्रीथिंग करते हए अपने लेग्स और फीट को भी ढीला छोड़ दो .

 ये पैराग्राफ पढने से पहले और उसके बाद जब आपने रिलेक्स होना स्टार्ट किया तो क्या कोई चेंज फील किया आपने नोटिस करो कि आप कितना होल्ड कर सकते हो . अगर आप ये बॉडी के साथ कर सकते हो तो माइंड के साथ भी कर सकते हो . इस रिलेक्स्ड और कम्फरटेबल ( comfortable ) पोजीशन में खुद से “ मै रिलेक्स हो रहा हूँ आई ऍम टेंशन फ्री मेरा सारा डर  दूर हो रहा है सारी ओल्ड लिमिटेशन्स दूर हो रही है मुझे आराम और सुकून फील हो रहा है . आई एम् एट पीस विथ मी आई एम् एट पीस विथ प्रोसेस ऑफ़ लाइफ " आई ऍम सेफ " ये एक्सरसाइज़ दो या तीन बार करे और लेटिंग गो के एहसास को फील करो .

  ( Body and Mind )

 

=> लास्ट चैप्टर में हमने बॉडी और माइंड के बीच का कनेक्शन एनालाइज करना स्टार्ट किया . हमने देखा कि ये दोनों आपस में लिंक्ड है . जैसे डिजीज ( diseases ) पेन और हेडएक ( headaches ) हमारे माइंड को भी अफेक्ट करती है . वैसे ही एन्जाइटी ( anxiety ) फ्रस्ट्रेशन ( frustration ) और साइकोलोजिकल पेन भी हमारी बॉडी को अफेक्ट करता है . इसीलिए लाइफ के इन दोनों एस्पेक्ट्स को देखना चाहिए .

 आजकल बहुत से लोग बॉडी बनाने जिम जाने लगे है . हेल्दी ओरगेनिक फूड इंडस्ट्री ब्लूम कर रही है . ये सब अच्छी चीज़े है लेकिन अगर आपने अपनी मेंटल हेल्थ का ख्याल नहीं रखा तो सिर्फ बॉडी हेल्थी रखने से काम नहीं चलेगा . ये बात बहुत पहले ही साइंटिस्ट्स ने नोट कर ली थी कि कुछ बीमारियाँ साइकोलोजिकल प्रोब्लम्स की वजह से भी होती है . एक टाइप का एस्थमा ( asthma , ) और कई सारी स्किन कंडीशन जैसे सोरासिस ( psoriasis ) या सीबोरा ( seborrhea ) और कई तरह की कार्डियोवेसक्यूल डिजीज साइकोसुमेटिक इलनेस ( psychosomatic illnesses ) के अंडर आती है . इसके अलावा हमारे डाईजेस्टिव सिस्टम में भी एक तरह की डिस्टर्बेस आ जाती है जिसे क्रोन'स सिंड्रोम ( Chron's syndrome ) बोलते है .

  ( Focus on Positive Things  )

=> Louise Hay  एडवाइज करते है कि हमेशा पोजिटिव चीजों पर फोकस करे इससे आप हाई स्पिरिट में रहंगे और एक ऑप्टीमिज्म आपके अंदर बना रहेगा . बेशक कहना आसान है लेकिन करना मुश्किल लेकिन फिर भी आपको कोशिश तो करनी पड़ेगी . यहाँ  Louise  आपको कुछ एक्सरसाइजेस और टिप्स बता रहे है जो रियली हेल्पफुल है .

 जैसे कि जब आप खुद से बात करे तो हमेशा प्रेजेंट टेन्श यूज़ करके बात करे जैसे कि " मै हार्डवर्किंग और एम्बिशिय्स ( ambitious ) पर्सन हूँ " ये एक्सरसाइज़ आपको प्रेजेंट मोमेंट में हेल्प करेगी . हमारे भले के लिए हमे आज में खुश रहना सीखना होगा . आज की मॉडर्न सोसाइटी के लोग एक फ़ास्ट लाइफस्टाइल जी रहे है उनके लिए जीने का मतलब है एक सुपरफिशियली इंट्रेस्टिंग और हैपनिंग चीजों से भरी हुई लाइफ . अक्सर ऐसे लोग नोटिस तक नहीं लेते कि उनके साथ क्या हो रहा है . हर चीज़ इतनी फास्ट हो रही है कि किसी एक चीज़ पर फोकस करना मुश्किल है .

 अब सुजेन को ही लो वो एक हाइली सक्सेसफुल 30 साल की बिजनेसवुमन है . रोज़ सुबह उठते ही उसकी भागदौड़ स्टार्ट हो जाती है . काम पर जाने की जल्दी में वो आराम से बैठकर नाश्ता तक नहीं कर पाती जो हाथ लगा खा लेती है . फिर थोड़ी देर भी अगर वो ऑफलाइन रहे तो उसके पास ईमेल्स का ढेर लग जाता है जिनका रिप्लाई उसे देना होता है . वो जल्दी - जल्दी ऑफिस भागती है जहाँ उसे एक साथ कितने ही टास्क करने होते है . उसके पास इतना काम होता है कि अक्सर वो देर तक ऑफिस में रहती है जिसकी वजह से उसकी अपनी कोई प्राइवेट लाइफ नहीं है . यहाँ तक कि फ्रेंड्स के साथ घुमते टाइम भी उसके ऊपर प्रेशर रहता है क्योंकि उसका शेड्यूल बड़ा टाइट है ( जिम जाना पार्टनर से मीटिंग एंटरटेनमेंट ) वगैरह . 

