शनिवार, 24 अक्टूबर 2020

Dr. Bheem Rao Ambedkar journey In Hindi | Waiting For A Visa Book Summary In Hindi By Dr. Bheem Rao Ambedkar | Dr. Bheem Rao Ambedkar Bio Graphy In Hindi


PREFACE


=> Foreigners बेशक अनटचेबिलिटी (Untouchability) के बारे में जानते है लेकिन उन्हें जरा भी अंदाजा नहीं होगा कि असल में ये किस हद तक अमानवीय है . उनके लिए तो ये सोचना भी बड़ा अजीब है कि क्यों कुछ मुठ्ठी भर लोग गांव से बाहर अलग - थलग रहने को मजबूर है . वो भी ऐसे गाँव के बाहर जहाँ हिन्दू लोग मेजोरिटी में रहते है . ये अछूत कहे जाने वाले लोग हर रोज़ गाँव की गलियों से गुजरते हुए गंदगी और कचरा सर पे ढोके लेकर जाते है . हिन्दूओं के दरवाजे पर जाकर उनकी झूठन खाते है हिन्दू बनिया की दूकान से तेल - मसाले खरीदते है तो वो उन्हें छुए बिना सामान देता है .

पूरे गांव को अपना ही घर समझते है फिर भी गांव की किसी चीज़ को छूने का उन्हें हक नहीं है . लोग इनकी परछाई से भी बचकर निकलते है . अगर ये किसी को गलती से भी छू ले तो वो आदमी इन्हें दस गालियाँ देकर तुरंत नहाने चला जाता है . प्रोब्लम ये है कि हिन्दू अछूतों को कैसे ट्रीट करते है , ये कैसे बताया जाये , समझ नहीं आ रहा . एक जेर्नल डिस्क्रिप्शन या इस छुवाछूत के केस रिकोर्ड और हिन्दूओ का इनके प्रति ट्रीटमेंट , ये दो मेथड है जिनसे ये बात समझाई जा सकती है . मुझे लगता है कि पहले से दूसरा वाला तरीका ज्यादा इफेक्टिव मैंने जो ये सब बाते लिखी है वो अपने और दूसरो के एक्सपीरिएंस के बेस पर है . तो अब मै अपने साथ हुई उन बातो से इस कहानी की शुरुवात करता हूँ . डॉक्टर बी , आर . अम्बेडकर Dr. B. R. Ambedkar पार्ट वन ( ONE ) कोरेगाँव की वो घटना जो बचपन में घटी थी , आज भी डराती है .

(A Childhood Journey to Koregaon Becomes a Nightmare)


=> हमारी फेमिली असल में बोम्बे प्रेजिडेंसी में रत्नागिरी डिस्ट्रिक के दापोली तालुका से बिलोंग करती है . ईस्ट इंडिया कंपनी के शुरुवाती दिनों में ही मेरे फोरफादर्स ने अपना पुश्तैनी काम छोडकर कंपनी की आर्मी ज्वाइन कर ली थी . मेरे फादर भी फेमिली ट्रेडिशन को आगे बढाते हुए कंपनी की आर्मी में भर्ती हुए . ईस्ट इण्डिया कंपनी में रहते हुए वो ऑफिसर की रेंज तक पहुंचे और सूबेदार बनकर रिटायर हुए थे . रिटायरमेंट के बाद फादर हमे लेकर दापोली में चले आये , हमेशा के लिए वही सैटल होने के लिए . लेकिन फिर कुछ सोचकर उन्होंने अपना इरादा बदल दिया . हम लोग दापोली छोडकर सतारा चले आये थे जहाँ हम 1904 तक रहे थे . वो पहली घटना जहाँ तक मुझे याद आता है यही पर 1901 में घटी थी .

जब हम सतारा में थे मेरी मदर की डेथ हो चुकी थी . मेरे फादर कोरेगांव जोकि सतारा डिस्ट्रिक्ट के खताव तालुका में आता है , वहां पर कैशियर की नौकरी करते थे . इस जगह पर बोम्बे गवर्नमेंट का टैंक खुदाई का काम चल रहा था ताकि वहाँ की गरीब जनता को कुछ काम मिल सके . उस इलाके में हज़ारो लोग भुखमरी से मर रहे है . कोरेगाँव जाने से पहले फादर ने मुझे , मेरे बड़े भाई और मेरी मरी हुई बहन के दोनों बच्चो को हमारी एक रिश्ते की चाची और कुछ मेहरबान पड़ोसियों के भरोसे छोड़ा था . आंटी दिल की बहुत अच्छी थी लेकिन उसका होना ना होना बराबर ही था . एक तो वो बौनी थी और दूसरा उसके पैरो में कोई बीमारी थी जिसके कारण वो ठीक से चलफिर नहीं पाती थी . कई बार तो हमें उसे उठाना पड़ता था . मेरी और भी बहने थी लेकिन सब शादीशुदा थी और अपने ससुराल वालो के साथ वहां से काफी दूर रहती थी . अब आंटी से तो कुछ काम नहीं होता था इसलिए खाना पकाने की जिम्मेदारी भी हमारे सर थी .

हम चारो बच्चे स्कूल जाते थे और अपना खाना भी खुद ही बनाते थे . रोटी बनाने में मुश्किल आती थी इसलिए हम ज्यादातर पुलाव खाते थे -- जोकि रोटी बानाने से ईजी काम था , इसमें ज्यादा कुछ नहीं करना पड़ता था , बस चावलों के साथ मटन मिक्स करके पका लो . कैशियर होने के नाते फादर के लिए स्टेशन छोडकर सतारा आना पॉसिबल नहीं था . इसलिए फादर ने हमें लैटर लिखा कि हम कोरेगाँव आकर गर्मी की छुट्टी में उनके साथ रहे . कोरेगाँव जाने की बात सुनकर हम बच्चे बड़े खुश हुए , स्पेशली उस वक्त तक हममें से किसी ने भी कभी ट्रेन नहीं देखी थी . हमने जोर - शोर से जाने की तैयारी शुरू कर दी . इंग्लिश स्टाइल की नयी शर्ट्स खरीदी गयी , डिजाइन वाली कैप्स , नए शूज़ , सिल्क बॉर्डर की धोती , जाने से पहले हमने सब कुछ खरीदा था . फादर ने हमे ट्रेवलिंग के बारे में सब कुछ समझा दिया और ये भी बोला कि डेट हम उन्हें पहले से इन्फॉर्म कर दे ताकि वो हमे लेने अपना पीऑन भेज सके जो हमे रेलवेस्टेशन से कोरेगांव लेकर जाएगा . इस प्रॉपर अरेंजमेंट करने के बाद मै , मेरे बड़े भाई और मेरी सिस्टर के बेटे , हम तीनो कोरेगाँव के लिए निकल पड़े . आंटी को हमने सतारा में ही छोड़ दिया और पड़ोसियों को उनकी देखभाल करने के लिए बोल दिया था . रेलवे स्टेशन हमारे घर से कोई 10 मील दूर था . हमने स्टेशन जाने के लिए एक तांगा लिया .

हम लोग नए - नए कपडे पहन कर बैठे थे और कोरेगाँव जाने के लिए बड़े एक्साईटेड थे . पीछे से हमारी आंटी का रो - रोकर बुरा हाल था , हमसे दूर रहने की बात से ही उनकी आधी जान निकल रही थी . स्टेशन पहुंचकर मेरे भाई ने टिकेट्स ली और मुझे और मेरी सिस्टर के बेटे को दो - दो आने की पॉकेट मनी दी . पैसे हाथ में आते ही हम नवाब हो गए , सबसे पहले तो हमे लेमनेड खरीद कर पी . कुछ टाइम बाद ट्रेन की व्हिसल बजी . हमे लगा कहीं हम छूट ना जाये इसलिए जल्दी से हम ट्रेन में चढ़ गये . फादर ने हमे मसूर में उतरने को बोला था जो कोरेगाँव के सबसे पास वाला स्टेशन था . ट्रेन शाम के पांच बजे मसूर स्टेशन पर पहुंची . हम लोग अपना सामान लेकर ट्रेन से उतरे . हमारे साथ जो लोग उतरे थे सब अपने - अपने रास्ते जा चुके थे . बस हम चारो ही प्लेटफॉर्म पर रह गए थे , अपने फादर या उनके सर्वेट के इंतज़ार में जो हमे लेने आने वाले थे . हमने बड़ी देर तक वेट किया मगर कोई नहीं आया . एक घंटे बाद स्टेशन मास्टर हमारे पास आया . उसने हमसे टिकेट दिखाने को बोला तो हमने दिखा दियाफिर उसने पुछा " तुम लोग यहाँ क्यों खड़े हो ? " हमने बताया कि हमे कोरेगाँव जाना है और हमे लेने हमारे फादर या उनका सर्वेट आने वाले थे मगर वो लोग आये नहीं . और हमे आगे का रास्ता नही मालूम . हम लोगो के कपडे और हाव - भाव से कोई नहीं बोल सकता था कि हम अछूत है . स्टेशन मास्टर को लग रहा था कि हम शायद ब्राह्मण के बच्चे है इसलिए उसे हमसे बड़ी हमदर्दी हो रही थी . और जैसा कि हिन्दूओं में रिवाज है , उसने हमसे हमारी कास्ट पूछी . एक सेकंड में मेरे मुंह से निकला कि हम महार है ( महार कम्यूनिटी को बोम्बे प्रेजिडेंसी में अछूत समझा जाता है ) स्टेशन मास्टर के चेहरे पे हवाईयां उड़ने लगी , एक ही पल में उसका रंग बदल गया . उसके चेहरे से नफरत के भाव साफ़ झलक रहे थे , जैसे ही उसने सुना कि हम कौन है , वो तुंरत वापस अपने रूम में चला गया और हम जहाँ थे वही खड़े रहे . फंद्रह से बीस मिनट और गुजर गए . सूरज डूबने जा रहा था . मेरे फादर और उनके सर्वेट का कहीं अता - पता नहीं था .
लास्ट में स्टेशन मास्टर भी अपने घर चला गया . हम लोग बेहद मायूस हो गए , जिस ख़ुशी और मस्ती में हम घर से निकले थे , अब उदासी में बदल गयी थी . आधे घटे बाद स्टेशन मास्टर वापस आया और पुछा " अब तुम लोगो ने क्या सोचा है ? " हमने कहा " अगर हमे कोई बैलगाडी किराए पर मिल जाए तो हम कोरेगाँव के लिए निकल लेंगे.नहीं तो पैदल ही चले जायेंगे अगर ज्यादा दूर नहीं हुआ तो " स्टेशन के बाहर कई सारी बैलगाडियां सवारी के इंतज़ार में खड़ी थी मगर हमारे महार होने के बात फैल गयी थी इसलिए कोई भी गाडीवाला हमे ले जाने को तैयार नहीं था . हम अछूत थे ना उनकी गाड़ियों को गन्दा जो कर देते . डबल किराये का ऑफर भी काम नहीं आया .
हमारी तरफ से बार्गेन करने वाला स्टेशन मास्टर जो अब तक खड़ा चुपचाप तमाशा देख रहा था , अचानक हमसे पूछने लगा ' क्या तुम बैल गाड़ी चला सकते हो ' . हमे लगा शायद वो हमारी हेल्प करना चाहता है तो हमने चिल्लाकर बोला " हाँ हाँ हम चला सकते है " . " तो ठीक है , बैल गाड़ी तुम चलाओगे मगर तुम्हे गाड़ी वाले
को डबल किराया देना होगा और वो पैदल तुम्हारे साथ - साथ चलेगा ” . इस शर्त के साथ एक गाड़ीवाला हमे अपनी गाड़ी देने को तैयार हुआ , आखिर होता भी क्यों नहीं , एक तो उसे डबल भाड़ा मिल रहा था और उपर से उसे किसी को अछूत के साथ भी नहीं बैठना पड़ेगा . अब शाम के छह बजकर तीस मिनट हो चुके थे , हम रात होने से पहले - पहले कोरेगाँव पहुंचना चाहते थे इसलिए हमने गाड़ीवाले से पहले ही पूछ लिया कि कोरेगांव अभी कितनी दूर है और हमे कितना टाइम लग जाएगा . लेकिन उसने हमे अश्योर किया कि कोरेगाँव तीन घंटे से ज्यादा दूर नहीं है . उसकी बात का यकीन करते हुए हमने अपना सामान चढाया और बैल गाड़ी में बैठ गए , जाने से पहले हमने स्टेशन मास्टर का शुक्रिया अदा किया .
हम में से एक ने गाड़ी हांकने की जिम्मेदारी ली और सफ़र शुरू हुआ . गाड़ी वाला हमारे साइड में ही चल रहा था , अभी स्टेशन से कुछ ही दूर एक नदी पडती थी . नदी सूखी पड़ी थी बस कहीं - कहीं पर पानी भरा हुआ था . गाड़ी वाले ने हमसे बोला " यहाँ रुक कर थोडा खाना - वाना खा लो , आगे रास्ते में पानी नहीं मिलेगा " . हमने उसकी बात मान ली और गाड़ी रोक दी . उसने बोला मुझे मेरे किराए में से थोड़े पैसे दे दो , पास के गाँव जाकर खाना खाके आता हूँ ' . मेरे भाई ने उसे थोड़े पैसे दे दिए . " मै जल्दी से खाना खाकर लौटता हूँ " उसने बोला और चला गया . भूख तो हमे भी बड़े जोरो की लगी थी तो हम भी खाना निकाल कर खाने लगे . आंटी ने पड़ोसियों को बोलकर रास्ते के लिए बढ़िया खाना बनवाया था . हमने टिफिन बॉक्स खोले और खाने बैठ गए . हम में से एक पानी लेने नदी के किनारे गया.मगर वो वहां पानी की जगह कीचड़ भरा हुआ था जिसमे जानवरों का गोबर भरा हुआ था . ये पानी इंसानों के पीने लायक तो हरगिज़ नहीं था . उसमे से इतनी बदबू आ रही थी कि हमे उलटी आ गयी .
हमने खाने के डब्बे बंद कर दिए और गाड़ी वाले का वेट करने लगे . उसका कहीं अता - पता नहीं था . फिर बड़ी देर बाद वो वापस आया तो एक बार फिर हमने जर्नी स्टार्ट की . कोई चार या मील चलने के बाद अचानक वो गाड़ी में चढ़ गया और गाड़ी खुद हांकने लगा . उसकी ये हरकत बड़ी अजीब थी . पहले तो वो हमारे साथ गाड़ी में बैठने को तैयार ही नहीं था कि कहीं हमारे टच करने से वो गंदा ना हो जाए और अब देखो खुद गाड़ी चला रहा था . पता नहीं उसे क्या हो गया था . खैर , डर के मारे हमने उससे कुछ पुछा भी नहीं , बस यूं ही चुपचाप बैठे रहे , हमे तो बस कोरेगाँव पहुँचने की जल्दी थी . बैल - गाड़ी चलती जा रही थी . हम सब खामोश थे . यूं ही चलते - चलते थोड़ी देर बाद रात का अँधेरा छा गया . रोड्स में स्ट्रीट लैम्प ना होने की वजह से कुछ दिखाई नहीं दे रहा था.उपर से सड़क भी एकदम सुनसान थी , दूर - दूर तक ना आदमी ना आदमी की जात . हमारी जान सूख रही थी . मसूर से चले हुए बहुत देर हो गयी थी . लगभग तीन घंटे से ज्यादा का सफर हो चूका था . अब तक तो कोरेगाँव आ जाना चाहिये था .
हमे अब कुछ शक सा हो रहा था कि ज़रूर ये गाड़ीवाला हमे किसी सुनसान जगह पे ले जाकर मार डालेगा . क्योंकि हमने अच्छे कपडे और गोल्ड ज्वूलरी वगैरह पहनी हुई थी और पैसे भी थे हमारे पास . बेसब्री में हम जब भी उससे पूछते " भय्या , कोरेगाँव और कितनी दूर है ? तो उसका एक ही जवाब होता " ज्यादा दूर नहीं है , बस पहुँचने वाले है " . अब तक रात के दस बज चुके थे मगर कोरेगाँव नहीं आया था . हम लोग बड़ी देर तक रोते रहे और उस गाड़ीवाले को कोसते रहे मगर उसने कोई रीप्लाई नहीं दिया . तभी हमे दूर से लाईट जलती दिखी . गाड़ीवाले ने पुछा " तुम्हे वो लाईट दिख रही है ? ये टोल कलेक्टर की लाईट है , हम रात को यही रुकेंगे " . सुनकर हम थोड़े रिलेक्स हुए . जहाँ से लाईट आ रही वहां टोल कलेक्टर का हट था . हमने सवाल पूछ - पूछकर गाड़ी वाले की जान खा ली थी . " कब पहुंचेगे ? हम सही रोड से तो जा रहे है ना ? ' कितनी टाइम और
लगेगा ' ? वगैरह वगैरह . और पूरे दो घंटे बाद फाइनली आधी रात के वक्त बैलगाड़ी टोल कलेक्टर के हट पे आके रुकी . ये जगह एक पहाड़ी की नीचे थी , हमारी तरह वहां कई सारी बैल गाड़ियों की लाइन लगी हुई थी , सब यहाँ पर रात को रेस्ट करने के लिए रुके थे .
अब तक हमे जोरो की भूख लग आई थी . खाना तो हमारे पास था लेकिन पानी नहीं था . तो हमने अपने गाड़ी वाले से पुछा कि हमे पानी मिल सकता है क्या ? " गाड़ीवाले ने कहा " टोल कलेक्टर हिन्दू है और अगर तुमने बोला कि तुम महार हो तो पानी मिलने का तो सवाल ही नहीं है . " ऐसा करो को मुसलमान बोल दो , तब वो शायद तुम्हे पानी दे दे " उसकी एडवाइस पर मै टोल कलक्टर के पास गया और पुछा " थोडा पानी मिलेगा क्या ? " " कौन हो तुम ? " उसने पुछा . " हम मुस्लिम्स है " . क्योंकि मुझे अच्छी उर्दू आती थी इसलिए मैंने ये बात उर्दू में उसे कन्विंस करने के लिए बोली उसे हम पर शक तो नहीं हुआ लेकिन पानी हमे फिर भी नहीं मिला . उसने बड़े रुडली कहा " तुम्हारे लिए किसने यहाँ पानी रखा है , ऊपर पहाड़ी पे पानी मिल जाएगा , अगर चाहिए तो जाकर ले आओ , मेरे पास कोई पानी - वानी नहीं है " मै गाड़ी के पास आया और अपने भाई को सारी बात बताई . मुझे नहीं पता उसे कैसा फील हुआ होगा मगर उसने हम सबको सोने के लिए बोल दिया .


बैलो को गाड़ी से खोल दिया गया था , गाडी को नीचे जमीन पर रखा गया जिसके अंदर हमने अपने बिस्तर लगाए और सोने के लिए लेट गए . यहाँ काफी लोग थे इसलिए अब हम बेफ़िक्र होके सो सकते थे . लेकिन हमारे दिमाग में कई सारी बाते घूम रही थी . हमारे पास खाने की ढेर सारी चीज़े थे , और भूख भी काफी लगी थी लेकिन बस पानी नहीं था . और हमे पानी सिर्फ इसलिए नहीं मिल पा रहा था क्योंकि हम अछूत थे . और यही एक ख्याल बार - बार हमारे दिमाग में घूम रहा था . मैंने बोला हम सेफ जगह पर है इसलिए चलो सोते है . लेकिन मेरा भाई नहीं माना , हम चारो एक साथ सो ये बात उसे ठीक नहीं लग रही थी . कुछ भी हो सकता है , इसलिए दो लोग सोयेंगे और बाकि दो पहरा देंगे . " उसने आईडिया दिया . और इस तरह बारी से बारी से सोकर हमने पहाड़ी के नीचे वो रात गुजारी . सुबह पांच बजे के करीब गाड़ीवाला आया और बोला " कोरेगाँव के लिए निकलते है " मगर हमने साफ़ मना कर दिया , आठ बजे से पहले हम यहाँ से हिलेंगे भी नहीं " अब हम कोई चांस नहीं ले सकते , .गाड़ी वाला चुप हो गया . ठीक आठ बजे हम कोरेगाँव के लिए निकल पड़े और करीब ग्यारह बजे कोरेगाँव पहुंचे . मेरे फादर ने जब हमे देखा तो सरप्राइज़ रह गए ,
दरअसल उन्हें हमारे आने की कोई खबर नहीं थी . हमने इन्फोर्मेशन दी थी मगर वो मानने को तैयार ही नही थे . बाद में पता चला कि सारी गलती दरअसल सर्वेट की थी . उसे हमारा लैटर मिला मगर वो फादर को देना भूल गया था . इस घटना का मेरी लाइफ में बड़ा इम्पोर्टेट रोल रहा है . तब मै सिर्फ नाइन इयर्स का था . लेकिन आज भी इस घटना का असर मेरे दिलो - दिमाग में उतना ही गहरा है . मुझे ये मालूम था कि मेरा जन्म एक अछूत फेमिली में हुआ है मगर अछूत के साथ असल में कैसा सुलूक किया जाता है ये बात मै बड़े अच्छे से समझ चूका था . जैसे कि हमको बाकि बच्चो के साथ बैठना अलाउड नहीं था . क्लास में मेरी परफोर्मेंस किसी से भी कम नही थी फिर भी मुझे एक कोने में बैठना होता था . मेरे चटाई भी अलग थी जिसमे मै अकेला बैठता था . क्लास रूम की सफाई करने वाला मेरी चटाई को टच भी नहीं करता था मुझे अपनी चटाई को घर लेकर जाना होता था और अगले दिन फिर वापस लाता था .
ऊँची जात के बच्चो को जब प्यास लगती , वो स्कूल के नल को खोलकर पानी पी लेते थे , लेकिन मेरी कंडिशन अलग थी . मुझे नल को छूने की परमिशन नहीं थी . मुझे प्यास लगती तो मै टीचर से रिक्वेस्ट करता . फिर टीचर चपरासी को बोलते और वो मेरे लिए नल खोलता था , तब जाकर मुझे पानी पीने को मिलता . अगर चपरासी आस - पास नहीं है तो उसके आने तक मुझे प्यासे रहना होता था . मतलब मेरी सिचुएशन ऐसी थी अगर चपरासी नहीं तो पानी नहीं . मेरे घर में कपड़े धोने का काम मेरी सिस्टर करती थी . सतारा में धोबियों की कमी नही थी और ना ही हमारे पास पैसे की कमी थी . बात बस ये थी कि हम अछूतों के कपड़े कोई धोबी छूने तक को तैयार नहीं था . मतलब कि बाल काटने से लेकर हम लडको की शेविंग तक मेरी बड़ी बहन करती थी .
वैसे भी इस काम में अब वो एक्सपर्ट हो गयी थी . सतारा में कई सारे बार्बर थे जिनके पास हम जाके बाल कटवा सकते थे लेकिन फिर वही प्रोब्लम . बार्बर हमे छूता कैसे ? इन सब चीजों की मुझे आदत पड़ चुकी थी मगर कोरेगाँव की घटना ने मुझे अंदर तक हिला दिया था . हमारे साथ जो कुछ भी मुझे अनटचेबीलीटी के बारे में काफी कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया था .

( Back From the West And Unable To Find Lodging In It)

=> Baroda 1916 में मै पढ़ाई पूरी करके इंडिया लौटा , मुझे बरौदा के महाराजा ने हायर एजुकेशन के लिए अमेरिका भेजा था जहाँ मैंने 1913 से 1917 तक न्यू यॉर्क के कोलंबिया यूनिवरसिटी में स्टडी की . फिर इकोनोमिक्स की पढाई के लिए मैं 1917 में लंदन चला गया . मैंने वहां यूनिवरसिटी ऑफ़ लन्दन के डिपार्टमेंट ऑफ़ द स्कूल ऑफ़ इकोनोमिक्स में पोस्ट ग्रेजुएट के लिए एडमिशन लिया . मगर 1918 में ही अपनी स्टडीज फिनिश किये बिना मै वापस इंडिया आ गया था . मुझे बरौदा स्टेट की नौकरी करनी थी क्योंकि उन्होंने ही मेरी एजुकेशन का सारा खर्चा उठाया था . हुआ था , उसने मुझे इंडिया आते ही बरौदा जाना पड़ा था . मगर मेरे बरौदा की सर्विस छोड़ने का मेरे प्रजेंट पर्पज से कोई लेना - देना है . मै इस मसले में पडना ही नहीं चाहता हूँ . मै तो बस बरौदा में अपने साथ हुए सोशल एक्सपीरिएंसेस को लेकर क्न्सेई हूँ और उनके बारे में बात करना चाहता हूँ . योरोप और अमेरिका में जो पांच साल मैंने गुज़ारे थे उससे मेरे दिलो - दिमाग से अनटचेबीलिटी की बाते एकदम साफ़ हो गयी थी .
मै भूल चूका था कि मै एक अछूत हूँ और ये भी भूल चूका था कि इंडिया में एक अछूत जहाँ भी जाता है वहां अपने साथ - साथ दूसरो के लिए भी प्रोब्लम क्रियेट करता है . लेकिन मै जैसे ही इण्डिया लौटा , स्टेशन से बाहर कदम रखते ही मेरे दिमाग में कुछ सवाल घूमने लगे ” मुझे कहाँ जाना है ? कौन मुझे लेने आएगा ? मै बेहद मायूस हो गया था . मै जानता था इस शहर में कई सारे हिन्दू होटल्स है जिन्हें विशिस ( Vishis , ) बोलते है . मगर वो लोग मुझे अंदर घुसने नहीं देंगे . एक ही तरीका था कि मै झूठ बोलकर रूम बुक करा लूँ . लेकिन अगर मै पकड़ा गया तो ? मुझे मालूम था अगर मै पकड़ा गया तो अंजाम क्या होगा . बरौदा में मेरे कुछ फ्रेंड्स भी रहते थे जो मेरे साथ अमेरिका में पढ़े थे . " अगर मै उनके पास गया तो क्या वो रहने देंगे " ? मुझे श्योर नहीं था , हो सकता है वो रहने दे , या फिर एक अछूत को अपने घर बुलाने में उन्हें शर्म आये . मै बड़ी देर तक स्टेशन की छत के नीचे खड़े यही सोचता रहा " कहाँ जाऊं ? क्या करूँ ? '
फिर मैंने सोचा कि चलो इन्क्वारी करता हूँ कि कैंप में कोई जगह है ? अब तक सारे पैसेंजर्स जा चुके थे , बस मै ही बचा था . एक दो हैकनी ( कैरिज ड्राइवर्स ) यानी कुली जिन्हें कोई पैसेंजर नहीं मिला था , सामान उठाने के लिए मेरी तरफ देख रहे थे . मैंने एक को आवाज़ लगाईं और पुछा " यहाँ कैंप में कोई होटल है क्या ? उसने कहा एक पारसी सराय है और वो लोग पेईंग गेस्ट लेते है . पारसी सराय का नाम सुनकर मेरा दिल खुश हो गया . पारसी लोग जोरोंएस्त्रिन रिलिजन ( Zoroastrian religion ) को मानते है . इनके यहाँ छूत - अछूत जैसा कोई कल्चर नहीं है क्योंकि उनके धर्म में अनटचेबिलिटी है ही नहीं . तो इस पारसी सराय में मुझे अछूत
की तरह ट्रीट करने का तो सवाल ही पैदा नहीं होगा . बड़ी उम्मीद के साथ बेफिक्र होकर मैंने अपना सामान कुली को दिया और ड्राईवर को कैंप में पारसी सराय चलने को बोला . एक टू स्टोरी बिल्डिंग में पारसी सराय थी . सराय का केयर टेकर एक बूढा पारसी था जो अपनी फेमिली के साथ ग्राउंड फ्लोर पर रहता था . जो टूरिस्ट यहाँ रहने आते उनके खाने - पीने की जिम्मेदारी केयर टेकर पर थी . बिल्डिंग के सामने हमारी गाड़ी आके रुकी तो पारसी केयर टेकर ने मुझे उपर जाने को बोला . मै उपर चला गया ,
कैरिज ड्राईवर मेरा सामान लेकर आया और अपना किराया लेकर वापस चला गया . मुझे बड़ी ख़ुशी हो रही थी कि आखिर मेरे रहने की प्रोब्लम सोल्व हो गयी . मैंने कपड़े चेंज कर ही रहा था कि केयर टेकर हाथ में एक बुक लिए मेरे रूम में आया . तब तक उसने देख लिया था कि मैंने सदरा और कस्ती नहीं पहना था जो पारसीयों की पहचान है . " कौन हो तुम " ? उसने तीखी आवाज़ में पुछा . मुझे मालूम नहीं था कि पारसी सराय सिर्फ पारसी लोगो को रूम देती है . मैंने बोला मै हिन्दू हूँ . उसे बड़ा शॉक लगा , " तुम यहाँ नहीं रह सकते " उसने मुझे बोला . मुझे बेहद डिसअपोइन्टमेंट हुई , फिर से मेरे सामने वही सवाल खड़ा हो गया , जाऊं तो जाऊं कहाँ ? खुद को कण्ट्रोल करते हुए मैंने उसे बोला " मै हिन्दू हूँ तो क्या हुआ ?
मुझे यहाँ रहने में कोई प्रोब्लम नहीं है तो आपको क्या प्रोब्लम है ? " अरे ! तुम यहाँ कैसे रह सकते हो . मुझे रजिस्टर भी तो मेंटेन करना होता है , कौन यहाँ आता है कौन जाता है " . उसकी बात में पॉइंट था , मुझे उसकी प्रोब्लम समझ आ रही थी . मुझे एक आईडिया आया . " रजिस्टर में लिखने के लिए मै कोई पारसी नाम रख लेता हूँ " . मैंने कहा . " वैसे भी मुझे कोई ओब्जेक्ट नहीं है तो तुम्हे क्यों है ? और मै यहाँ रहने के पैसे भी तो दे रहा हूँ , इसमें तो तुम्हारा ही फायदा है " . केयरटेकर मेरी बात से एग्री लग रहा था . वैसे भी काफी टाइम वहां कोई पेइंग गेस्ट नहीं आया था . और उसे पैसे की भी ज़रूरत थी . " लेकिन एक कंडिशन पर तुम यहाँ रह सकते हो , तुम रहने - खाने का रोज़ का डेढ़ रुपया देना होगा " वो बोला मैंने झट से हाँ बोला और एक पारसी नाम से रूम बुक करवा लिया . रजिस्टर में मेरा नाम लिखकर वो नीचे चला गया . मैंने चैन की सांस ली . एक मुसीबत हल हुई , मै खुश था . लेकिन ख़ुशी मेरी किस्मत में कहाँ ! मुझे क्या मालूम था मेरी ख़ुशी कुछ पल की है . लेकिन इससे पहले कि मै आपको अपने शोर्ट स्टे का ट्रेजिक एंड सुनाऊं , मै आपको बताता हूँ कि मैंने वहां कैसे टाइम स्पेंड किया . इस सराय के फर्स्ट फ्लोर में एक स्माल बेडरूम था जिसके साथ लगा हुआ एक छोटा सा बाथरूम था .
बाकि एक बड़ा हाल था . उस कमरे में दुनिया भर का कबाड़ रखा हुआ था , चारपाई , बेंचेस , टूटी हुई कुर्सियां , वगैरह . इस कबाड़खाने के बीच मै इकलौता पेईंग गेस्ट था . सुबह केयरटेकर मेरे लिए एक कप चाय लेकर आया . फिर 9:30 बजे वो मेरे लिए ब्रेक फ़ास्ट लेकर आया . उसके बाद रात के साढ़े आठ बजे वो मेरा डिनर लाया . वो सिर्फ चाय और खाना देने ही मेरे पास आता था . उसके अलावा वो कभी मेरे कमरे में रुकता तक नहीं था . मैं किसी तरह दिन काट रहा था . महाराज ऑफ़ बरौदा ने मुझे अकाउंटेंट जेर्नल के ऑफिस में प्रोबेशिनर की नौकरी पर रखा था . मै । सुबह 10 बजे ऑफिस के लिए निकलता था और रात के आठ बजे तक लौटता था . मेरी कोशिश यही रहती थी कि ऑफिस के बाद दोस्तों के साथ जितनी देर हो टाइम स्पेंड कर सकू . सराय में अकेले रात काटना बड़ा मुश्किल होता था.लेकिन करता क्या ? कोई चारा भी तो नहीं था . सराय एकदम खाली थी , मै बातचीत करता भी तो किससे ? पूरा हाल अँधेरे में डूबा रहता था . ना लाईट का इंतजाम था ना ऑइल लैंप जलते थे . केयर टेकर ने मेरे लिए एक छोटा हरिकेन लैंप रखा हुआ था जिसकी लाईट समझ लो ना के बराबर ही थी . ऐसा लग रहा था जैसे मै कोई आदिमानव हूँ जो गुफा में रहता है और किसी दुसरे इन्सान से बात करने को तरसता है . लेकिन कोई नहीं था , जो मेरा सुख - दुःख बाँटता . अपना दिल बहलाने के लिए मैंने किताबो का सहारा लिया . मै अब हर वक्त पढता रहता था .