वैसे देखने में सुजेन की लाइफस्टाइल आपको बड़ी नार्मल लगेगी क्योंकि आज सभी लोग इस तरह की बीजी लाइफस्टाइल जी रहे है . लेकिन यहाँ पर एक चीज़ काफी गलत है -वो ये कि सुजेन जो कुछ करती है पूरे दिलो - दिमाग से नहीं करती क्योंकि उस पर हमेशा टाइम का प्रेशर रहता है वो प्रेजेंट मोमेंट में कभी नहीं रहती उसका ध्यान हमेशा नेस्क्ट अपोइन्टमेंट में रहता है .

 यही रीजन है कि  Louise Hay  आपको प्रेजेंट टेंस ज्यादा यूज़ करने की एडवाइस देते है . ये आपको प्रेजेंट मोमेंट में हेल्प करेगा जिससे आप अपना हर पल खुलकर जी सकेंगे . या जैसे Louise hay कहते है : " याद रखे आप खुद को सालो से क्रिटिसाइज़ ( criticizing ) करते आ रहे है लेकिन इससे कुछ फायदा नहीं हुआ खुद को अप्पूव करना सीखो और फिर देखो क्या होता है "

( Conclusion  )

=> हीलिंग का प्रोसेस लम्बा और काफी मुश्किलों से भरा हो सकता है लेकिन इन हर्डल्स को दूर किया जा सकता है अपनी हार्ड वर्क और प्रिजर्वनेस ( perseverance ) से आप अपने गोल्स अपनी हैप्पीनेस अचीव आकर सकते है . ये बात समझना मोस्ट इम्पोर्ट है कि फेलर्स और हार्ड टाइम्स तो हर किसी की लाइफ में आते है इन्हें आप कण्ट्रोल नहीं कर सकते . यही पर हमारी पोजिटिव थिंकिंग काम आती है नेगेटिव बातो पर फोकस मत करो बल्कि फ्यूचर की पोजिटिव चीजों को देखो . और अब हम आपको “ यू केन हील योरसेल्फ " का मोस्ट इम्पोर्टेट एस्पेक्ट बताएँगे :

1. People's problems are caused by dysfunctional beliefs :

=> Louise Hay  इस बात को क्लियर करते है कि हमारी लाइफ की ज़्यादातर प्रॉब्लम के पीछे हमारा नेगेटिव सेल्फ - बीलिफ है . खुद को ये बोलते रहना कि “ आई एम् नोट गुड इनफ ( I am not good enough " ) ठीक नहीं है . और कुछ मेंटल डिजीज इसी फंडामेंटल बिलिफ की वजह से पैदा होती है जैसे कि डिप्रेशन .

2. Replace expressions like :

=> आई कुड " या " आई माईट " के बजाये बोले " आई हेव टू " या " आई मस्ट " . अपोलोजेटिक सेल्फ - एक्सपेक्टेशन हमारे अंदर नेगेटिव इमोसंश पैदा करते है .

3.   Beliefs are only a construction , not reality :

=> हम इंसानों में अपने आस - पास के माहौल की अच्छी अंडरस्टेडिंग होती है . लेकिन ये अंडरस्टेंडिंग परफेक्ट नहीं है बल्कि परफेक्शन से काफी दूर है . स्पेशली बात जब डेली लाइफ सोशल रिलेशंस या सेल्फ - परसेप्शन की हो .

4. Change :

=> खुद को ट्रांसफॉर्म करने और लाइफ चेंज लाने के लिए Louse Hay  कुछ रेलीवेंट सजेशन देते है जैसे कि वो बोलते " चेंज को आप किसी मेंटल हाउस क्लीनिंग की तरह समझो . जैसे कि आपने कुछ रूम्स क्लीन किये कुछ छोड़ दिए और कुछ starnalich Architect font ( restructure ) 

5. Forgive Yourself :

=> सबसे पहले तो खुद को अपनी पास्ट की गलतियों के लिए माफ़ करना सीखो हमने ये पहले भी मेंशन किया है कि कुछ लोग खुद को कभी माफ नहीं कर पाते है ऐसे लोग अपने लिए एक्सट्रीमली हार्श हो जाते है और खुद की ही लाइफ बर्बाद कर लेते है .

6. Holistic Philosophy :

=> Louise Hay  एक सोसाइटी के फोलोवर है जिसे “ होलिस्टिक फिलोसफी " के नाम से जाना जाता है . इस सोसाइटी के पॉइंट ऑफ़ व्यू से हमारी पूरी पर्सनेलिटी मैटर करती है नाकि इसके कुछ पार्ट्स . हम खुद को डिसरिस्पेक्ट करके ये नहीं बोल सकते कि : “ बस मुझे ये और वो चेंज करना है बाकि सब ठीक है " . क्योंकि ऐसे काम नहीं चलेगा अगर एक चीज चेंज करनी है तो बाकि चीज़े भी इस प्रोसेस में एडाप्ट की जाएँगी

उम्मीद है आपको ये पसंद आया |

 

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