किताबे पढकर अकेलापन कुछ हद तक कम हुआ मगर हाल में चमगादड़ो ने घर बना रखे थे जिनकी आवाज मुझे डिस्टर्ब करती थी . रात को जब वो अपने पंख फडफड़ाते तो मुझे एक अजीब सी फीलींग आती थी , जैसे कोई कब्रिस्तान है . कई बार मुझे खुद पे ही गुस्सा आता था कि मै क्यों इस जगह में रहता हूँ . फिर मुझे ख्याल आता कि आखिर जो भी हो , मेरा दुःख , मेरी परेशानी सब अपनी जगह मगर मेरे पास सर छुपाने को एक जगह तो है . एक तरह से मै खुद को ही तसल्ली दे रहा था . एक दिन मेरा बाकि का सामान लेकर मेरी सिस्टर का बेटा जब बॉमबे से मेरे पास आया तो उसे मेरी हालत पर रोना आ गया . वो जोरो से रो रहा था , मैंने उसे बड़ी मुश्किल से चुप कराया और तुरंत उसे वापस भेज दिया . मै एक पारसी सराय में छुपकर नाम चेंज करके रहता हूँ ये बात अगर किसी को पता चली तो मै पकड़ा जाऊँगा .
मुझे इस प्रोब्लम का कोई परमानेंट सोल्यूशन चाहिए था इसलिए मै स्टेट बंगलो लेने का जुगाड़ कर रहा था . मगर प्राइम मिनिस्टर ने मेरी रिक्वेस्ट पर ध्यान नहीं दिया . मेरे लिए ये एक अर्जेंट मामला था उनके लिए नहीं . मेरी पेटिशन एक ऑफिसर से दुसरे ऑफिसर के पास चक्कर खा रही थी . मुझे फाइनल रिप्लाई मिलता उससे पहले ही वो मनहूस दिन आ गया . पारसी सराय में ये मेरा ग्यारहवां दिन था . सुबह ब्रेकफ़ास्ट करके मै ऑफिस जाने के लिए तैयार हुआ . मै कुछ बुक्स लेकर निकल ही रहा था जिन्हें मुझे आज लाइब्रेरी में वापस करना था कि तभी मैंने सीढियों पर कुछ लोगो की आवाज़ सुनी . मुझे लगा शायद सराय में रहने के लिए कुछ लोग बाहर से आये है . ये देखने ke लिए कि कौन आया है , मै रूम से बाहर झाँकने लगा . मैंने देखा लम्बे - तगड़े पारसी लोगो का एक मेरे ही रूम की तरफ आ रहा था , उन सबके हाथ में स्टिक्स थी.उन्हें देखते ही मै समझ गया कि ये कोई टूरिस्ट ग्रुप नहीं है और उन्होंने भी इस बात का प्रूफ तुरंत दे दिया .
वो लोग मेरे रूम के बाहर लाइन में खड़े हो गए . और मुझ पर सवालों की बौछार कर दी . " कौन हो तुम ? " यहाँ क्यों आये हो ? तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई पारसी बनकर यहाँ रहने की ? बदमाश कहीं के ! " तुमने पारसियों की जगह को अछूत कर दिया है " . उनके सवाल बोम्ब की तरह मेरे दिमाग में फट रहे थे लेकिन मेरे पास कोई जवाब नहीं था . मै चुपचाप खड़ा रहा . अब और झूठ बोलने का कोई फायदा नहीं था , मेरी पोल खुल चुकी थी . इन - फैक्ट मेरा खुद को पारसी बोलना एक फ्रौड है और मेरा फ्रौड पकड़ा गया था . जो गेम मै खेल रहा था उसमे कभी ना कभी तो पकड़ा जाता , तब ये पारसी शायद मेरी जान ही ले लेते मगर मेरी चूप्पी और डर ने मुझे बचा लिया . " तुम यहाँ से कब जा रहे हो ? " उनमे से एक ने पुछा . बड़ी मुश्किल से मुझे एकशेल्टर मिला था , मै इसे किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहता था . अब मुझसे चुप नहीं रहा गया . मैंने उनसे कहा " मुझे कम से कम एक हफ्ते की तो मोहलत दो " . मैंने सोचा तब तक शायद मिनिस्टर मुझे स्टेट बंगलो दिलवा देंगे . लेकिन उन पारसी लोगो ने मेरी । एक नही सुनी , मुझे अल्टीमेटम मिला कि शाम तक मै अपना बोरिया - बिस्तर समेट कर चलता बनू . वर्ना अंजाम बहुत बुरा होगा .
मैंने अपना सारा सामान समेटा और वहां से निकल कर सड़क पे आ गया . अब मेरे पास रहने का कोई ठिकाना नहीं था , उस वक्त मेरी हालत क्या थी , क्या बताऊँ . मै फूट - फूट कर रोया . मेरे दिल से सबके लिए बद्दुआए निकल रही थी . मेरे सर से छत छीन ली गयी थी . कहने को तो वो जगह किसी जेल की कोठरी से कम नहीं थी , लेकिन मेरे लिए उसकी क्या इम्पोर्टेस थी ये सिर्फ मै ही जानता हूँ . पारसीयों के चले जाने के बाद मै कुछ देर सोचता रहा कि अब क्या करूँ . मुझे पूरा यकीन था कि जल्दी मुझे स्टेट बंगलो मिल जाएगा और फिर सारी प्रोब्लम दूर हो जाएगी . इसलिए घर की प्रोब्लम एक टेम्परेरी प्रोब्लम थी , इस बारे में ज्यादा टेंशन क्या लेना . तब तक मै किसी फ्रेंड के घर जा सकता हूँ . लेकिन बरौदा में मेरा कोई ऐसा फ्रेंड नहीं था जो मेरी तरह अनटचेबल हो . दूसरी जात वाले कुछ लोग मेरे फ्रेंड्स थे . एक हिन्दू था और एक इन्डियन क्रिश्चियन . पहले मै अपने हिन्दू फ्रेंड के घर गया . उसे मैंने सारी स्टोरी सुनाई . वो मेरा बेस्ट फ्रेंड था और दिल का बड़ा अच्छा था . मेरे कुछ भी हुआ था , उसे सुनकर दुख हुआ मगर उसने एक बात बोली " तुम मेरे घर आ सकते हो मगर मेरे सारे नौकर भाग जायेंगे " . मतलब कि उसने हिंट दे दिया कि कोई अछूत उसके घर नहीं आ सकता . मैंने भी उसे ज्यादा फ़ोर्स नही किया , अपने क्रिश्चियन फ्रेंड के पास मै जाना नहीं चाहता था .
एक बार उसने मुझे अपने घर रहने के लिए इनवाईट किया था लेकिन तब मुझे पारसी सराय में रहना था इसलिए मैंने उसे मना कर दिया था . इसकी एक वजह थी . उसकी कुछ हैबिट्स मुझे पसंद नहीं थी और अब उसके घर जाकर मै उसका एहसान नहीं लेना चाहता था . मै अपने ऑफिस गया लेकिन अपने लिए एक शेल्टर ढूढने का मै कोई चांस मिस नहीं करना चाहता था . एक फ्रेंड ने मुझे उसी क्रिश्चियन फ्रेंड के पास जाने की एडवाईस दी . जब मै उसके घर गया और उससे रहने के लिए पुछा तो उसने बोला " मेरी वाइफ कल बरौदा लौट रही है , उससे पूछ के बताता हूँ " . बाद में मुझे पता चल गया था कि उसने बड़े डिप्लोमेटिकली मुझे टरका दिया था . असल में वो और उसकी फेमिली ओरिजिनली ब्राह्मिन कास्ट के थे लेकिन अब वो क्रिश्चियन बन चुके थे , क्न्वेर्ट होने के बाद मेरा फ्रेंड तो लिबरल सोचता था मगर उसकी वाइफ अभी भी ओर्थोडॉक्स ख्यालो की थी और मुझ जैसे अछूत को घर में नहीं रखना चाहती थी . मेरी आखिरी उम्मीद भी मिटटी में मिल गयी थी .
शाम के करीब चार बज रहे थे जब मै अपने इंडियन क्रिश्चियन फ्रेंड के घर से निकला . मेरे सामने सबसे बड़ा एक ही सवाल था " कहाँ जाऊं ? ' पारसी सराय मैंने छोड़ दी थी और किसी फ्रेंड के घर मुझे जगह नहीं मिली अब बस एक ही रास्ता बचा था कि मै बोम्बे लौट जाऊं . बरौदा से बोम्बे की ट्रेन रात के 9 बजे छूटती थी . अभी पांच घंटे बाकि थे . मजबूर था लेकिन पांच घंटे कैसे गुज़ारे जाये ? क्या फिर से सराय में जाऊं ? या फ्रेंड के घर जाऊं ? पारसी सराय जाने की मेरी हिम्मत नहीं हुई . मुझे डर था कहीं वो लोग मुझ पर अटैक ना कर दे . दोस्त के घर मै जाना नहीं चाहता था , मै उसके सामने खुद को और मजबूर नहीं दिखाना चाहता था . तो मैंने सोचा चलो कमाठी बाग़ पार्क में चलता हूँ जो शहर और कैंप के बीच में पड़ता है . वक्त वक्त मेरे माइंड में कई सारी बाते घूम रही थी . मेरे साथ अब तक जो कुछ हुआ था उसके बारे में और स्पेशली मेरे पेरेंट्स जो मुझे बड़े याद आ रहे थे . करीब आठ बजे मै गार्डन से निकला , एक तांगा लिया और सीधे पारसी सराय आकर रुका . मैंने अपना लगेज उतारा , केयर टेकर मुझे देखकर बाहर आ गया .
हमने एक दुसरे को देखा , वो भी चुप रहा मै भी चुप रहा . शायद उसे लग रहा था कि शायद उसकी वजह se मुझे इतनी प्रोब्लम हो रही है . मैंने उसका बिल दिया और वो चुपचाप पैसे लेकर वापस अंदर चला गया . मै बड़ी उम्मीद लेकर बरौदा आया था , मैंने कई सारे ऑफर्स भी रिजेक्ट किये थे . वार टाइम चल रहा था , इण्डिया में कई सारे एजुकेशनल सर्विसेस में वेकेंट पोस्ट थी . वैसे तो मै लंदन में भी कई जाने - माने लोगो को जानता था मगर मैंने किसी को अप्रोच नही किया था . मुझे लगा मेरी फर्स्ट ड्यूटी बरौदा के महाराज के लिए है जिन्होंने मेरी एजुकेशन का सारा खर्चा उठाया था . और आज मै बरौदा में ग्यारह दिन रहकर वापस बोम्बे जाने को मजबूर हूँ.पूरे अदारह सालो तक मुझे ये सीन नहीं भूला था , गुस्से में पागल एक दर्जन पारसी हाथो में डंडे लिए मेरे आगे खड़े है और मै उनसे रहम की भीख मांग रहा हूँ " . और इतने सालो बाद भी इस बात को याद करके मेरी आंखू में आंसू आ जाते है . और उस दिन फर्स्ट टाइम मुझे पता चला कि एक अछूत जितना हिन्दू के लिए अछूत है उतना ही पारसियों के लिए भी है .

( Pride , Awkwardness , and a Dangerous Accident in Chalisgaon)

=> ये 1929 था . बोम्बे गवर्नमेंट ने अछूतों के दुःख दर्दो के बारे में इन्वेस्टिगेट करने के लिए एक कमिटी अपोइन्ट की . मै इस कमिटी का मेंबर था . कमिटी को पूरे इलाके में घूम कर अछूतों पर हो रहे जुल्म और इनजस्टिस के मामलो को इन्वेस्टीगेट करना था . कमिटी को डिवाइड किया गया . मेरे साथ एक और मेंबर था , हमे खानदेश के दो डिस्ट्रिक्ट दिए गए थे . हम दोनों ने अपने काम फिनिश करके अलग - अलग निकल गए . वो एक हिन्दू संत से मिलने चला गया और मै ट्रेन से बोम्बे के लिए निकल पड़ा . चालीसगाँव में उतर कर मै एक विलेज में गया जो धुलिया लाइन में पड़ता था . मुझे यहाँ पर एक सोशल बायकाट का केस इन्वेस्टीगेट करना था.गाँव के कुछ हिन्दूओं ने एक अनटचेबल को गाँव से बाहर निकाल दिया था . चालीसगाँव के अछूत स्टेशन आये और मुझसे रिक्वेस्ट करके बोले कि मै रात में उनके साथ स्टे करूं . मेरा प्लान था कि मै सोशल बायकाट का केस स्टडी करके सीधे बोम्बे चला जाऊँगा . लेकिन उन लोगो की रिक्वेस्ट पर मुझे उनकी बात माननी पड़ी . मैने विलेज जाने के लिए धुलिया की ट्रेन ली .
वहां पहुंचकर मैंने उन्हें विलेज की सिचुएशन के बारे में बताया और नेक्स्ट ट्रेन से चालीसगाँव आ गया . स्टेशन पर चालीसगाँव के अछूत मेरा वेट कर रहे थे , उन्होंने मुझे फूलो की माला पहनाई . अछूतों का मोहल्ला यानी माहरवाडा वहां से दो मील दूर था . बीच में एक नदी पडती थी जिस पर एक पुल था . हमे इसी पुल से होकर विलेज तक जाना था . स्टेशन पर कई सारे तांगे सवारी के इंतज़ार में खड़े थे वैसे माहारवाडा वाल्किंग डिस्टेंस में था . मुझे लगा लोग आयेंगे और तुंरत मुझे उस तरफ ले जायेगे मगर ऐसा कुछ हुआ नहीं . और मुझे समझ नहीं आया कि मै वेट क्यों कर रहा हूँ . करीब एक घंटे बाद एक ताँगा प्लेटफॉर्म पे मेरे पास आकर रुका . मै उस पर बैठ गया . उस तांगे पर हम दो ही लोग थे , एक तांगे वाला और एक मै . बाकि लोग एक शोर्ट कट से पैदल आ रहे थे .ताँगा अभी 200 कदम भी नहीं चला होगा कि एक कार के साथ उसकी टक्कर होते - होते बची . मुझे क्या पता था कि ड्राइवर इतना अनाड़ी होगा . वहां खड़ा एक पोलिसमेन जोर से चिल्लाया तब जाकर कार वाले ने ब्रेक लगाए . खैर , हम लोग पुल तक पहुंचे .
इस पुल की रेलिंग या दीवारे नहीं थी जैसा कि अक्सर नदी के बड़े पुलों में होती है . पांच या दस फीट की दूर पर बीच - बीच में पत्थर लगे हुए थे . जिस रोड पे हम आ रहे थे , ये पुल उससे राईट एंगल पर नदी के उपर बना था . इसलिए रोड से पुल तक आने के लिए एक शार्प टर्न लेना पड़ता था . पुल के फर्स्ट स्टोन के पास घोड़े ने स्ट्रेट जाने के बजाये टर्न ले लिया और लडखडा गया . तांगे का पहिया इतनी जोर से पत्थर से टकराया कि मै तांगे से उछल कर सीधा जमीन पर गिरा . और मेरा ताँगा और घोड़ा दोनों जाकर नदी में गिरे . मै इतने जोर से गिरा था कि थोड़ी देर यूं ही सेंसलेस पड़ा रहा . महारवाडा नदी के अपोजिट साइड में था . स्टेशन में मुझे लेने जो लोग आये थे वो शोर्ट कट लेकर मुझसे पहले पहुँच चुके थे . उन्होंने मुझे उठाया और माहारवाडा लेकर गए . बच्चे , औरते मर्द सब मेरी हालत पर रो रहे थे.मै बुरी तरह इंजर्ड था , मेरा पैर भी टूट गया था .
कई दिनों तक तो मै चल ही नहीं पाया . ये सब अचानक कैसे हुआ , मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था . डेली उस पुल से तांगेपास होते थे , लेकिन कभी किसी घोड़ेवाला का कण्ट्रोल लूज़ नहीं हुआ तो फिर मेरा तांगा ही क्यों टूटा ? इन्क्वायरी करने पर असली बात मालूम पड़ी.रेलवेस्टेशन पर तांगा मिलने में टाइम इसलिए लग रहा था क्योंकि कोई भी तांगेवाला एक अनटचेबल को अपने तांगे में बिठाने को रेडी नहीं था . ये उनकी शान के खिलाफ था . और मै स्टेशन से पैदल चलकर जाऊं , ये बात माहार लोगो को बर्दाश्त नहीं हो रही थी , क्योंकि वो मेरी बड़ी रिस्पेक्ट करते थे . तो डिसाइड ये हुआ कि तांगे वाला अपनी ताँगा रेंट पर देगा मगर खुद नहीं चलाएगा . महार लोगो को कोई दूसरा ड्राईवर ढूंढना होगा जो मुझे बैठाकर माहरवाडी तक लेकर जाए .लेकिन ये लोग भूल गए थे कि इज्ज़त से ज्यादा से पैसेंजर की सेफ्टी ज्यादा ज़रूरी है .
इनमे से किसी को भी तांगा चलाना नहीं आता था क्योंकि ये इनका काम नहीं था . फिर एक आदमी ने रिस्पोंसेबिलिटी ली और मुझे तांगे पर बिठाकर ले गया . उसने सोचा ताँगा चलाना कौन सा मुश्किल काम है ! मगर उससे कण्ट्रोल छूट गया और ये एक्सीडेंट हो गया . चालीसगाँव के इन माहार लोगो ने तो इज्जत बचाने के लिए मेरी लाइफ ही दांव पे लगा दी थी . उस दिन मुझे समझ आया कि एक अनपढ़ तांगे वाला भी खुद को एक अछूत से कहीं ज्यादा सुपिरियर समझता है फिर चाहे वो अछूत कोई बैरिस्टर ही क्यों ना हो .

( Polluting the Water in the Fort of Daulatabad )

=> दौलताबाद फोर्ट में पानी गन्दा करना . 1934 में मूवमेंट ऑफ़ द डिप्रेस्ड क्लासेस के मेरे कुछ साथियों ने मेरे साथ घूमने का प्लान बनाया . मै मान गया . हमने डिसाइड किया कि हम लोग वेरुल के बुधिस्स्ट केव्स भी जायेंगे . मुझे पहले नासिक जाना था जहाँ मेरे फ्रेंड्स मुझे ज्वाइन करने वाले थे . वेरुल जाने के लिए हमे पहले औरंगाबाद जाना था . औरंगाबाद तब मोहम्मडन स्टेट हैदराबाद का एक टाउन था जो हिज़ हाईनेस निजाम के अंडर आता था . औरंगाबाद पहुँचने के लिए हमे पहले एक और शहर दौलताबाद से होकर गुजरना था . ये टाउन भी हैदराबाद स्टेट में था . दौलताबाद एक हिस्टोरिकल सिटी है , किसी ज़माने में ये एक फेमस हिन्दू राजा रामदेव राय की कैपिटल हुआ करता था . दौलताबाद फोर्ट के जाना - माना एनशियेंट हिस्टोरिकल मोन्यूमेंट है जिसे देखने दूर - दूर से टूरिस्ट आते है . तो हमने भी प्लान किया कि हम लोग दौलताबाद फोर्ट देखने जायेंगे . हमने कुछ बसे और टूरिस्ट कार हायर की . हम लोग कुल मिलाकर 30 लोग थे .
हम नासिक से योव्ला ( Yeola ) पहुंचे क्योंकि ये औरंगाबाद के रास्ते में पड़ता था . वैसे हमनेपहले से अपना कोई टूरिस्ट प्लान अनाउंस नहीं किया था . हमारा आईडिया था कि हम लोग चुपचाप घूमफिर के आ जायेंगे , दरअसल हम उन प्रोब्लम्स को अवॉयड करना चाहते थे जो हम जैसे अनटचेबल लोगो को ट्रेवलिंग के दौरान होती है . जिन जगहों पर हमे स्टे करना था , वहां हम पहले से इन्फॉर्म कर चुके थे . हालाँकि हम लोग निजाम के स्टेट से होकर जा रहे थे मगर हमारा कोई आदमी हमे मिलने नहीं आया . दौलताबाद काफी डिफरेंट लगा . वहां हमारे लोगो को आलरेडी इन्फॉर्म कर दिया गया था कि हम वहां स्टे करने आ रहे है इसलिए वो लोग शहर के बाहर ही हमारा वेट कर रहे थे . उन्होंने सजेस्ट किया कि फोर्ट जाने से पहले हम लोग गाड़ियों से उतर कर फ्रेश हो जाए और कुछ चाय - नाश्ता कर ले .
लेकिन हमने सोचा अगर रुके तो देर हो जायेगी , और हम अँधेरा होने से पहले ही फोर्ट देख लेना चाहते थे . हलाकि सबका चाय पीने का बड़ा मन हो रहा था , इसलिए हमने मना कर दिया और बोला कि हम लोग वापसी में चाय - नाश्ता करेंगे . ये रमजान का मन्थ था जिसमे मुस्लिम्स लोग पूरे महीने फ़ास्ट रखते है . फोर्ट के गेट के बाहर ही पानी से भरा एक टैंक रखा था . चारो तरफ एक चौड़ी स्टोन पेवमेंट थी . हम लोगो के कपडे , पूरी बॉडी और फेस सफर की धूल - मिट्टी से भरे थे . तो हमने सोचा क्यों ना हाथ मुंह धोकर थोडा फ्रेश हो जाए . हमने टैंक से पानी निकाला और हाथ - पैर धोने शुरू कर दिए . इसके बाद हम फोर्ट के गेट पर पहुंचे . अंदर आई सोल्जेर्स खड़े थे . उन लोगो ने फोर्ट के बड़ा सा गेट हमे एंट्री दे दी . हम लोग अभी गॉर्ड से फोर्ट के अंदर जाने के बारे में पूछ ही रहे थे कि एक सफेद दाढ़ी वाला एक मुस्लिम बुड्ढा पीछे से चिल्लाता हुआ आया " ये ढेढो यानी अछूतो ने पानी गन्दा कर दिया है " . बस फिर क्या था जितने भी वहां बूढ़े जवान मुस्लिम्स थे सबने हमे गालियाँ बकना शुरू कर दिया . " ये ढेढ़ सर ज्यादा सर चढ़ गए है , ये अपनी औकात भूल गए है , इन्हें तो सबक सिखाना पड़ेगा ' . उन लोगो ने हमे घेर लिया था . हमने उन्हें बोला " हम बाहर से आए है , हमे यहाँ के लोकल कस्टम मालूम नहीं है . मगर उन्होंने हमारी एक नही सुनी .
उनका गुस्सा उन लोकल अनटचेब्लस पर फूट पड़ा जो शोर - शराबा सुनकर फोर्ट के गेट पे इकट्ठा हो गए थे . " तुम लोगो ने इन आउटसाइडर्स को क्यों नहीं बताया कि इस टैंक का पानी अछूत नहीं छू सकते " . वो लोग बार - बार उनसे पूछ रहे थे . बेचारे अछूत लोग ! वो तो उस टाइम वहां थे भी नहीं जब हमने टैंक से पानी निकाला था . ये हमारी गलती थी जो हमने बिना पूछे उनका पानी छुआ था . लोकल अछूतों ने प्रोटेस्ट किया कि हम क्या करे , हम तो इन्हें जानते तक नहीं . लेकिन वो मुस्लिम्स हमारी एक भी बात सुनने को तैयार नहीं थे . वो लगातार हमे और लोकल लोगो को उल्टा - सीधा बोलते रहे , गंदी - गंदी गालियां देते रहे . इतनी गंदी गालियां सुनकर किसी का भी खून खौलता . हम चुप रहे , रिप्लाई करते तो दंगा - फसाद हो सकता था और लोग मरने मारने को तैयार हो जाते . हम किसी क्रिमिनल केस में नहीं पड़ना चाहते थे वर्ना हमारा सारा प्लान चौपट हो जाता . एक यंग मुस्लिम बार - बार बोले जा रहा था " हर किसी को अपने मज़हब के हिसाब से चलना चाहिए " असल में वो कहना चाहता था कि अछूतों को पब्लिक टैंक से पानी नहीं लेना चाहिए . उसकी बात मुझे बड़ी बुरी लगी और मैंने गुस्से में उससे पुछा " क्या तुम्हारा मज़हब तुम्हे यही सीखता है ? अगर कोई मुस्लिम बन जाए तब क्या तुम उसे पानी छूने दोगे ? ' मेरे तीखे सवालों का उन पर कुछ असर दिखा .
उनके पास मेरी बात का कोई जवाब नहीं था . सब बुत बनकर खड़े थे . मैंने गार्ड से गुस्से में पुछा ” अब हम अंदर जा सकते है या नहीं ? " बताओ ! अगर नहीं जा सकते तो हम यहाँ से अभी निकलते है " गार्ड ने मेरा नाम पुछा , मैंने एक पेपर पर अपना नाम लिखकर दिया . वो अंदर सुपरीटेडेंट के पास गया और थोड़ी देर में बाहर आया . हमे बोला गया कि आप फोर्ट देख सकते हो मगर अंदर किसी भी जगह पानी को छूना मत . एक आर्ड सोल्जर हमारे साथ आया कि कहीं हम पानी गंदा ना कर दे . एक और लेसन मैंने सीखा कि हम लोग सिर्फ हिन्दुओं के लिए ही अछूत नही है बल्कि पारसीयों और मुस्लिमों के लिए भी उतने ही अछूत है .

( A Doctor Refuses to Give Proper Care , and a Young Woman Dies )

=> एक और किस्सा मुझे याद आ रहा है . ये इंसिडेंट काठियावार के एक विलेज की है . जहाँ एक अनटचेबल स्कूल टीचर था . उसने यंग इंडिया जेर्नल में एक लैटर भेजा था जोकि हमारे बापू यानी गांधीजी चलाते थे . इस टीचर ने अपने लैटर में लिखा था कि कैसे एक हिन्दू डॉक्टर ने डिलीवरी के वक्त उसकी वाइफ को प्रॉपर मेडिकल ट्रीटमेंट नहीं दिया जिसके चलते उसकी वाईफ और न्यू बोर्न बेबी की डेथ हो गयी थी . ये लैटर कुछ इस तरह था इस महीने की 5 तारिख को मेरी वाइफ को बच्चा पैदा हुआ था और 7 को मेरी वाइफ बीमार पड़ गयी . उसे लूज़ मोशन हो रहे थे , उसकी कंडिशन काफी खराब थी . उसे ब्रीथिंग में प्रोब्लम हो रही थी , उसकी पसलियों में भी काफी पेन था . मै डॉक्टर को बुलाने गया मगर उसने ये बोलकर इंकार कर दिया कि वो एक हरिजन के घर नहीं जाएगा और ना ही वो बच्चे को देखेगा . मै फिर नगरसेठ और गरासिया दरबार गया और उनसे मदद की भीख मांगी . नगरसेठ ने इस शर्त के साथ कि मै दो रूपये फीस दूंगा ,
डॉक्टर को मेरे घर चलने के लिए मना लिया . डॉक्टर मेरे घर आया मगर इस शर्त पे कि वो मेरी वाइफ और बच्चे को हरीजन कॉलोनी के बाहर देखेगा . मै अपनी बीवी और बच्चे को कॉलोनी के बाहर लेकर गया . डॉक्टर ने थर्मामीटर एक मुस्लिम को पकडाया , उसने मुझे और मैंने अपनी वाइफ को . मेरी वाइफ ने थर्मोमीटर मुंह में रखने के बाद मुझे दिया , मैंने मुस्लिम को और मुस्लिम ने डॉक्टर को . ये शाम आठ बजे की बात थी . डॉक्टर ने थर्मोमीटर को लैंप की रौशनी में चेक किया और बोला पेशेंट को न्यूमोनिया हुआ है . फिर उसके बाद वो वापस चला गया और मेडीसिंस भिजवा दी . मै बाज़ार कुछ लिंसीड लेकर आया और अपनी वाइफ को दिया . मेरे दो रूपये देने के बावजूद डॉक्टर ने मेरी वाइफ को दुबारा चेक करने से मना कर दिया . रात भर मेरी वाइफ की कंडिशन खराब रही और आज दोपहर 2 बजे उसकी डेथ हो गयी है .
स्कूल टीचर ने लैटर में अपना नाम नहीं लिखा था और ना ही डॉक्टर का नाम लिखा था . ये एक अनटचेबल की गुहार थी , जिसे डर के मारे अपना असली नाम छुपा रहा था . मगर जो कुछ उसके साथ हुआ था एक कडवी सच्चाई थी जिसे किसी भी कीमत पर झूठलाया नही जा सकता था . उस डॉक्टर ने जो भी किया इंसानियत के खिलाफ था , अगर वो छुवाछूत जैसी सोशल एविल्स को सपोर्ट कर रहा है तो उसके पढ़े - लिखे होने का फायदा ही क्या था ? उसने एक बीमार औरत की क्रिटिकल कंडीशन देखते हुए भी उसे मरने के लिए छोड़ दिया था . उसने अपने मेडिकल प्रोफेशन के साथ गद्दारी की थी . कितने शर्म की बात है कि एक हिन्दू को इंसानियत से गिरना मंजूर है मगर एक अछूत को छूना नहीं .

( A Young Clerk is Abused and Threatened Until He Gives Up His Job )

=> ऐसा ही एक और इंसिडेंट है . ये 6 मार्च 1938 की बात थी . दादर , बोम्बे में कसारवाड़ी वूलन मिल्स के पीछे भंगीयों की एक मीटिंग थी जिसके चेयरमेन थे मिस्टर इंदुलाल यानिक . इस मीटिंग में एक भंगी लड़के ने अपना एक्स्पिरियेश कुछ ऐसे शेयर किया " " मैंने 1933 में वेरनाक्यूलर फाइनल एक्जाम पास किया . मै चौथी क्लास तक इंग्लिश पढ़ा हूँ , मैंने बोम्बे म्यूनिसिपेलिटी के स्कूल कमिटी में टीचर की जॉब के लिए अप्लाई किया था . मगर मुझे जॉब नहीं मिली क्योंकि कोई वेकेंसी ही नहीं थी . फिर मैंने अहमदाबाद में तलाती यानी विलेज पटवारी में बैकवार्ड क्लास ऑफिसर के लिए अप्लाई किया . मुझे वो जॉब मिल गयी . मुझे 19 फरवरी , 1936 में तलाती अपोइन्ट किया गया था . खेड़ा डिस्ट्रिक्ट के बोरसाद तालुका के मामलातदार ऑफिस में मेरी ड्यूटी थी . वैसे तो मेरा परिवार ओरिजिनली गुजरात से ही बीलोंग करता है मगर गुजरात जाने का ये मेरा पहला मौका था . मुझे नहीं मालूम था कि गवर्नमेंट ऑफिस में भी लोग छुवाछूत मानते होंगे .
मैंने पहले ही अपनी अप्लिकेशन फॉर्म में मेंशन कर दिया था कि मै एक हरिजन हूँ तो मुझे लगा कि मेरे ऑफिस वालो को ये बात पहले से मालूम होगी . मगर वहां जाकर मै हैरान रह गया . जब मै मामलतदार ऑफिस में चार्ज लेने गया तो वहां के क्लर्क का बिहेव कुछ अजीब था . उसने मुझसे पुछा " कौन हो तुम ? " मैंने कहा सर , मै एक हरिजन हूँ " दूर हटो , एक कोने के जाकर खड़े हो जाओ ! तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे नजदीक आने की ? " शुक्र करो तुम ऑफिस में हो , अगर बाहर मेरे इतने पास आने की जुर्रत करते तो मै लातो से तुम्हारा मुंह तोड़ देता " . बड़ा आया यहाँ नौकरी करने वाला ! " उसके बाद उसने मुझसे बोला अपने सारे डोक्यूमेंट्स नीचे रखो जमीन पर . मैंने कागज़ जमीन पर रखे , उसने उठाये और चेक किये . बोरसाद के मामलतदार के ऑफिस में काम करते हुए मुझे पानी तक मुश्किल से नसीब होता था . ऑफिस के बरामदे में पानी के भरे कैन रखे होते थे . पानी पिलाने के लिए एक आदमी भी रखा हुआ था . उसकी ड्यूटी थी सबको पानी पिलाने की , उसकी एब्सेंस में सारे लोग खुद ही पानी निकाल कर पीते थे .
मगर मै उन वाटर कैन को छू भी नहीं सकता था . मेरे छूने से पानी गंदा हो जाता . इसलिए मै पानी पिलाने वाले मेहरबानी पे जिंदा था . मेरे लिए एक छोटा जंग लगा गिलास रखा हुआ था . इस गिलास को ना तो कोई टच करता था और ना ही धोता था . वाटरमेन मुझे इसी गिलास में ऊपर से पानी डाल कर देता था . वाटरमेन नहीं है तो मुझे प्यास बर्दाश्त करनी पडती थी . और ये पानी वाला भी कोई कम नहीं था , जैसे ही देखता कि मै पानी लेने आ रहा हूँ तो वो वहां से खिसक जाता था . कई बार तो ऐसा हुआ है कि मुझे पूरे दिन पानी नहीं मिला . यही परेशानी मुझे रेंट पे कमरा लेते वक्त भी आती है . बोरसाद में मेरा कोई नहीं है और कोई हिन्दू मुझे मकान रेंट पे देने को तैयार नहीं होता . यहाँ के अनटचेबल लोग भी मुझे कमरा नहीं देते क्योंकि उन्हें डर है कि अपरकास्ट हिन्दू नाराज़ हो जायेंगे , दरअसल ये अपरकास्ट के लोग बर्दाश्त नहीं कर सकते कि एक अछूत क्लर्क की जॉब कर रहा है . इससे भी बढकर परेशानी खाने - पीने की है .
ऐसा कोई इंसान नहीं , कोई जगह नहीं जहाँ से मुझे खाना मिल सके . मै सुबह - शाम भाजा खरीदता हूँ और गाँव के बाहर जाकर अकेले में खाता हूँ . रात को मै मामलतदार ऑफिस के बरामदे में सो जाता हूँ . इस तरह से मैंने चार दिन काट लिए . मगर जब और बर्दाश्त नहीं हुआ तो मै अपने पुश्तैनी गाँव जेंतरल चला गया . ये बोरसाद से 6 मील दूर है , मुझे करीब डेढ़ महीना हो गया है , रोज़ मै ग्यारह मील चलकर ऑफिस आता हूँ " . उसके बाद मामलातदार ने काम सीखने के लिए एक तलाती मेरे पास भेजा . ये तालाती तीन गाँवों का इंचार्ज था , जेंतरल , खापुर और सैजपुर . जेंतराल उसका हेडक्वार्टर है . इस तलाती के साथ मै दो महीने जेंतरल में रहा . इस दौरान उसने मुझे कुछ भी नहीं सिखाया और ना ही मै एक बार भी उसके विलेज ऑफिस गया . गाँव का सरपंच तो और भी खतरनाक है , उसने एक बार मुझे धमकी दी थी " तुम्हारे लोग , तुम्हारे बाप - भाई इस गाँव के स्वीपर है जो विलेज ऑफिस में झाडू मारते है और तुम यहाँ ऑफिस में हमारी बराबरी में बैठना चाहते हो ? अपना भला चाहते हो तो ये जॉब छोड़ दो " .
एक दिन तालाती ने मुझे गाँव की पोपुलेशन टेबल बनाने के लिए सैजपुर बुलाया . मै जेंतरल से सैजपुर गया . मैंने देखा गाँव का सरपंच और तालाती विलेज ऑफिस में बैठे कुछ काम कर रहे थे . मै अंदर गया और ऑफिस के दरवाजे के पास जाकर खड़ा हो गया . मैंने उन्हें ' गुड मोर्निंग ” बोला लेकिन उन्होंने मेरी बात का जवाब नहीं दिया . करीब 15 मिनट मै बाहर ही खड़ा दूर से चलकर आने की वजह से मै वैसे ही थका हुआ था उपर से वो लोग मुझे इग्नोर कर रहे थे , वही पास में पड़ी एक चेयर लेकर मै बैठ गया . सरपचं और तालाती ने मुझे देखा और कुछ बोले ऑफिस से बाहर चले गए . थोड़ी देर बाद ही कई लोगो की भीड़ ने मुझे घेर लिया था . और इस भीड़ का लीडर था विलेज लाइब्रेबी का लाइब्रेरियन . मै समझ नहीं पा रहा था कि उसके जैसे पढ़े - लिखे इन्सान ने भला इतने लोगो की भीड़ क्यों बुलाई है . बाद में पता चला कि चेयर उसकी थी जिस पर मै बैठा हुआ था . उसने मुझे कितनी बुरी - बुरी गालियाँ दी , क्या बताऊँ ? विलेज सर्वेट रवानिया की तरफ देखकर वो बोला " किसने इस भंगी के पिल्लै को चेयर में बैठने की इजाजत दी ? रवानिया ने मुझे उठाया और चेयर ले ली . मै जमीन पर बैठ गया . गाँववालो ने मुझे घेर रखा था ,
कोई मुझे गालियाँ बक रहा था तो कोई धमकी दे रहा था कि वो दरांती से काट कर मेरे टुकड़े - टुकड़े कर देंगे . मै उन लोगो बोला रहा था ” मुझे माफ़ी दे दो , मुझे छोड़ दो ” मगर किसी पर कोई असर नहीं हुआ . मेरी जान खतरे में थी और बचने का कोई तरीका नजर नहीं आ रहा था . फिर मुझे एक आईडिया आया . मुझे इस बारे में मामलातदार को लिखना चाहिए कि अगर मै इन लोगो के हाथो मारा जाऊं तो मेरा क्रियाकर्म कैसे करना है .
इंसीडेंटली मै ये सोचकर थोडा रिलेक्स हुआ कि कहीं इन्हें पता चल गया कि मै इनकी शिकायत मामलतदार से करूँगा तो शायद ये लोग पीछे हट जाए . मैंने रवानिया को बोला मुझे एक पेपर दो . उसने लाकर दिया . मैंने फाउन्टेन पेन से बोल्ड लैटर्स में लिखा . टू मामलतदार , तालुका बोरसाद . सर , परमार कालिदास , शिवराम का सादर नमस्कार , मै आपको ये इन्फॉर्म करना चाहता हूँ कि मेरी जान खतरे में है और ये सब इसलिए हुआ क्योंकि मैंने अपने पेरेंट की बात नहीं सुनी .
मेहरबानी करके मेरे पेरेंट्स को मेरी मौत की खबर पहुंचा दीजियेगा . लाइब्रेरियन ने मेरा लिखा हुआ लैटर पढ़ा , " फाड़ो इसे अभी ! " उसने मुझसे कहा . मैंने लैटर फाड़ दिया . सबने मिलकर मेरी बेइज्जती करनी शुरू कर दी . " तुम खुद को हमारा तलाती बोलते हो ? ' तुम भंगी होकर हमारे ऑफिस में आकर कुर्सी में बैठना चाहते हो ? ' उन लोगो के तेवर देखकर मै बेहद डर गया , मैंने उनसे रहम की भीख मांगी और बोला आइन्दा ऐसी गलती नहीं होगी . और मैंने प्रोमिस किया कि मै ये जॉब भी छोड़ दूंगा.शाम के 7 बजे तक भीड़ ने मुझे वहां से जाने नहीं दिया . तलाती और मुखिया भी तब तक वहां नहीं पहुचे थे . फिर जब गाँव वाले चले गए तो मै भी 15 दिन की छुट्टी लेकर अपने पेरेंट्स के पास बोम्बे लौट आया .


इस बुक समरी से हमने सीखा की Untouchability कैसे किसी के भी Life तो Distroy कर सकती है | हमें एक मॉडर्न इंडिया की तरह सोचना चाहिए और इस Untouchability का जहर अपने आने वाली पीड़ी को नहीं paas करना है एक अच्छा India तभी बन पायेगा जब हम मिलकर ideas के बारे में सोचेंगे और एक दूसरे की हेल्प करेंगे न की 1920 की सोच रखेंगे उम्मीद है हम इंडिया को उसकी Real पोजीशन No. 1 पर ले जायेंगे |


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गुरुवार, 8 अक्टूबर 2020

Sleep Smarter : 21 Essential Strategies to Sleep Your Way To A Better Body, Better Health and Bigger Success Book Summary in Hindi || How to sleep Faster in Hindi || How to Stay Productive in Hindi || How to overcome from Laziness In Hindi

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( Introduction ) => क्या आपको नींद ना आने की समस्या है ? क्या आपको बहुत मुश्किल से नींद आती है ? क्या आपकी नींद बीच बीच में टूट जाती है ? अगर हाँ तो ये बुक आपके लिए है.नींद हमारे जीवन का एक बहुत ज़रूरी हिस्सा है . ये बिलकुल खाने और सांस लेने जितना ज़रूरी है . फिर भी इस दौड़ती हुई ज़िन्दगी में हम इसपर ध्यान ही नहीं देते . ये बुक अच्छी और गहरी नींद से होने वाले फायदों के बारे में सिखाएगी . ये आपको बहुत से ऐसे टिप्स भी सिखाएगी जिसे फॉलो करने से आपके सोने का रूटीन पहले से ज्यादा बेहतर हो जाएगा . अच्छी और पूरी नींद आपको अच्छी औरज्यादा ख़ुशी देती है . येज्यादा सफलता हासिल करने में मदद करती है . और ये बिलकुल सच है . तो अब समय है कि आप चैन से गहरी नींद सो सके और मीठे सपने देख सकें.और मेरी मानिए तो ये बुक आपके लिए एकलोरी का काम करेगी .

1 - ( Know the value of Sleep )

=> आज कल लोग कम सोने लगे हैं , वोअपनी नींद पूरी नहीं करते क्योंकि उन्हें पता ही नहीं है कि ये हमारे लिए कितना ज़रूरी है . वो इसकी कीमत नहीं समझते.नींद हमारे शरीर और मन को समय समय पर आराम देने का एक नेचुरल प्रोसेस है.हमारे दिमाग का वो हिस्सा जिसकी वजह से जब हम होश में होते हैं तो सब देख सुन सकते हैं , समझ सकते हैं उसे कॉन्ससियस माइंड कहा जाता है . नींदउस प्रोसेस को कहते हैं जब हमारी आँखें बंद हो जाती हैं और कॉन्ससियस माइंड आराम कर रहा होता है . इसलिए सोते समय शरीर में ज्यादा हलचल नहीं होती और आस पास की चीज़ों की तरफ हम रियेक्ट नहीं करते . हमारे शरीर में दो तरह के प्रोसेस होते हैं . पहला एनाबोलिक ( anabolic ) जो ओर्गंस और टिश्यू कोबढाने का काम करता है औरइस प्रोसेस में नए सेल्स भीबनते हैं . दूसरा है केटाबोलिक ( catabolic ) जोकंपाउंड्स और मॉलिक्यूल्स को ब्रेक करके एनर्जी बनाने का काम करता है . इसलिए नींद एनाबोलिक प्रोसेस है जहां हमारा शरीर खुद को रिपेयर या ठीक करने की कोशिश करता है . जगे रहना केटाबोलिक प्रोसेस है जहां हमारी एनर्जी काम करने से यूज़ हो जाती है . नींद आपकी बॉडी को आराम दे कर फिर से तरोताज़ा कर देता है , उसमें नयी एनर्जी भर देता है . एक अच्छी और पूरी नींद आपके इम्यून सिस्टम को मज़बूत बनाती है , आपके मेटाबोलिज्म को और बेहतर बनाती है जिसकी वजह से आपमें ज्यादा एनर्जी होती है.रात को अच्छी नींद आने से आपका ब्रेन बहुत शांत महसूस करता है , आपके बॉडी में हॉर्मोन का लेवल भी बैलेंस में रहता है . अगर आप एक स्वस्थ शरीर और दिमाग चाहते हैं तो ये सब आपको गहरी नींद के बिना कभी नहीं मिल सकता . आज हम जिस दुनिया में रह रहे हैं , 

नींद के बारे में तो हम जैसे बिलकुल भूल ही चुके हैं . बस सब यही मान के बैठे हैं कि जितना ज्यादा काम और मेहनतकरेंगे उतनी ज्यादा सफलता मिलेगी . अब तो जैसे ये सोच हीहो गई है किमरने के बाद ही कोईचैन की नींद सो सकता है . ये बिलकुल सच है कि सफलता पाने के लिए मेहनत करना और लगातार अपने काम में लगे रहना बहुत ज़रूरी है.लेकिन अगर ठन्डे दिमाग सेकाम किया जाए तो गलतियां भी कम होंगी और काम भी जल्दी पूरा हो जाएगा , अब बताइए ये बुद्धिमानी नहीं है क्या ? सोचिये अगर आप नींद पूरी नहीं करेंगे तो क्या आपका काम खराब नहीं होगा ? रिसर्च में ये पता चला है कि अगर आप एक पूरा दिन नींद पूरी किये बिना काम करते हैं तो आपके ब्रेन में 6 % कम ग्लूकोस पहुंचता है जिसके कारण हमारा दिमाग बहुत थक जाता है क्योंकि उसे तो उसका पूरा खाना मिला ही नहीं . धीरे धीरे ये आपके दिमाग को कमज़ोर कर देता है . ऐसा ही चलता रहा तो एक दिन ऐसा आएगा कि आपको बातें ठीक से समझ में आना बंद हो जाएंगी . यही कारण है कि जब आप नींद पूरी नहीं करते तो आपको ज्यादा मीठा खाने की इच्छा होती है . इसलिए आपका मन डोनट , कूकीज और चॉकलेट खाने का करता है क्योंकि ब्रेन ये सिग्नल दे रहा है कि उसे शुगर की ज़रुरत है . एक और मज़े की बात सुनिए.जबआप कम सोते हैं तो हमारे ब्रेन का जो हिस्सा हमें सोचने समझने में मदद करता है , सबसे ज्यादा उसी हिस्से को नुक्सान पहुंचता है . हमारे ब्रेन के आगे का सबसे ज़रूरी हिस्सा , जिसे प्रीफ्रंटल कोर्टेक्स ( prefrontal cortex ) कहा जाता है , हमारे ब्रेन में ज़्यादातर काम यही हिस्सा करता है.

2 - ( parietal lobe )

हमारे ब्रेन का पीछे का हिस्सा होता है और नींद पूरी ना होने से इन दोनों हिस्सों में 14 % ग्लूकोस कम पहुंचता है इसलिए आधी रात के बाद लोग बेवकूफों जैसा व्यवहार करते हैं . क्या ये आपके साथ कभी हुआ है ? कम सोने की वजह से आपका दिमाग थक जाता है , सही और गलत के बीच फर्क नहीं कर पाता और इसलिए सही फैसले नहीं ले पाता है.इसलिएसुबह जब आपका माइंड आराम कर के फ्रेश होता है तब आप वो बेवकूफियां नहीं करते हैं . जैसा कि हमने ऊपर पढ़ा कि नींद एक नेचुरल प्रोसेस है जो शरीर को आराम देने के लिए बनाया गया है तो ये मत सोचिये कि इसकी वजह से आपको काम बीच में बंद करना पड़ता है . आपके शरीर और दिमाग के लिए नींद बहुत ज़रूरी है , इस दौरान बॉडी के अन्दर बहुत से नेचुरल प्रोसेस अपना काम करते हैं.नींद पूरी ना होने से आप ठीक से काम कर ही नहीं पाएँगे . आप कोशिश करते रहेंगे पर गलतियां भी उतनी ही ज्यादा होंगी जिससे काम ख़तम होने में और ज्यादा समय लगेगा . रिसर्च में पता चला है कि जो लोग कम नींद लेते हैं उन्हें अपना काम ख़तम करने में 14 % ज्यादा समय लगता है और वो 20 % ज्यादा गलतियां करते हैं . नींद पूरी करने के लिए समय निकालना सीखिए तब आपको समझ में आएगा कि आपकी गलतियां कितनी कम हो गयी हैं और इसकी वजह से आप कितनी ज्यादा सफलता हासिल कर सकते हैं.जब आपका दिमाग थका हुआ हो तो आपका काम कभी ठीक नहीं हो सकता . तो यहाँ नींद के लिए एक पॉवर टिप सुनिए . अगर आपको किसी बड़े प्रोजेक्ट या एग्जाम के लिए तैयारी करनी है तो अपने कैलेंडर में उस तारीख को नोट कर लीजिये और उसके हिसाब से समय को इस तरह बांटिये कि आपके पास नींद पूरी करने का समय भी हो . याद रखिये ये समय की बर्बादी नहीं है , ये आपके दिमाग को तेज़ रखने का बस एक तरीका है . ये आपके प्रोजेक्ट या एग्जाम की तैयारी का एक अहम् हिस्सा है .

3 - ( Get More Sunlight During the Day )

=> क्या आपने " सिरकाडियन टाइमिंग सिस्टम " ( circadian timing system ) के बारे में सुना है ? आसान शब्दों में ये हमारे बॉडी का नेचुरल क्लॉक है जो 24 घंटे काम करता रहता है . अगर आपके शरीर को दिन में सही मात्रा में धूप मिलती है तो उसे पता चल जाता है कि कब सोना है . धूप मिलने से नींद बहुत अच्छी और गहरी आती है . ये घडी हमारे ब्रेन के हाइपोथैलेमस ग्लैंड में होता है . नसों का एक ग्रुप है जो धूप को पहचान सकता है और महसूस कर सकता है जिससे आपके शरीर को पता चल जाता है कि उसे कब सोना है.धूप में जाने से हाइपोथैलेमस पूरी बॉडी को सिग्नल देता है कि अभी उसे जगे रहना है और काम करना है . अगर आपको दिन में ठीक से धूप ना मिले या आप रात को ज्यादा रौशनी में रहते हैं तो ये ग्लैंड कंफ्यूज हो जाता है . तब नींद आने में बहुत दिक्कत होती है . लेकिन अगर आप का काम एक जगह ऑफिस के अन्दर बैठ कर करने का है तो आप क्या करेंगे ? रिसर्च से ये पता चला है कि ऑफिस में काम करने वाले लोगों को ठीक से मिलने की वजह से आमतौर पर उन्हें 1 घंटा कम नींद आती है . इसलिए उनके बीमार पड़ने का ख़तरा बढ़ जाता है , उनमें कम एनर्जी होती है और नींद आने में समस्या होने लगती है . अगर आप भी ऑफिस में एक जगह बैठ कर काम करते हैं तो कोई ना कोई तरीका सोचिये जिससे आपको ठीक से धूप मिल सके , ये आपको ज्यादा खुशमिजाज़ बनाएगी और आप कम गलतियां करके ज्यादा काम कर पाएँगे . तो यहाँ धूप सेकने का एक पावर टिप ये है कि सुबहऑफिस जाने से पहले 6-8 बजे के बीच धूप में सैर कीजिये या बैठ जाइये . इस समय की धूप शरीर को बहुत फायदा पहुंचाती है क्योंकि सुबह की धूप में ज्यादा गर्मी नहीं होती . सुबह 30 मिनटकीधूप भी शरीर के लिए काफी होता है . तो टिप नंबर 2 है
कि अगर ऑफिस में आप जहाँ बैठते हैं वहाँ धूप नहींआती तो ब्रेक के समय ऑफिस से बाहर निकल कर धूप का आनंद लीजिये . या आप किसी खिड़की के पास जा सकते हैं या अपना लंच बाहर कर सकते हैं . ये 15 मिनट की धूप भी आपके शरीर को बहुत सारे नुकसानों से बचाएगी . आपकी स्किन पहले से अच्छी होगी और हॉर्मोन भी बेहतर काम करने लगेगा . 

4 - ( Avoid the Screens before Bedtime )

=> अब हम बात करेंगे आपके इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स से निकलने वाली आर्टिफीसियल ब्लू लाइट के बारे में.क्या आप जानते हैं कि ये लाइट आपकी बॉडी परकितना खराब असर डालता है ? इसकी वजह सेकोर्टिसोल हॉर्मोन ज्यादा बनने लगता है.जब हम तनाव में होते हैं तो कोर्टिसोलहमें उसे झेलने में मदद करता है लेकिन अगर ये ज्यादा हो गया तो नींद भी खराब कर देता है . रिसर्च करने से ये पता चला कि अगर 2 घंटे ipad को ज्यादा ब्राइटनेस के साथ इस्तेमाल किया जाए तो रात को हमारे शरीर में बनने वाला हॉर्मोन मेलाटोनिन कम बनने लगता है . मेलाटोनिन वो हॉर्मोन है जो हमें यंग और एक्टिव रखता है . बच्चों के शरीर में ये ज्यादा बनता है , बड़ों में थोडा कम हो जाता है . इसलिए अगर आप नींद पूरी करते हैं तो जितना मेलाटोनिन ज़रूरी है उतना हमारे शरीर में बनेगा जिसकी वजाह से आप अपनी उम्र से छोटे लगेंगे और तेज़ और फुर्तीले भी रहेंगे . हॉर्मोन लेवल बिगाड़ने के अलावा आपकेस्मार्टफ़ोन , टीवी और लैपटॉप से निकलने वाली ब्लू लाइट आपकी बॉडी के नेचुरल क्लॉक को भी खराब कर देती है . अगर आप हर रोज़ सोने से पहले इन गैजेट्स का इस्तेमाल करते हैं तो समय के साथ आपको नींद ना आने की बिमारी और दूसरी बीमारियाँ भी हो सकती हैं . आज की मॉडर्न टेक्नोलॉजी सच में कमाल की है लेकिन हमें अपने शरीर को आराम देने की बात पर अब ज्यादा ध्यान देना होगा.इससे खुद को बचाने का एक पॉवर टिप ये है कि सोने से 90 मिनट पहले सारे गैजेट्स को यूज़ करना बंद कर दीजिये . खासकरवो लोग जिन्हें नींद आने में दिक्कत होती है , उन्हेंतोये टिपज़रूर ट्राय करना चाहिए . दूसरा टिप ये है कि गैजेट्स के इस्तेमाल के अलावा कुछ और करने की आदत डालिए जैसे बुक्स पढना या किसी अपने से बात करना . हाँ आप अपने स्मार्टफ़ोन के बिना नहीं रह सकते लेकिन बुक्स पढना एक बहुत कमाल की आदत है . बुक्स हमें जानकारी देती है , हमारी नॉलेज बढ़ाती है , हमेंकईअच्छी कहानियां पढने को मिलती हैं और उनमें से कुछ हमें इंस्पायर भी करती है . कभी कभी हमें ऐसे विचारों के बारे में पढने को मिलता है जिन्हें सुन कर हम और बेहतर इंसान बन जाते हैं तो अब समझे , यूही नही कहते कि बुक्स हमारी सबसे अच्छी दोस्त होती है . किसी अपने के साथ बैठ कर बात करने का मुकाबला तो कुछ भी नहीं कर सकता . सोने से पहले अपने बच्चों , अपने पेरेंट्स , अपने पति या पत्नी या अपने पार्टनर से ज़रूर बातें करें . उनसेपूछिए कि उनका दिन कैसा बीता , उन्हें क्या खुश करता है , वो किसी बात से परेशान तो नहीं है ना . आपके ऐसा करने से वो भी आपसे ये सब पूछेगे जिससे आपको बहुत अच्छा और हल्का महसूस होगा . इससे सिर्फ आपकी नींद अच्छी नहीं होगी बल्कि आपके रिश्तों में भी पहले से ज्यादा मिठास होगी .

5 - ( Have a Caffeine Curfew )

=> कैफीन आपके नर्वस सिस्टम को बहुत एक्टिव कर देता है , ऐसा लगता है जैसे कि अन्दर क्रिसमस ट्री सजी हो जिसपर बहुत सारे बल्ब लगें हैं और उस में से रौशनी ही रौशनी निकल रही है . इसलिए आपको सोने से पहले कॉफ़ी बिलकुल नहीं पीना चाहिए . लोगों को कॉफ़ी बहुत पसंद है लेकिन हमें इसे अंधाधुन नहींपीना चाहिए . आपकोकॉफ़ीपर कयूं लगाने की आदत डालनी होगी मतलब आखरी बार कॉफ़ी आप सोने से 6 घंटे पहले पी सकते है बस , उसके बाद नहीं . वायने स्टेट यूनिवर्सिटी ( Wayne State University ) में किये गए एक स्टडी ने इसे साबित किया है . इस स्टडी में लो के तीन ग्रुप बनाये गए : एक ग्रुप को सोने से ठीक पहले कॉफ़ी पीना था , एक को सोने से 3 घंटे पहले और एक को सोने से 6 घंटे पहले.उन्हें एक डायरी में अपने नींद आने का समय नोट करने के लिए कहा गया . इसका रिजल्ट ये था कि तीनों ग्रुप के लोगों को नींद आने में दिक्कत हुई . सोने से ठीक पहले कॉफ़ी पीने वालों का हाल सबसे बुरा था . इसमें ये भी पता चला कि काम ख़त्म हो जाने के बाद भी कॉफ़ी नहीं पीने चाहिए . 6 घंटे पहले कॉफ़ी पीने वालों की नींद पहले से 1 घंटे कम हो गई थी . क्या आप जानते हैं कि कॉफ़ी पीने के बाद कैफीन आपके शरीर में 8 घंटे तक रहता है ? चलिए मान लेते हैं आपने 200 mg कॉफ़ी पी , 8 घंटों के बाद भी आपके शरीर में 100 mg कॉफ़ी होती है , उसके 8 घंटे बाद 50 mg होगी . अगर सच में आपको कॉफ़ी बहुत पसंद है तब तो आप रोज़ एक कप से ज्यादा ही पीते होंगे . तोअब आपको समझ रहा होगा कि आपको नींद आने में कितनी मुश्किल होने वाली है . पूरे दिन काम करने से हमारा ब्रेन थक जाता है औरएक केमिकल जिसका नाम adenosine है वो बनाता है . इस केमिकल की वजह से हम थकान महसूस करते हैं . अगर इसका लेवल ज्यादा हो जाता है तो ये बॉडी का सिग्नल है कि अब हमें सोने की ज़रुरत है . अब अगर आप कॉफ़ी पी लेते हैं तो कैफीन नींद नहीं आने देता जबकि adenosine की वजह से थकान होती है , पर कैफीन की वजह से आपको समझ में ही नहीं आता की आपको सोने की ज़रुरत है . आप बस काम करते चले जाते हैं और इससे स्ट्रेस लेवल बढ़ जाता जिसकी वजह से आपका शरीर खराब होने लगता है . कैफीन से बचने के लिए पॉवर टिप नंबर 1
है कि दिनमें 2 बजे तक ही आप कॉफ़ी पी सकते हैं , उसके बाद बिलकुल नहीं .
टिप नंबर 2 - हफ्ते में 3 दिन बिलकुल कॉफ़ी मत पीजिये . ऐसा करने से आपके बॉडी में जमा कैफीन निकल जाएगा . अगर आपको नींद ना आने की बिमारी है तो आपको कॉफ़ी बिलकुल नहीं पीना चाहिए .

6 - ( Be Cool )

=> क्या आपने देखा है कि ज्यादा गर्मी लगने पर हमें नींद नहीं आती , है ना ? गर्मी के मौसम मंफ़ बेड पर कभी इस तरफ तो कभी उस तरफ आप भी मुड़ते ही होंगे . सोने के समय अपने आप हमारे शरीर का टेम्परेचर नीचे आ जाता है . ऐसा इसलिए होता कि नींद आने के लिए शरीर में गर्मी कम होनी चाहिए . लेकिन जिस कमरे में आप सो रहे हैं अगर वो गरम हुआ तो भी आपको नींद नहीं आएगी . एक्सपर्ट्स का मानना है कि सोने के लिए रूम का टेम्परेचर 68 डिग्री फ़ारेनहाइट ( fahrenheit ) सबसे सटीक होता है . अगर टेम्परेचर इससे ज्यादा हुआ तो आप सो नहीं पाएँगे . एक्सपर्ट्स ये भी कहते हैं कि जिन लोगों को नींद ना आने की बिमारी होती है उनके शरीर का टेम्परेचर ज्यादा बढ़ा हुआ होता है जिसकी वजह से उन्हें नींद नहीं आती . आप सोच रहे होंगे कि इसे कैसे बदला जा सकता है . अच्छी नींद के लिए कैसे टेम्परेचर सही डिग्री पर रखा जाए . तो इसके लिए टिप नंबर 1 है- अपने कमरे का टेम्परेचर 68 डिग्री करने की कोशिश कीजिये . अगर फिर भी आपको नींद नहीं आती तो टिप नंबर 2 है - सोनेसे 1 घंटे पहले हलके गर्म पानी से नहा लीजिये , इससे आपके बॉडी का टेम्परेचर नीचे आ जाएगा.जिन बच्चों में बहत ज्यादा एनर्जी होती है उनके पेरेंट्स इस ट्रिक के बारे में बहुत अच्छे से जानते हैं . टिप नंबर 3 है - सॉक्स या मोज़े पहन कर सोना चाहिए . अगर आपका कमरा ज्यादा ठंडा है तो आपके हाथ और पैर की उंगलियाँ आपके शरीर के मुकाबले ज्यादा ठंडी होंगी . ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वहाँ ब्लड सबसे लास्ट में पहुंचता है . इसलिए अगर आप सॉक्स पहन कर सोएंगे तो आपकी उंगलियाँ गर्म हो जाएंगी , इससेआपको ज्यादा आराम मिलेगा और अच्छी नींद आएगी .

7 - ( Get to Bed at the Right Time )

=> स्टॉकमार्केट के बिज़नस में स्टॉक खरीदने और बेचने का एक सही समय होता है . वैसे ही , जितनी देर हम सोते हैं उसमे से कुछ समय ऐसा होता है जब शरीरमें ज़रूरी होरमोंस बनते हैं . ये समय होता है रात 10 से 2 बजे तक . ऑथर इसे " मनी टाइम ” कहते हैं . एक्जाम्पल के लिए अगर आप रात को 1 बजे सोने जाते हैं और सुबह 9 बजे उठते हैं तो आप कहेंगे कि हमने 8 घंटे की नींद पूरी कर ली . पर आप ये नहीं समझते कि आपने वो " मनी टाइम " मिस कर दिया जिसमें ज़रूरी होरमोंस बनते हैं . कुछहोरमोंसजोआपको पूरे नहीं मिलते वो मेलाटोनिन और ग्रोथ हॉर्मोन है . ये हमारे शरीर को यंग और एक्टिव रखने में मदद करते हैं . इसलिए 8 घंटे के नींद के बावजूद भी आप थकान महसूस करते हैं . हमारे बॉडी क्लॉक में ऐसा समय भी होता है जिसे " सेकंड विंड " कहा जाता है.सेकंड विंड वो समय होता है जब हमारे शरीर में कुछ केमिकल्स बनते हैं जिसकी वजह से कुछ समय के लिए हमारी नींद उड़ जाती है . एक्जाम्पल के लिए , आप काम करके शाम 7 बजे आते हैं , आप बहुत थका हुआ महसूस करते हैं . खाना कखा कर आप परिवार के साथ टीवी देखने बैठ जाते हैं . अब अगर 10 बजे के बाद भी आप जगे रहते हैं तो आप " सेकंड विंड " महसूस करेंगे . ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आपका शरीर मेलाटोनिन और एंटीऑक्सिडेंट्स बनाने लगता है जिसकी वजह से आप फ्रेश और एनेर्गेटिक महसूस करते हैं . अब आप सोने की बजाय इस एक्स्ट्रा एनर्जी को फेसबुक , ट्विटर और नेटफ्लिक्स देखने में लगा देते हैं . इसके बाद तो आपको नींद बहुत मुश्किल से आएगी . जब तक सेकंड विंड शुरू होता है तब तक तो आपको सो जाना चाहिए . लेकिन अगर आप सोने की बजाय गैजेट्स यूज़ करेंगेऔर 1 बजे सोएंगे तो कितना भी सो लीजिये आप सुबह थका हुआ ही महसूस करेंगे क्योंकि आपको उस मनी टाइम का फायदा तो हुआ ही नहीं .तो इसके लिए टिप नंबर 1 है - कोशिश कीजिये कि आप रात 10 बजे सो कर सुबह 5:30 तक उठ जाएं . इससे आपको रात को बनने वालेहोरमोंस से फायदा मिलेगाऔर नींद की ये साइकिल पूरी हो जाएगी . नींद के 3 स्टेज होते हैं पहलाडीप स्लीप मतलब गहरी नींद , दूसरा नॉन- रेम या अलर्ट स्टेजजिसमें मेटाबोलिक सिस्टम , सांसलेने की स्पीड और हार्ट रेट धीरे हो जाते हैं . इस स्टेज पर सपने नहीं आते . तीसरा स्टेज है रेम स्टेज या ड्रीमिंग स्टेज जिसमें हमें सपने आते हैं . हर स्टेज 90 मिनट्स का होता है और हमारी नींद के दौरान ये साइकिल दो बार रिपीट होता है . अगर आपका अलार्म आपको सुबह 5:30 बजे जगाता है तो आप 2 स्लीप साइकिल पूरे कर लेते हैं , किसी भी स्टेज में कोई बाधा नहीं होती और आप सुबह तरोताजा महसूस करते हैं . टिप नंबर 2 है - जितनी जल्दी हो सके सुबह की धूप का फायदा उठाइए . धूप आपकी स्किन में कोर्टिसोल लेवल को बढ़ा देता है जिससे आप पूरी तरह से जाग जाते हैं और आपमें पूरा दिन काम करने की फूर्ती भी आ जाती है .

8 - ( Rub the " Anti - Stress " Mineral Into Your Skin Each Day )

=> हम जिस एंटी स्ट्रेस मिनरल की बात करने जा रहे है वो मैग्नीशियम है . शायद आपको पता ना हो कि मैग्नीशियम हमारे शरीर के लिए कितना फायदेमंद है . ये ब्लड सर्कुलेशन को बेहतर करता है , ब्लड प्रेशर और शुगर को कण्ट्रोल करने में मदद करता है . कहींभी दर्द हो या किसी muscle में तकलीफ हो तो ये वहाँ आराम पहुंचाने का काम करता डॉक्टर्स का कहना है कि हमारे ब्रेन , मसल्स और हड्डियों में होने वाले अलग अलग तरह के 300 केमिकल रिएक्शन मैग्नीशियम की मदद से होते हैं . येखाने को ब्रेक करके एनर्जी में बदलने में सेल्स की मदद करता है और हमारे नर्वस सिस्टम को शांत और ठंडा रखता है . इसलिए मैग्नीशियम एक स्वस्थ शरीर और लम्बे जीवन के लिए बहुत ज़रूरी होता है . मगर ज़्यादातर लोगों को मैग्नीशियम पूरी तरह नहीं मिल पाता . क्या आपको पता है अमेरिका में 80 % लोगों में मैग्नीशियम की कमी है . रिसर्च में ये बात सामने आई है कि इसकी कमी से नींद ना आने की बहुत गंभीर बिमारी होती है . इसलिए अगर आप चैन की नींद सोना चाहते हैं और तनाव को दूर रखना चाते हैं तो आपके शरीर में ज्यादा मैग्नीशियम होना चाहिए . मैग्नीशियम आपको फलों और सब्जियों से मिलता है या आप डॉक्टर से पूछ कर मैग्नीशियम टेबलेट भी ले सकते हैं . पर एक और असरदार तरीका है इस एंटी स्ट्रेस मिनरल के फायदे लेने का . क्या आपने " एप्सम सॉल्ट " ( epsom salt ) के बारे में सुना है ? ये नमक जैसा ही होता है . ये मैग्नीशियम , सल्फर और ऑक्सीजन मिल कर बनता है.इसे अगर आप पानी में डाल कर नहाते हैं तो ये तनावकम करता है , दर्द को मिटाने में मदद करता है और इससे बहुत अच्छी नींद आती है . आजकल मैग्नीशियम आयल भी मिलने लगा है . इस बुक के ऑथर शॉन स्टीवेंसन रोज़ रात को इसे पूरी बॉडी में लगा कर मालिश करते हैं जिसकी वजह से उन्हें ज्यादा अच्छी नींद आती है . हमारे डाइजेशन प्रोसेसमेंकुछ मैग्नीशियमनष्ट हो जाता है . इसलिए इससे मालिश करना एक असरदार तरीका है क्योंकि आपकी स्किन से ये शरीर के अन्दर चला जाता है . तो इसका पॉवर टिप नंबर 1 है - अपने गले और कन्धों पर मैग्नीशियम आयल से मालिश कीजिये . अगर कहीं आप दर्द महसूस कर रहे हों तो वहाँ भी इसे लगा सकते हैं . टिप नंबर 2 है - हरी सब्जियां ज्यादा खाइए . ये आपको स्पिरुलिना , तिल केबीज ( sesame seeds ) और कद्दू के बीज ( pumpkin seeds ) में भी मिलता है .

9 - ( Create a Sleep Sanctuary )

=> आपका बेडरूम आराम करने और सोने के लिए होता है , इसलिए अपने गैजेट्स लाकर इसे एंटरटेनमेंट एरिया मत बनाइये . अपना ऑफिस का काम भी बेडरूम में मत कीजिये . ये सब एक अच्छी नींद में बाधा डालते हैं . हम बच्चों को ये सिखाते हैं कि बेडरूम में जाने का मतलब होता है कि सोने का समय हो गया है . हम उन्हें ब्रश करने और आरामदायक कपडे जैसे नाईट सूट या पजामा पहनने के लिए कहते हैं . यही बात हमें खुद को याद दिलाने की ज़रुरत है कि बेडरूम सिर्फ आराम करने लिए होता है काम करने , पढने या खेलने के लिए नहीं . जब हम सैंक्चुअरी ( sanctuary ) का नाम सुनते हैं तो हमारे दिमाग में क्या आता है ? एक गार्डन या खुली जगह है जहां ताज़ा हवा है , पेड़ पौधे लगे हुए हैं . ऐसी जगह जहां बहुत शान्ति है . सबसे अच्छी बात तो ये है कि आप अपने बेडरूम को बिलकुल ऐसा बना सकते हैं . सबसे पहले तो रूम में ताज़ी हवा का सर्कुलेशनहोनाबहुत ज़रूरी है . इससे सिर्फ आपको ऑक्सीजन नहीं मिलता बल्कि ऐसे आयन पार्टिकल्स ( ion particles ) भी मिलते हैं जो शरीर के लिए बहुत अच्छे होते हैं . इसके लिए आप खिडकियों को खोल सकते हैं या फैन का इस्तेमाल कर सकते हैं . ताज़ी और ठंडी हवा में शरीर बहुत हल्का महसूस करता है . अब बात करते हैं नेगेटिव आयन पार्टिकल्स के बारे में . ये अच्छे पार्टिकल्सहोते हैं जो पहाड़ों , समद्र , नदियों और झरनों के पास ज्यादा होते हैं . इनमें शरीर को आराम पहुंचानेऔर बीमारियों के ठीक करने की ताकत होती है क्योंकि ये हवा में से डस्ट , गन्दगी , बदबू , बैक्टीरिया और वायरस को मिटाने का काम करते हैं . आप " एयर आइयोनाइज़र " खरीद कर रूम में रख सकते हैं . अगर आपके रूम में खिड़की नहीं है तो आप एयर हुमिडि फायर लगा सकते हैं . इसका काम होता है रूम में हुमिडिट मतलब नमी को बना कर रखना ताकि आपकी स्किन ज्यादा ड्राई ना हो जाए . आप इसमें अपनी पसंद की खुसबू का इस्तेमाल कर सकते हैं . हवा में नमी और खुसबू से आपको बेहतर नींद आएगी . कुछ लोगों को बहते हुए पानी की आवाज़ बहुत सुकून देती है तो आप एक छोटा फाउंटेन या वॉटरफॉल अपने कमरे में लगा सकते हैं . आप घरों में लगाने वाले पौधे जैसे इंग्लिश आइवी , snake प्लांटया जैस्मिन लगा सकते हैं.इन्हेंज्यादा संभालने की ज़रुरत नहीं पड़ती ना इसमें ज्यादा खर्चा होता है मगर ये आपके रूम में हवा की क्वालिटी को बहुत अच्छा कर देते हैं . आप इनमें से कुछ भी इस्तेमाल कर सकते हैं , ये आपकी मर्जी है . ज्यादा ज़रूरी ये है कि आपका कमरा ऐसा हो जहां आपको शान्ति और आराम महसूस हो . 

10 - ( Get it Blacked out )

=> एक सच ये भी है कि लाइट बंद कर के सोने से नींद ज्यादा अच्छी आती है और इसका कारण है कि आपकी स्किन लाइट को पहचान लेती है इसलिए अगर आप आँखों को ढक कर भी सोते हैं तब भी आपको लाइट की वजह से नींद नहीं आएगी.आँखों में रेटिना की तरह , हमारी स्किन में भी फोटो रिसेप्टर और लाइट सेंसिटिव केमिकल होता है जो लाइट को महसूस कर सकता है . इसलिएसोते समय कमरे में कम रौशनी होनी चाहिए . पुराने समय के लोगों के बारे में सोचिये , उनके पास ये बल्ब और ट्यूबलाइट नहीं होते थे इसलिए उनके शरीर का क्लॉक बिलकुल नेचर के हिसाब से काम करता था . वो समझ जाते थे कि जब सूरज उगता है तो उठने और काम करने का समय हो जाता है और उसके ढलने पर आराम और नींद का समय होता है . मगर आज इस मॉडर्न समय में हर जगह इंसानों द्वारा बनाई गई आर्टिफीसियल लाइट जिसकी वजह से जितनी नींद हमें लेनी चाहिए उतनी हम लेते नहीं हैं . तो इसका उपाय ये है कि सोने के समय बेडरूम में बिलकुल लाइट नहीं होनी चाहिए .. .आप कमरे में परदे भी लगा सकते हैं ताकि स्ट्रीट लैंप या गाड़ियों की लाइट से आपकी नींद खराब ना हो.सोचिये आपको कितनी अच्छी और चैन की नींद आएगी अगर आपके कमरे में अँधेरा होगा , शान्ति होगी और कमरा हल्का सा ठंडा होगा तो . ऐसा लगेगा जैसे आप छुट्टियां मनाने आये हैं और होटल के कमरे में शान्ति से सो रहे हैं . आप देखिएगा आप सुबह कितना हल्का और तरोताज़ा महसूस करेंगे . तो इसके लिए टिप नंबर 1 है - आपके अलार्म घडी से भी रौशनी निकलती है तो उसे आप टॉवेल से ढक सकते हैं . टिप नंबर 2- अपने कमरे में बिलकुल रौशनी मत आने दीजिये . चेक कीजिये कि परदे ठीक से लगे हैं या नहीं . कोशिश कीजिये कि सुबह सूरज उगने के बाद भी आपके कमरे में रौशनी कम हो . 

11 - ( Train Hard But Smart )

=> नींद और एक्सरसाइज का एक दूसरे से गहरा रिश्ता हैमानो दोनों साथ साथ चलते हैं . वो बिलकुल पीनट बटर और जेली की जोड़ी की तरह हैं . जब आप एक्सरसाइज करते हैं तो आपके मसल्स थक जाते हैं . देखा जाए तो जो बदलाव आप अपने शरीर में चाहते हैं वो आपके नींद में भी बदलाव करता है . थकान की वजह से आपको उन सब चीज़ों का फायदा होता है जो सिर्फ नींद आने के बाद ही होती हैं जैसे गहरी नींद में हमारे शरीर में बनने वाले होर्मोन्स और शरीर का खुद को रिपेयर करने का काम . एक्सरसाइज करने का सबसे अच्छा समय होता है सुबह सुबह . इसी की वजह से आपको बहुत अच्छी नींद आएगी . शाम को एक्सरसाइज करना ज्यादा फायदेमंद नहीं होता क्योंकि ये दिन भर काम करके थक चुके मसल्स को और भी ज्यादा थका देता है और एक्सरसाइज करने के 6 घंटे बाद जाकर आपके शरीर का टेम्परेचर कम होता है जो आपकी नींद डिस्टर्ब कर सकता है . बस 30 मिनट कुछ बेसिक एक्सरसाइज जैसे पुश - अप , सिट - अप और लंजेस करना भी काफी होता है . एक्सरसाइज के वक़्त अगर आपको धूप भी मिल जाए तो बहुत बढ़िया होता है . इससे आपके शरीर और दिमाग दोनों को बहुत सारे फायदे होंगे .

( Conclusion )  

=> तो आपने सीखा कि नींद हमारे लिए कितना ज़रूरी है . आपने बहुत सारे ऐसे टिप्स के बारे में जाना जो आपको एक अच्छी और गहरी नींद सोने में मदद कर सकते हैं . अगर आपको नींद आने में दिक्कत होती है तो मैं आशा करता हूँ कि आपइन टिप्स का इस्तेमाल करके अपने जीवन में बदलाव लायेंगे . नींद का मतलब सिर्फ सोना नहीं होताहै . अगर आप ठीक से नींद पूरी करते हैं तो सुबह कम गलतियां करके जल्दी अपना काम ख़तम कर पाएँगे . आप ज्यादा स्वस्थ और खुश होंगे.इस तरह की थकान दूर करने वाली भरपूरनींद आपको सफलता के और पास ले जाएगी . पर ये तो तब होगा जब आप इसके बारे में गहराई से सोच कर इसे बदलने की कोशिश करेंगे . आखिर में -हमें सोचने की ज़रुरत है कि हमें अपनेगैजेट्स सेइतना लगाव है कि हम उसे समय समय पर चार्ज करते रहते हैं , काम पूरा हो जाने पर बंद कर देते हैं . पर इस शरीर का क्या ? ये जो गैजेट आपकोमिला है क्याउसे आराम देने की और चार्ज करने की ज़रुरत नहीं है ? इसे चार्ज करने के लिए आपके पास समय क्यों नहीं है ? इस बारे में सोचियेगा ज़रूर .

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शनिवार, 3 अक्टूबर 2020

The Monk Who Sold His Ferrari Book Summary In Hindi || How To Live Stress Free Life In Hindi || सन्यासी जिसने अपनी संपत्ति बेच दी || Robin Sharma Books In Hindi

The Monk Who Sold His Ferrari Book Summary In Hindi || How To Live Stress Free Life In Hindi

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Introduction

=> जूलियन और जॉन दोनों लॉयर हैं . एक दिन , जूलियन ने सब कुछ बेच कर हिमालय की यात्रा पर जाने का फैसला किया . जब जूलियन वापस आया , तो उसने अपने बेस्ट फ्रेंड जॉन को उन चीज़ों के बारे में बताया जो उसने इस जर्नी से सीखी हैं . अगर आपको इंस्पिरेशन और मोटिवेशन की ज़रुरत है , तो आपको इस बुक को पढ़ना चाहिए . ये कहानी आपको ज्ञान , साहस , पाजिटिविटी , मीनिंग और पर्पस के बारे में सिखाएगी . यह बुक किसे पढनी चाहिए एम्प्लॉईज़ , लॉयर्स , बैंकर्स , सभी प्रोफेशन के लोग , जो लोग काम करते करते थक चुके हैं ऑथर के बारे में रॉबिन शर्मा ने 10 से ज़्यादा बुक्स लिखी हैं . वो एक मोटिवेशनल स्पीकर और एक ट्रेनर भी हैं . वो लीडरशिप , प्रोडक्टिविटी और मास्टरी के बारे में लोगों को , मैनेजर्स और टीम को ट्रेनिंग देते हैं . वो अपनी वेबसाइट पर ट्रेनिंग प्रोग्राम और ऑनलाइन कोर्स सिखाते हैं .

1. THE WAKEUP CALL

=> मै हैरान था !! अचंभित था ये देख कर कि जिस इंसान ने अदालत में खड़े होकर अनगिनत कानूनी मामले जीत कर पूरे देश में नाम और शोहरत कमाया था.आज वही प्रख्यात वकील उसी भरी अदालत में ज़मीन पर गिरा हुआ था . वो इंसान जो अपने काम और सफलता के लिए मशहूर थे , जिनके शानो - शौकत के चर्चे होते थेआज वही इंसान ज़मीन पर तड़प रहे थेउनको आराम देने की सभी कोशिशे व्यर्थ लग रही थी.और मै बैठा यही सोच रहा था , " नहीं , आप ऐसे नहीं मर सकते " " जिस इंसान ने ज़िन्दगी अपनी शर्त पे जी हो . जिसने अपना मुकद्दर खुद लिखा हो , वो इन्सान इअसे नहीं मर सकता . 
वो इंसान जिसने अपने हुनर , काबिलियत और कठोर परिश्रम से इतनी सफलता और शोहरत पायी हो , वो इतनी आसानी से नहीं मर सकता " . महान जुलियन मेंटल से मेरे ताल्लुकात 17 साल पुराने है , जब मैंने उनके दफ्तर में काम करना शुरू किया था . धीरे - धीरे हमारे सम्बन्ध अच्छे होते गए , शायद मै उनको सबसे करीब से जानने लगा था . यकीन नहीं हो रहा थाकि ये वही जूलियन मेंटल है 17 साल पहले क्या तेज़ था इनकी आँखों में ! मानो पूरी दुनिया इन्ही पर निर्भर करती हो . हर चीज़ को अपनी ही शर्तो पर करना.या यूँ कहूँ कि हर परिस्तिथि को अपने में रखना इनकी आदत सी थी . शायद मुझ में भी कुछ बात रही होगी.
तभी तो इतने सारे लोगों के बीच उन्होंने मुझे चुनाएक मामूली लड़के को जिसका दूर दूर तक चालाकी से कोई ताल्लुक नहीं थी , हाँ बस ये कि मै अपने बलबूते पर हार्वर्ड लॉ स्कूल से पढ़ कर आया था . काबू जूलियन के साथ काम करना खुशनसीबी थी मेरी . आपको ये जानकर शायद हैरानी हो , जितनी शक्ति वो दुनिया को दिखाया करते थेउनके अन्दर उतना ही नर्म दिल एक बच्चा छुपा हुआ था . जो भावुक भी था और नादान भी . लेकिन जो दुनियादारी की फ़िक्र से बंधा हुआ था . उनका शानदार भव्य बंगला या चमचमाती लाल रंग की फेरारी के पीछे कुछ तो रहस्य था जो सब कुछ होते हुए भी उनके अन्दर एक अजीब सा अकेलापन होने लगा था . 
कुछ तो राज़ था जिसका असर उनके काम और व्यवहार दोनों पे दिखने लगा थाऔर शायद यही उनकी बेचैनी का कारण भी बन रही थी.शायद दुनिया की इस दौड़ में वो पीछे रहना नहीं चाहते थे , तभी तो शोहरत और कामयाबी की भूख उन्हें दिन - ब - दिन निगल रही थी . ये तुम क्या कर रहे थे जूलियन.सब कुछ तो था तुम्हारे पास फिर भी ये कैसे भूख थी तुम्हे ? क्या कुछ पाना था तुम्हे ? क्या चाहिए था तुम्हे ? किस चीज़ की तुम्हे तलाश थी ? आधी उम्र के होके भी वो बुजुर्ग लग रहे थे . एक गहरी थकान उनके चेहरे पर हमेशा कायम थी.और साथ ही वो हँसना भी भूलने लगे थे मुझे अब भी याद है , 
जब वो मुझसे अपने खालीपन की शिकायत करते थेवो कहते थे कि अब वो वकालत से ऊब चुके है.आज दिल का दौरा पड़ने से वही महान इंसान ज़मीन पर यूँ गिरे हुए थे जैसे मानो कि प्रकृति ने उन्हें जिंदगी के असली मायनों से मिला दिया हो . ' दुसरो के लिए जीना ” यही वजह थी जो कि नौजवान जूलियन ने वकील बनने का सपना देखा था . पर अब ये वजह कहीं गुम हो चुकी थी.इस खालीपन के पीछे एक गहरी कहानी थी , कुछ लोगों ने मुझे बताया था कि मेरे दाखिले से पहले फर्म में जूलियन के साथ एक बड़ी घटना घटी थीजिसने उनकी जिंदगी बदल दी . तब मुझे ये दीवारे पर्दो से मजबूत मालूम पड़ी . इस राज़ से में अब तक अनजान थाकोई भी उस बात का जिक्र नहीं करता जिसने जूलियन से शायद उनका ज़मीर छीन लिया . मुझे जानना था कि उस रोज़ जूलियन के साथ ऐसा क्या हुआ था ? जिसने मेरे सबसे अच्छे दोस्त की ये हालत की . और आज.मेरे ही सामने जूलियन पड़े हुए थेऔर मै हमेशा की तरह कुछ न कर सका !!

2 - वो रहस्यमयी अतिथि 

=> अब कंपनी जूलियन के बिना अपाहिज सी होने लगी थी और तुरंत ही आपातकालीन बैठक बुलाई गयी , इस बैठक में जो कुछ भी कहा गया उसने मुझे झंझोड़ कर रख दिया ! सबसे पहले सभी को सूचित किया गया कि जूलियन मेंटल को दिल का दौरा पड़ा था और कि उनकी हालत नाजुक बनी हुई है . आगे जो मैंने सुना वो शब्द मुझे आज तक याद है . " मुझे ये बताते हुए बेहद दुःख है कि जूलियन मेंटल ने हमारे परिवार को अलविदा कहने का निर्णय ले लिया है " . मुझे लगता था कि मै जूलियन को सबसे करीब से जानता था . पर शायद ऐसा नहीं था , मै जानता था कि उन्हें ये सब बोझ लगने लगा था , 
लेकिन मुझे ये अंदाजा नहीं था कि ये नौबत इतनी जल्दी आ जायेगी . हाँ ! ये सच था देश के सबसे बड़े वकीलों में से एक महान जूलियन मेंटल अब कभी वकालत नहीं करेंगे ! आज पूरे 3 साल बीत चुके है , मुझे आजजूलियन के बारे में सिर्फ इतना पता है कि उन्होंने अपना आलिशान बंगला और उस लाल फेरारी को बेचकर मन की शांति के लिए वो भारत रवाना हो गए थे " शायद अपने जीवन के कुछ प्रश्नों के जवाब ढूँढने " . इन 3 सालो ने , मुझे भी काफी हद तक बदल दिया.मै अपने परिवार के महत्त्व को समझने लगा हूँऔर कभी कभार आज भी अपनी मसरूफियत से वक्त निकाल कर जूलियन मेंटल को याद कर लेता हूँ . मगर ये जिंदगी मुझे चौंकाना छोड़ दे तो इसे जिंदगी कैसे कहेंगे ? एक दिन मेरे दफ्तर में लगभग 30 साल का एक नौजवान व्यक्ति आया.
वैसे ज्यादा काम होने की वजह से मैं लोगों से कम ही मिलता जुलता हूँपर कुछ तो बात थी उस व्यक्ति में जो उस पर नज़र पड़ते ही मै काफी मोहित हो गया , एक अलग सा ही सुकून था उसके चेहरे पर जो उसे बाकियों से अलग कर रहा था . मै मानो उसकी मौजूदगी से सम्मोहित हो चूका था कि तभी अचानक उस व्यक्ति ने बड़ी ही विनम्रता से मुझसे कहा .
" क्या आप अपने सभी मेहमानों से इसी तरह पेश आते है ? जिसने आप को अदालत के दांव - पेंच सिखाये है उनसे भी ? ये सुनते ही मेरे होश उड़ गए ! मै चौंक गया , जूलियन.ये तुम हो ? हाँ , वो नौजवान सा दिखने वाला व्यक्ति जूलियन है !! उत्साह की लहर मेरे अन्दर मानो उमड़ती जा रही थी . ये आखिर कैसे मुमकिन हो सकता है ? मुझे समय लगा ये यकीन करने मेंपर ये सच है . एक बदला हुआ जूलियन मेंटल मेरे सामने इस तरह खड़ा है मानो फ़रिश्ते भी उसे देख कर शरमा जाए ! ये शहद सी मीठी आवाज़ , ये तेज़ , ये ठहराव.आखिर क्या किया था जूलियन ने इन 3 सालो में कि उसे पहचान पाना भी अब मुश्किल हो रहा था .

3 - जूलियन मेंटल का जादुई काया - कल्प 

=> और एक बार फिर जूलियन मेंटल ने मुझे अचंभित कर दिया !! आखिर हिमालय की पहाड़ियों से ये कौन सी संजीवनी बूटी खाकर आये थे ? मै मन ही मन ये सोचने लगा.क्या वहां कोई जादुई कुंवा है जो इंसान को जवान बना देता है ? कैसे ये बुज़ुर्ग से दिखने वाले जूलियन इस तरह बदल गए कि मानो सभी देवी देवता इन्ही पर मेहरबान हुए हो . आखिर इन 3 सालो में जूलियन कहाँ थे ? और क्या कर रहे थे ? ये सभी सवाल मुझे उत्सुक कर रहे थे . लेकिन इससे पहले कि मैं कुछ पूछ पाता , जूलियन ने मेरे सभी सवाल मानो मेरी आँखों से पढ़ लिए हो जूलियन ने सबसे पहले ये बात कुबूल की कि वो कितने गलत थे
उनकी जिंदगी किस तरह ख़ुशी और महत्वपूर्ण सफलता के रास्ते से भटक गयी थी . बीमार पड़ने के बाद डॉक्टर्स ने उन्हें सलाह दी कि उन्हें अब कामयाबी की भूख त्यागनी होगी . क्योंकि यही बात अब उनकी जान की दुश्मन बन बैठी थी . उस वक्त जूलियन ने अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा फैसला लिया . ये फैसला था अपनी जिंदगी को चुनने का . एक अजीब इस रौनक थी उनके चेहरे पर जब जूलियन मुझे ये बता रहे थे कि किस तरह उन्होंने अपना घर और अपनी चहेती लाल फेरारी बेच कर भारत जाने का फैसला लिया . जूलियन किसी बच्चे की तरह उत्साहित होकर मुझे अपनी कहानी सुना रहे थेउस जगह के बारे में जहाँ सारी जीवन शैली प्रकृति की गोद में खेलती हैकिस तरह वो गाँव - गाँव में कभी रेल से तो कभी मीलों पैदल चलकर अपना बिखरा हुआ जीवन समेट रहे थे . मैं खुश थाकि जूलियन अब दुबारा हँसना सीख चुके थे . 
जूलियन ने तब मुझे बताया कि जगह - जगह घूमने पर उन्हें हिन्दुस्तानी सन्यासियों के बारे में पता चला . ये सन्यासी उम्र के मोहताज़ नहीं होते और कुछ ऐसे सन्यासी जिन्होंने इंसानी दिलो - दिमाग पर काबू करना सीख लिया था . मुझे हैरानी हुई ये जानकर कि मेरे दोस्त जूलियन इन्ही सन्यासियों के साथ अपना समय बिता कर आये है . उन अध्यापिको के साथ रहकर आये है जो बिना दक्षिणा के जीवन जीने का सलीका सिखाते है . तभी जूलियन ने मुझे कुछ ऐसे बात बताई जिसने मेरे पैरो तले ज़मीन हिला दी . कश्मीर की वादियों में घुमते वक्त वो एक ख़ास योगी से मिले जिन्होंने जूलियन को उम्मीद की किरण दिखाई . जूलियन की ही तरह वो योगी भी एक सफल वकील थे जिन्होंने मोह माया त्याग कर सन्यासी जीवन को चुना . 
योगी ने जूलियन को बताया कि कश्मीर से मीलों दूर हिमालय की चोटियों पर सीवाना नाम की एक बस्ती हैजहाँ हिमालय के सबसे आध्यात्मिक सन्यासियों का वास है . ये सन्यासी उम्र के हर पड़ाव को पार चुके है और कुछ तो मालिक है . वो जीते - जी ज्ञान के सागर है जिन्हें आत्मा और शरीर को तृप्त करने के सन्दर्भ में प्राचीन कला हासिल है . उन सन्यासी को कोई भी सामान्य व्यक्ति नहीं ढूंढ पाता . ये सुनते ही जूलियन को मालूम हो चूका था कि अब उनकी मंजिल कहाँ थीतब बिना वक्त गवांये वो सिवाना की खोज में जुट गए . अद्भुत शक्तियों के अगली सुबह सूरज की पहली किरण के साथ ही जूलियन की तलाश भी शुरू हुई . 
शुरुवाती दिनों में उसे बहुत दिक्कतों का सामना तो नहीं करना पड़ा लेकिन जैसे - जैसे समय बीतता गया जूलियन की मुश्किलें बडती गयी . रास्ते कठिन और जानलेवा बन चुके थे . और अब तो खाना और पानी भी काफी नहीं पड रहा था . लेकिन जूलियन ने हार नहीं मानी . हिमालय की ऊँची पहाड़ियों पर उन खूबसूरत वादियों में अकेले ही चड़ाई पर निकल पड़े . मैंने दबी हुई आवाज़ में जूलियन से पूछा कि क्या घर - बार छोड़ना कठिन नहीं थाउनका जवाब उनकी ही तरह बेबाक था . जूलियन ने कहा कि मोह को त्यागना उनके जीवन का सबसे कठिन नहीं बल्कि सबसे आसान उपाय था , इसके बदले उन्हें तृप्ति और अपार शान्ति नहीं मिलती जूलियन कई दिनों तक हिमालय पर भटकते रहे और अंत में उनकी सेहत भी उनका साथ छोड़ने लगी थी . एक मोड़ पर आकर वे से गयेउनकी आँखों के सामने उनकी पिछली जिंदगी के पल किलकारियां भर रहे थेवो क्या ढूँढने आये थे यहाँ ? और क्या उन्हें वो मिल पायेगा ? यही सोचते -सोचते जूलियन की आँखे बंद हो रही थी . लेकिन तभी.जूलियन ने अपने सामने एक छवि देखी . 
मैं ये सोच रहा था कि उस सुनसान और अंजान इलाके में किसी मनुष्य का होना कितना संभव होगा खैर , जूलियन ने होश संभालते हुए लाल कपड़ो में लिपटे उस व्यक्ति से मदद की गुहार लगाईं . जैसे ही वो व्यक्ति जूलियन की तरफ मुडा , उसकी दिव्यता देखकर जूलियन दंग रह गए . ऐसा अद्भुत स्वरुप जूलियन ने पहले कभी नहीं देखा था जिससे प्रभावित होकर जूलियन को ये समझ आ चूका था कि ये सिवान के उन सन्यासियों में से एक होंगे . उस व्यक्ति ने जूलियन से पूछा कि आखिर वो सिवान के सन्यासी को क्यों ढूंढ रहा था ? तभी जूलियन ने उन्हें अपनी पूरी कहानी बताई . और तब सन्यासी उन्हें एक शर्त पर अपने साथ सिवान ले जाने के लिए राजी हो गए . शर्त ये थी कि सन्यासी के द्वारा मिलने वाले ज्ञान को दुनिया भर में फैलाना . और उन्ही फलसफों से ज़रूरतमंदो की मदद करना . उस पल से ही सन्यासियों की ही तरह जूलियन का मकसद भी दुनिया को जीने की एक बेहतर जगह बनाना होगा .

4- सिवान के चमत्कारी साधुओ से एक अनोखी मुलाकात 

=> अब जूलियन ने चैन पाया और सिवान के उस संन्यासी के साथ निकल पड़े , रहस्यमय सिवान तक पहुचने के लिए . कई घंटो तक घुमावदार और जटिल रास्तो को पार करके जूलियन और संन्यासी एक हरी - भरी घाटी में पहुंच गए . एक तरफ हिमालय की उंची पर्वतमाला तो दूसरी ओर चीड़ के घनघोर पेड़ . इन दोनों के सम्मिलन ने घाटी की सुन्दरता को अद्भुत उंचाईयों पर पहुंचा दिया था . बस अब यही वो पल था . जूलियन का इंतज़ार ख़त्म हुआ जब संन्यासी ने उनसे कहा " सिवान में आपका स्वागत है ! " यहाँ दोनों फिर घाटी की ओर बढने लगे जो जंगल से होकर गुज़रता था . 
चीड़ और चन्दन के पेड़ो की खुशबू ने पूरे वातावरण को सम्मोहक कर दिया था . जंगल में चहचहाते पंछी मानो पेड़ो पर नाच रहे होधरती पर अगर स्वर्ग होता तो शायद ऐसा ही होता . कुछ दूरी तक चलने के बाद आखिरकार सिवाना नामक वो बस्ती जूलियन के बिलकुल सामने थी . गुलाब के फूलों से सजी हुई इस बस्ती के बीचो - बीच एक मंदिर बना हुआ था . इस बस्ती का हर व्यक्ति एक संन्यासी था . हर एक चेहरे पर हंसी और मुस्कराहट थी . जूलियन को ऐसा लग रहा था मानो तनाव नाम की बिमारी इस गाँव में थी ही नहीं और ना ही कभी किसी ने तनाव अनुभव किया होगा . जैसे - जैसे जूलियन ने यहाँ समय बिताया उसे इस जगह की दिव्यता और अद्भुतता का एहसास होने लगा . मानो यही वो जगह थी जो जूलियन की खोयो हुई जीने की चाह को दुबारा जगा सकती थी जो कि अपनी कारोबारी जिंदगी में गुमराह होकर उन्होंने त्याग दी थी . इसी तरह जूलियन के जीवन की एक नयी शुरुवात होने लगी जो उसके पिछले जीवन से बिलकुल अलग काफी असाधारण थी . 

5 : अद्भुत सन्यासियों का एक अध्यात्मिक चेला 

=> जूलियन की अविश्वनीय कहानी सुनते - सुनते कब सुबह से शाम हो गयी पता ही नहीं चला . एक वक्त के लिए ऐसा लगा कि मानो मैं भी उन्ही के साथ हिमालय की सैर पर था . लेकिन अब जूलियन का बदला हुआ व्यक्तित्व मुझे भी अपनी तरफ आकर्षित कर रहा था . अब तो मेरा भी मन है इस सम्मोहित तृप्ति को अनुभव करने का . पर मुझे अदालत में होने वाली कल की सुनवाई की तैयारी करनी है . पर आज जूलियन की बातों ने , उसकी अधूरी कहानी ने मुझे आईना दिखाया है . ये एहसास दिलाया है कि कहीं न कहीं मैंने भी पुराने जूलियन की ही तरह अपने कल वाले व्यक्तित्व को खो दिया है . कभी मुझे भी छोटी से छोटी चीज़ में ख़ुशी मिलती थी और अब मुझे उस एहसास की झलक भी याद नहीं है . 
मेरी रूचि को भांपते हुए जूलियन ने अपनी कहानी की गति बड़ाई . सिवाना समुदाय के लोगों ने अपना स्नेह जूलियन के प्रति व्यक्त करते हुए उन्हें अपने समुदाय का हिस्सा बना लिया जूलियन अपने ज्ञान को बढाने हेतु अपने तन और मन से हर एक पल योगी की तरह बिताने लगे . उन सन्यासियों का वो ज्ञान कई वर्षों की कठोर तपस्या का नतीजा था और वो सब उस ज्ञान को जूलियन के साथ बांटने के लिए तैयार थे और वो भी बिना किसी संशय के . जूलियन उन सन्यासियों के साथ बैठकर जीवन के कई अद्भुत विषयों पर विचार करते जो उन्होंने जीवन में प्राप्त की थी . जल्द ही जूलियन समझ चुके थे कि वो अपने मन को विचलित होने से कैसे रोक सकते है . जैसे - जैसे दिन , रात , महीने बीतते गए जूलियन को एहसास होता चला गया कि अब उनके अन्दर एक क्षमता है जिसे वो दूसरों की भलाई के लिए उपयोग में ला सकते है . सिवाना के पहले 3 हफ्तों में ही जूलियन को अपने अन्दर एक बदलाव महसूस होने लगा . 
उनको हर एक छोटी से छोटी चीज़ में आनंद आने लगा चाहे वो अँधेरे में चमचमाते सितारें हो या फिर मकड़ी का एक जाला ही क्यों न हो ! उन्होंने बताया कि कुछ महीनो में ही उन्हें मन की शान्ति और आत्मा की तृप्ति का एहसास होने लगा जो उन्होंने कई सालो तक शहर में रखकर अनुभव नहीं किया था . अंत में जूलियन को अपने जीवन की कीमत का अंदाज़ा हुआ और अपनी असली मंजिल का एहसास हुआ . ये सब उन साधुओ की वजह से मुमकिन हो पाया था . मधुर आवाज़ में उन्होंने ये भी बताया कि " हमें पहले अपने मन और आत्मा को तृप्त करना आना चाहिए , तभी हम अपने जीवन और अपने सपनो को जी सकते है " . तभी अचानक जूलियन ने जाने की बात की क्योंकि मेरे दफ्तर का समय हो बहुत विनती करने पर भी वो नहीं रुके . उन्होंने कहा कि " तुम्हारे और इस पूरे समाज को बुद्धिमता प्राप्त करने का अधिकार है . मैं तुमसे वादा करता हूँ कि मैं तुम्हारे साथ अपना ज्ञान ज़रूर बांदूंगा " . चूका था . मेरे वो मेरे दफ्तर से तो जा चुके थे 
लेकिन अपनी छाप मुझ पर छोड़ चुके थे और मैं ? मैं अपना सर पकड़ कर सोचने लगा कि मेरी दुनिया कितनी छोटी थी . मुझे आज एहसास हो रहा है कि बचपन में जो उल्हास और मासूमियत मुझमे थी अब वो नहीं रही . और किसे पता शायद जूलियन की ही तरह मैं भी किसी दिन ये सब दुनियादारी छोड़ कर उन्ही की तरह तृप्ति की तलाश में कहीं दूर निकल जाऊं !! इन सभी ख्यालो के साथ मैं अपने दफ्तर से बाहर निकला और तेज़ धूप में अपनी मंजिल की ओर चल पड़ा .

6 - अंतर्मन के ज्ञान का चमत्कार 

=> जैसा कि जूलियन ने कहा था , वो शाम को मेरे घर पहुँच गए . जैसे ही मैंने दरवाज़ा खोला जूलियन को लाल रंग के अजीब से एक पोशाक में देख कर मैं हैरान हो गया . जूलियन से दुबारा मिलने की उत्सुकता में दिनभर मैं मुश्किल से कुछ काम कर पाया था . इसलिए जूलियन ने भी बिना वक्त गँवाए उन रहस्यों को मेरे सामने एक - एक कर खोलना शुरू दिया और अपनी अधूरी कहानी के बारे में बताने लगे.पर ना जाने क्यों मेरे मन को अभी भी जूलियन की बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था . अचानक से मेरे मन में एक उलझन सी आने लगी . क्या हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से पढा हुआ ये वकील सच में अपना घर - बार त्याग सकता है ? कहीं जूलियन मुझसे कोई शरारत तो नहीं कर रहे थे ? लेकिन फिर जूलियन ने मेरा शक दूर कियाजूलियन शांति से चाय की प्याली में चाय भरने लगे.चाय प्याली में भरकर गिर रही थी पर जूलियन रुकने का नाम नहीं ले रहे थे 
आखिर मेरे सब्र का बांध टूटा और मैंने पूछ ही लिया " ये क्या कर रहे हो तुम ? इसमें और चाय नहीं आएगी , ये भर चुका है " . और जूलियन ने मुस्कुराते हुए कहा " जिस तरह इस भरी हुई चाय की प्याली में और चाय नहीं आ सकती , उसी तरह तुम्हारा दिमाग भी तुम्हारे अपने ही ख्यालो से भर चूका है . ऐसे में नया ख्याल उसमे कैसे भर सकते हो तुम " ? उसकी बातों की सच्चाई सुनकर मैं थम सा गया मुझे यकीन दिलाने के बाद आखिरकार जूलियन ने मुझे बताया कि किस तरह सिवाना के उस संन्यासी से जीवन का सबसे अहम् और सबसे बड़ा ज्ञान हासिल हुआ हैजिसने उनकी जिंदगी बदल दी थी . ये ज्ञान था जीवन के उन अनमोल 7 सूत्रों का . जूलियन ने अपनी आँखे बंद कर ली जैसे मानो वो इस दुनिया से परे वापस हिमालय की उन्ही वादियों में चले गए हो . उन्होंने मुझे भी अपनी आँखे बंद करके वो जो बता रहे थे उसकी कल्पना करने को कहा . 
ये वही कहानी थी जो उस संन्यासी ने जूलियन को सुनाई थी.और अब यही कहानी जूलियन मुझे सुना रहे थे . जूलियन कहने लगे . " तुम एक शानदार हरे - भरे और सुन्दर बगीचे में बैठे हो " पूरा बगीचा बहुत ही सुन्दर फूलों से भरा हुआ है . तुम्हारे आस - पास सब कुछ बहुत शांत है . इस बगीचे में तुम सच का स्वाद लोमानो जैसे तुम्हारे पास समय ही समय है . अब सामने की और तुम्हे एक लाल रंग का एक बड़ा लाईट हॉउस नज़र आता है.और अचानक से उस बगीचे की शान्ति भंग हो जाती है . तभी एक दरवाज़े के टूटने की आवाज़ आती है जिसमे से एक सूमो पहलवान बाहर आता है और बगीचे के बीचो - बीच घूमने लगता है . उस सूमो पहलवान ने एक पतली सी तार का लंगोट बनाकर पहन रखा हैजैसे ही सूमो पहलवान आगे बढता है उसे अपने सामने एक सोने की घडी दिखाई देती है जो मानो कई सालो से वही पड़ी हो उस घडी पर पैर पड़ते ही वो सूमो पहलवान गिर पड़ता है और बेहोश हो जाता है . 
कुछ देर बाद सांस लेते ही उसे गुलाब के फूलों की सुगंध आती है और वो तुरंत से वापिस खड़ा हो जाता है . होश वो आस - पास देखने लगता है और उसे झाड़ियों में से एक रास्ता दीखता है जो ढेर सारे हीरों से भरा पड़ा है . बिना वक्त गवांये वो सूमो पहलवान उस रास्ते पर निकल पड़ता है .और तुम्हारी आँखों से ओझल हो जाता है . संभालते हुए " ये कैसी अजीब सी कहानी थी ? क्या तुम इस कहानी को सुनाने इतनी दूर गए थे ? " मैंने जूलियन से बड़ी ही बेबाक आवाज़ में पूछ लिया . इस पर जूलियन ने मुझसे मुस्कुराते हुए कहा कि उसने भी सिवाना के संन्यासी से कुछ ऐसा ही पूछा था.जब उस महान संन्यासी ने जूलियन को ये कहानी सुनाई थी . और मैंने भी जूलियन की ही तरह कहानी में छुपे हुए उन 7 सूत्रों को नज़रंदाज़ कर दिया था . और अब बारी थी.जिंदगी के इन्ही छुपे हुए 7 सूत्रों को जानने की

7 सूत्रों वाला एक बहुत ही अनूठा बागीचा 

पहला सूत्र 

=> इस काल्पनिक कहानी में बागीचा हमारे मन को दर्शाता है " अगर आप अपने मन को विचलित होने से रोकते है , उसकी देखभाल करते है , उसे उपजाऊ बनाते है तो तुम्हारा मन तुम्हारे विचारों से कई ज्यादा खिलेगा . और अगर तुम उसमे गलत विचार पालते हो तो तुम्हारे मन के बगीचे में नकारात्मक ऊर्जा या नेगेटिविटी पैदा होगीएक बगीचे में हम जैसे बीज बोते हैहमें उसी तरह के फल और फूल मिलते है ! ठीक इसी तरह जब हम अपने दिमाग में लगातार सकारात्मक बातों के बारे में सोचते है.हमारा दिमाग भी उसी खूबसूरत बगीचे की तरह हमें अंदर से संतुष्ट और उपजाऊ रखेगालेकिन अगर हम अपने अंदर नकारात्मक विचार भरते है तो इसका अंजाम भी गलत ही निकलता है . हमारे जीवन में गलतियों का कोई स्थान नहीं होना चाहिए . हमें हमारे जीवन के हर एक सबक से कुछ न कुछ सीखते रहना चाहिएयही है हमारे जीवन का पहला सिद्धांत . 

दूसरा सूत्र 

=> इस कहानी का दूसरा सूत्र छुपा हुआ है उस लाईट हाउस में . जो कि हमारे जीवन के सभी उद्देश्यों को दर्शाता है . जिस तरह एक लाईट हाउस सटीकता से किसी भी नौका या जहाज़ को अपनी रौशनी से सही रास्ता दिखाता हैठीक उसी तरह हमें भी अपने जीवन के लक्ष्य और महत्वाकान्क्षाओ की ओर सटीकता से बढना चाहिए . उन्हें पूरी तरह से जानना ही हमारा सबसे पहला कर्तव्य है . भले ही इसमें देर लगेलेकिन एक ना एक दिन हम अपनी मंजिल तक पहुँच ही जायेंगे . हमें हमारे लक्ष्य की ओर बड़ने के लिए एक " जूनून " की बहुत ज़रुरत है.और उस जूनून को पाने के लिए हमें अपने अंदर आत्मशक्ति और धैर्य का निर्माण करना आना चाहिए.ये करने के लिए हमारे पास 5 तरीके है . 
  1. हमें हमारे मन में अंतिम परिणाम का साफ़ चित्रण रखना होगा , उस इनाम की कल्पना करनी होगी जिससे हमें आगे बड़ने की प्रेरणा मिलेगी . 
  2. हमें हमारे ऊपर सकारात्मक दबाव बनाए रखना होगा जिसे हम हमारे लक्ष्य के मार्ग से भटक ना जाए 
  3. मंजिल हासिल करना यही एक महत्वपूर्ण चीज़ नहीं है.उस मंजिल तक पहुँचने के लिए एक निर्धारित समय भी तय करना अनिवार्य हैक्योंकि हमारे जीवन में कई सारे लक्ष्य है जिसे हमें पाना है 
  4. अपने लक्ष्य को किताब में लिखकर रखे और रोज़ सुबह उठकर उस किताब को खोलकर देखेजिससे तुम्हारे अंदर अपने लक्ष्य की ओर पहुँचने की प्रेरणा बनी रहेगी और तुम्हारा मन विचलित नहीं होगा .
  5. 21 अंक का जादुई नियम - ये सब तकनीक और जादुई नियम तुम्हे लगातार 21 दिनों तक और निरंतर एक ही समय पर करना होगाजिससे वो बात तुम्हारे रोजाना नियम यानी रूटीन का एक अहम् हिस्सा बन जाएगा . 

तीसरा सूत्र 

=> जिंदगी का वो तीसरा सिद्धांत कहानी में अजीब से दिखने वाले उस सूमो पहलवान " कैजें " से जुडा हुआ है.कैजें एक जापानीज़ चिन्ह है जिसका मतलब होता है निरंतर सीखना और निरंतर सुधार करते रहना . एक सूमो पहलवान को अपनी खुराक के साथ - साथ अपने अनुसाशन का भी ख्याल रखना पड़ता है . ठीक इसी तरह हमें भी अपने जीवन में मेहनत के साथ - साथ अनुसाशन का भी ख्याल रखना चाहिए . हमें अपने मन को काबू में रखना भी आना चाहिए . हमें उसे अपने शरीर का एक अहम् हिस्सा बना लेना होगा कामयाबी हमेशा हमारे ही भीतर से आती है.हमें अपने आप को , अपने विचारों को कैसे रखते है.कामयाबी उसपर निर्भर करती है . हमें हमारे मन और आत्मा को निरंतर शुद्ध करते रहना चाहिए.तुम्हारे सामने कई कठिनाईया आएँगी पर उनसे घबराने से उनका समाधान नहीं मिलेगा.जो व्यक्ति अपने डर पर काबू पा लेता है वो अपने जीवन में कभी असफल नहीं होता .

चौथा सूत्र 

=> 4th सिद्धांत समझ आता है उस सूमो पहलवान के लंगोट में . जी हाँ , वो लंगोट जो पतले तार से बनी हुई थी.कोई भी तार ढेर सारे पतले तारों को जोड़ कर बनती है . भले ही ये पतली तारे अपने आप में कमज़ोर हो , लेकिन साथ मिलने पर ये एक मज़बूत तार बनाती है . ठीक इसी तरह हमारे जीवन में वो बहुत सारी छोटी लेकिन अच्छी आदतें होती है , जिनपर अक्सर हम ज्यादा ध्यान नहीं देते . लेकिन ये सभी साथ मिलकर एक बड़ा फर्क लाती है . फिर चाहे वो सुबह जल्दी उठना हो ,, या फिर पौष्टिक खाना खाना हो . ये सभी आदतें भले ही ज्यादा बड़ी ना लगती हो . लेकिन एक लम्बे समय बाद यही चीज़े आपको एक बेहतर इंसान बनाती है , और आपकी सफलता तय करती है ! अपने अंदर हमेशा एक सकारात्मक इच्छा शक्ति का संचार बनाये रखे जिससे आत्मा हमेशा शीतल बनी रहेगी . 

पांचवा सूत्र 

=> हम में से इस कहानी का पांचवा सिद्धांत उस सोने की घडी से जुड़ा हुआ है जिसे उठाते वक्त सूमो पहलवान गिर जाता है . आप समझ ही गए होंगे कि ये घडी हमारे जीवन के समय को दर्शाती है . अमीर हो या गरीब सभी के पास हर रोज़ 24 घंटे ही होते है . बहुत से लोग ऐसे होते है , जिन्हें बेवजह काम टालने की आदत होती है . ये सरासर वक्त की बर्बादी है . समय का ध्यान रखने का मतलब ये नहीं कि हम हर वक्त काम ही काम करे . लेकिन अपने काम , सामाजिक जिंदगी और परिवार के बीच इसी समय का एक अच्छा संतुलन बनाए . क्योंकि हर सफल इंसान दिन में उसी 24 घंटे में वो सब कुछ कर लेता है.जिसके बारे में हम सिर्फ सोचते ही रहते है . एक बार समय हमारे हाथ से फिसल गया तो वापिस कभी लौट कर नहीं आने वाला.इसलिए हमें समय का सम्मान करते हुए उसका आदर करते हुए ,, उसका हमेशा पालन करना आना चाहिए .

छठा सूत्र 

=> छठा सिद्धांत जुडा हुआ है गुलाब के फूल से जिसे सूंघकर उस पहलवान को होश आया था . एक मशहूर चीनी कहावत है कि जो लोग दुसरो को फूल देते है , अक्सर उनके हाथो में फूलों की खुशबू रह जाती है . और यही खुशबू दर्शाती है एक सामाजिक कारण को . भले आप कितने भी अमीर क्यों ना हों , दुसरो की मदद करने से जो सुकून मिलता है उसकी कीमत आप नहीं लगा सकते . इसी लिए दुनिया के सबसे अमीर लोग दान - पुन्य कर अपने मन को संतुष्ट करते है . तो यदि आपको भी यही सुख चाहिए तो दूसरों की मदद करना सीख लीजिये . एक मशहूर कहावत है " कर भला तो हो भला " ये कहावत इसी सिद्धांत को दर्शाती हैहमें अच्छाई का काम कभी छोड़ना नहीं चाहिए और किसी अच्छे काम के बदले अच्छे फल की उम्मीद नहीं करनी चाहिए . हमें बिना किसी स्वार्थ के भलाई का काम करना चाहिए तभी हमारी अंतर आत्मा को जो ख़ुशी मिलेगी उसे हम चंद शब्दों में बयान नहीं कर सकते . 

सातवां सूत्र 

=> आखिरकार इस कहानी का आखिरी यानी जीवन का सातंवा सिद्धांत जुड़ा हुआ है.कहानी के नायक के रास्ते से . ये हीरे कुछ और नहीं बल्कि जिंदगी के वो छोटे -छोटे पल है जो हमें ढेर सारी खुशियाँ देते है . लेकिन हम अक्सर इन्हें नज़र अंदाज़ कर अपने अतीत के बारे में सोच - सोच कर दुखी होते है , या फिर अपने भविष्य के लिए परेशान . और इन सब में अपने आज को जीना भूल जाते है . फिर चाहे वो अपने परिवार के साथ समय बिताना हो या अपने बच्चो के साथ खेलना या फिर किसी दोस्त के साथ एक कप चाय पीना . ये सभी हसीन पल हमारे जीवन में उन अनमोल हीरों की तरह होते है जिन्हें हमें संभाल कर रखना चाहिए ! कामयाबी के लिए कभी भी अपनी खुशियों का गला मत घोंटना . जिस रास्ते पर तुम चल रहे हो जीवन के उसी रास्ते पर चलते - चलते तुम्हे अपनी खुशियों का एहसास ज़रूर होगा क्योंकि खुशियाँ ढूँढने से नहीं मिलती बल्कि हर छोटी चीज़ में इस खूबसूरत एहसास का आनंद लिया जा सकता है .

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